महाराष्ट्रः शिंदे क्या बर्दाश्त कर लेंगे शाह की पसंद 'सीएम फडणवीस' को?
महाराष्ट्र में मौजूदा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री। यह सवाल एमवीए में तो था ही, अब महायुति में भी उठ खड़ा हुआ है। क्योंकि चुनाव की घोषणा से पहले भाजपा का हर छोटा-बड़ा नेता कह रहा था कि हम लोग एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं और महायुति की जीत के बाद वही फिर से सीएम बनेंगे। लेकिन जब मतदान में 10-11 दिन बचे हैं तो भाजपा के सबसे बड़े नेता अमित शाह ने महाराष्ट्र चुनाव का पूरा समीकरण बदलने की कोशिश की है। उन्होंने साफ कर दिया कि महायुति सत्ता में आई तो देवेंद्र फडणवीस सीएम बनेंगे।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को मुंबई में कहा कि "फिलहाल एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं। चुनाव के बाद तीनों गठबंधन सहयोगी मुख्यमंत्री पर फैसला करेंगे।" अमित शाह के इस संदेश को फैलने में देर नहीं लगी।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं के जरिए सूक्ष्म संदेश महाराष्ट्र की जनता को भी देने की कोशिश की गई है। यानी जो लोग एकनाथ शिंदे के कमजोर नेतृत्व की वजह से महायुति को वोट नहीं देना चाहते तो उनके लिए संदेश है कि वे फडणवीस के लिए वोट दें।ऐसा नहीं है कि शाह ने सिर्फ रविवार को ही फडणवीस को बतौर अगले सीएम के रूप में पेश किया। पिछले हफ्ते सांगली में एक रैली में उन्होंने दावा किया कि जनता "महायुति और फडणवीस की वापसी" देखना चाहती है।
कहा जा रहा है कि सीएम पद के लिए फडणवीस को कुशल नेतृत्व की वजह से इनाम मिलेगा। इसकी दो खास वजहें बताई गई हैं। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र ने जब 2014 और 2019 के बीच अच्छे ढंग से जब प्रशासन चलाया था तो उस समय कमान फडणवीस के पास थी। इसके अलावा, पार्टी के साथ-साथ आरएसएस के कई लोगों का मानना है कि उन्हें 2022 में सीएम पद का त्याग करने को कहा गया था। लेकिन यह भी वादा किया गया था कि पार्टी जब सत्ता में लौटेगी तो उन्हें सीएम बनाया जाएगा।
याद कीजिए पिछला चुनाव। 2019 के विधानसभा चुनावों से पहले, जब भाजपा अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन में थी, तो उसने फडणवीस को सीएम बनने का अनुमान लगाया था। फडणवीस ने तब राज्यव्यापी जनादेश यात्रा निकाली, भाजपा 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि अविभाजित शिवसेना को उस समय 56 सीटें मिलीं।
सीएम पद को लेकर मतभेदों के बाद, अविभाजित शिवसेना ने कांग्रेस और अविभाजित एनसीपी के साथ हाथ मिलाकर महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार बनाई और उद्धव ठाकरे सीएम बने। हालाँकि, सरकार केवल ढाई साल तक चली क्योंकि शिंदे ने विद्रोह कर दिया और 56 में से 41 विधायकों के साथ भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हो गए, जिससे एनडीए के लिए राज्य में फिर से शासन करने का रास्ता साफ हो गया।
भाजपा ने फडणवीस के जरिए शिवसेना में विद्रोह कराया। एनसीपी को भी तोड़ दिया गया। फडणवीस ने ही शिंदे को सीएम बनाने की पेशकश की और कहा कि भाजपा सरकार में शामिल नहीं होगी। हालाँकि, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उनके प्रशासनिक अनुभव का हवाला देते हुए और सरकार को "स्थिर" बनाए रखने के लिए उन्हें डिप्टी सीएम के रूप में सरकार में शामिल होने के लिए "तैयार" कर लिया। हालांकि लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को महाराष्ट्र में सिर्फ 9 सीटें मिलीं तो फडणवीस ने अपनी जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की। लेकिन अमित शाह ने फडणवीस की पेशकश ठुकरा दी।
