इमरान मसूद की वापसीः क्या मुसलमान कांग्रेस की तरफ रुख कर रहे हैं
पश्चिमी यूपी में कांग्रेस के पास कल तक कोई कद्दावर मुस्लिम नेता नहीं था। लेकिन शनिवार 7 अक्टूबर को उसकी कमी इमरान मसूद ने पार्टी में वापसी करके पूरी कर दी। सहारनपुर और आसपास के जिलों में एक जुमला मशहूर है कि इमरान मसूद हवा का रुख भांपकर किसी भी पार्टी का दामन थामते हैं। कांग्रेस से जब वो सपा की तरफ गए तो यही हुआ था। फिर वो बसपा में आ गए। बसपा प्रमुख मायावती ने तो उन्हें यूपी के कई जिलों की जिम्मेदारी सौंपते हुए यूपी का मुस्लिम नेता घोषित कर दिया था लेकिन उन्हीं मायावती ने अभी हाल ही में इमरान मसूद को पार्टी से निकाल दिया था। वजह यह थी की इमरान लगातार राहुल गांधी की तारीफ कर रहे थे। यह बात मायावती को पसंद नहीं आई। लेकिन इमरान मसूद की कांग्रेस में वापसी को इस बात का संकेत माना जा रहा है कि यूपी में मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की तरफ धीरे-धीरे हो रहा है। इमरान मसूद ने हवा का यही रुख भांपते हुए पार्टी में वापसी की है, क्योंकि उनके पास सपा का विकल्प था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस को चुना।
यूपी में सपा और बसपा में आश्चर्यजनकर ढंग से राहुल गांधी को पसंद करने वाले पैदा हो गए हैं। राहुल गांधी संसद में बसपा सांसद दानिश अली के खिलाफ जब भाजपा के विवादित सांसद रमेश बिधूड़ी ने अराजक भाषा बोली और एक विवाद खड़ा हो गया तो राहुल गांधी सीधे दानिश अली के घर उन्हें हिम्मत बढ़ाने जा पहुंचे। मायावती की ओर से ऐसी कोई हिम्मत, ताकत दानिश अली को नहीं मिली। बसपा के मुस्लिम नेताओं और कार्यकर्ताओं में इससे मायावती को लेकर कोई अच्छा संदेश नहीं गया। इस घटनाक्रम के बाद इमरान मसूद ने राहुल गांधी की तारीफें शुरू कर दीं। इमरान मसूद ने सार्वजनिक रूप से मायावती को सलाह दी कि उन्हें इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनना चाहिए। मायावती को गुस्सा आया और उन्होंने पांच जिलों के बसपा प्रभारी और अपने मुस्लिम नेता इमरान मसूद को निकाल बाहर किया।
इमरान मसूद की वापसी ऐसे समय हुई है, जब कांग्रेस खुद को यूपी में खड़ा कर रही है। हाल ही में वो अजय रॉय को प्रदेश अध्यक्ष पद पर लाई है। वाराणसी निवासी अजय पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। जब से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बनाया गया है, उसी समय से हालात बदल रहे हैं। कांग्रेस का फोकस यूपी के मुस्लिम और दलित मतदाताओं पर पूरी तरह है। मुस्लिम और दलित पॉकेट्स के नेताओं को कांग्रेस में लाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि चुनाव नजदीक आने के साथ ही बसपा और सपा के तमाम मुस्लिम नेता कांग्रेस की ओर रुख कर सकते हैं। क्योंकि मुस्लिम नेता अब अपने जिन इलाकों में जा रहे हैं, वो मुस्लिम मतदाताओं में राहुल गांधी को पसंदीदा नेता के रूप में पा रहे हैं। यही वजह है कि अपने कोर वोटर से बंधे नेता अब कांग्रेस में लौटना चाह रहे हैं।
अपनी वापसी के बाद इमरान मसूद ने एक सवाल के जवाब में कहा कि अब कांग्रेस से सीधे मेरी वापसी कब्र में होगी। किसी पार्टी में भी यहां से नहीं जाऊंगा। उन्होंने कहा कि अब दो विचारधाराओं की लड़ाई है। एक विचारधारा कांग्रेस की है, जिसके पास बताने के लिए बहुत कुछ है। दूसरी विचारधारा भाजपा की है, उसके नतीजे लोग देख रहे हैं। मुसलमान, दलित, ओबीसी अब कांग्रेस में लौटेंगे, क्योंकि वो भाजपा की नीतियों को अच्छी तरह समझ गए हैं।