इस दौरान भाजपा में दो चर्चा इस सवाल और जवाब के साथ चली कि फडणवीस को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन फडणवीस की दिल्ली यात्रा में अमित शाह आकर खड़े हो जाते हैं। यह चर्चा रही है कि फडवीस अगर दिल्ली पहुंचते हैं तो मोदी के बाद अगले प्रधानमंत्री के रूप में आरएसएस उनके नाम पर सहमति जता सकती है। ऐसे में अमित शाह प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। जबकि विश्लेषक यह कहते हैं कि जब अमित शाह प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो वो फडणवीस को अपने बाद दूसरे नंबर पर रखेंगे। लेकिन यह सब महज अटकलें हैं। इनके पक्ष में कोई सबूत नहीं है।
हालाँकि, शिंदे सेना और एनसीपी दोनों के सूत्रों का कहना है कि गठबंधन की राजनीति में सीएम का चेहरा अन्य वजहों से भी तय होता है। खासकर अगर किसी एक पार्टी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिलता है, तो उसे पीछे हटना पड़ता है। शिंदे सेना के नेताओं का कहना है कि अभी से इस चर्चा में पड़ने का कोई मतलब नहीं है।
महायुति में सीएम पद पर संघर्ष तय
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “जमीनी स्तर पर, भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर की भावना देश के लिए नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के लिए फडणवीस है। हालांकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चन्द्रशेखर बावनकुले ने कहा, "इस समय सीएम पद हमारे एजेंडे में नहीं है"। दूसरी तरफ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने बार-बार कह रही है कि अगर महायुति सत्ता में लौटती है तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शीर्ष पद पर बने रहेंगे। शिंदे सेना के एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने कहा, ''हमारे लिए एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं और चुनाव के बाद भी मुख्यमंत्री होंगे।'' दूसरी तरफ अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ज्यादा सतर्क है। एनसीपी के प्रदेश प्रमुख सुनील तटकरे ने दावा किया है कि अभी ध्यान महायुति को सत्ता में वापस लाने पर है। उन्होंने कहा, "सीएम आदि जैसे बड़े मुद्दों को चुनाव के बाद शीर्ष नेतृत्व पर छोड़ देना बेहतर है।"
शिंदे सेना के नेताओं का नाम न छापने की शर्त पर कहना है कि भाजपा ने चुनाव के पहले शिंदे को ही अगला सीएम घोषित किया था। ऐसे में अब मतदान से पहले स्टैंड बदलना चुनाव को प्रभावित कर सकता है। शिंदे ने भाजपा से हाथ इसी शर्त पर मिलाया था कि सीएम वही बनेंगे। लेकिन भाजपा अब दांव खेल रही है। ऐसे में चुनाव नतीजे आने के बाद ही सारा फैसला होगा। हालांकि जब भाजपा की ओर से तमाम प्रत्याशी शिंदे सेना और अजित पवार की एनसीपी में भेजे जा रहे थे, तब भी इन दोनों को भाजपा की रणनीति मालूम नहीं थी। लेकिन फडणवीस का नाम आने के बाद भाजपा की रणनीति और इरादे भी साफ हो गए हैं।
महाराष्ट्र की इस राजनीति में चुनाव आयोग पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि 23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजे आएंगे। चुनाव आयोग ने 26 नवंबर तक महाराष्ट्र में सरकार गठन करने की बात कही है और उसे अंतिम तारीख बताई है। यानी 23 नवंबर के पास तमाम राजनीतिक दलों के पास जोड़तोड़ के लिए महज तीन दिन होंगे। इसमें भाजपा को फायदा होगा, क्योंकि वो मुंबई से लेकर दिल्ली तक सत्ता में है। उसके पास तमाम संसाधन मौजूद हैं जो उसके लिए तमाम हालात पैदा कर सकते हैं या हालात बना सकते हैं।