इमरान मसूद ने 2022 में कांग्रेस छोड़ा था क्योंकि वह अपने करीबियों के लिए टिकट चाह रहे थे, लेकिन नाकाम रहे। इसके बाद वो अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा में शामिल हो गए। लेकिन सपा में जब उन्हें महत्व नहीं मिला तो वो बसपा में चले गए। मायावती ने उन्हें लपक लिया और पश्चिम यूपी का संयोजक नियुक्त किया। उन्हें उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदाय तक पहुंचने की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी। लेकिन मायावती ने जब राहुल और प्रियंका की तारीफ करने पर उन्हें निकाला तो इमरान मसूद ने राहत की सांस ली, क्योंकि कांग्रेस में लौटने की जमीन उन्होंने खुद तैयार की।
इमरान मसूद की वापसी को कांग्रेस के सीनियर नेता एक उम्मीद के रूप में देख रहे हैं। जिस तरह की कोशिश कांग्रेस ने तेलंगाना में की है और उससे एआईएमआईएं परेशान है, ठीक वही कोशिश यूपी में करने की तैयारी है। इमरान मसूद उस कोशिश के लिए आगे किए जा सकते हैं। जिसकी शुरुआत सहारनपुर या देवबंद में राहुल गांधी की एक बड़ी रैली के रूप में हो सकती है। अल्पसंख्यकों को टारगेट करके की जाने वाली प्रस्तावित रैली से कांग्रेस यूपी के मतदाताओं को संदेश देना चाहती है।
तेलंगाना के मुसलमान
यूपी की तरह तेलंगाना के मुसलमान भी कांग्रेस की ओर रुख कर रहे हैं। उन्हें ओवैसी की चालाकी धीरे-धीरे समझ आ रही है।एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से निकलकर हर उस राज्य में मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारते रहें हैं, जहां उन्होंने कांग्रेस, आरजेडी और सपा का खेल खराब किया है। पश्चिम बंगाल के मुसलमानों ने ओवैसी की दाल नहीं गलने दी लेकिन बिहार में आरजेडी को इस वजह से सत्ता मिलते-मिलते रह गई। यही वजह है कि कांग्रेस ने अब तेलंगाना के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर मुस्लिम मतदाताओं पर फोकस किया है। ओवैसी और सत्तारूढ़ बीआरएस के तमाम मुस्लिम नेता कांग्रेस की ओर रुख कर रहे हैं। तेलंगाना में बीआरएस पूरी तरह से ओवैसी पर मुस्लिम वोटों के लिए निर्भर है। लेकिन अब जिस तरह से भगदड़ मची है, उसने ओवैसी को परेशान कर दिया है। यही वजह है कि ओवैसी इन दिनों राहुल गांधी को ज्यादा निशाना बना रहे हैं।प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने पूरे तेलंगाना में अल्पसंख्यकों को जोड़ने के लिए संपर्क अभियान की रूपरेखा बनाई थी। जिसके तहत 'अल्पसंख्यक घोषणा समिति' बनाई गई। इस समिति से कहा गया कि वो राज्य के मुसलमानों और ईसाइयों से बात करके उनका घोषणापत्र तैयार करे और इस बारे में कांग्रेस पार्टी अपनी गारंटी देगी। यह घोषणापत्र इस महीने के अंतक तक तैयार हो जाएगा। तेलंगाना में 13 फीसदी मुसलिम मतदाता और एक फीसदी ईसाई मतदाता हैं। कांग्रेस ने दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर अल्पसंख्यकों का ध्यान आकर्षित किया है। कांग्रेस यह समझा रही है कि राज्य में इतनी बड़ी मुस्लिम आबादी के बावजूद एक भी अल्पसंख्यक वाइस चांसलर किसी भी यूनिवर्सिटी में नहीं है। राज्य पब्लिक सर्विस कमीशन में एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं है। यह जिम्मेदारी ओवैसी पर थी कि वो अपनी गठबंधन पार्टी बीआरएस पर इसके लिए दबाव डालते। लेकिन ओवैसी ने ऐसा नहीं किया। फिलहाल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति से ओवैसी परेशान हैं। अगर इन दोनों राज्यों में ओवैसी दो-चार सीटों पर अगले चुनाव में सिमट गए तो वो फिर बाकी राज्यों में आने से पहले सोचेंगे।