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‘दिल्ली दंगों के दौरान निष्क्रिय थी पुलिस, पक्षपातपूर्ण जांच हुई’: अल्पसंख्यक पैनल 

‘दिल्ली दंगों के दौरान निष्क्रिय थी पुलिस, पक्षपातपूर्ण जांच हुई’: अल्पसंख्यक पैनल 

पैनल ने दिल्ली सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दंगों के चार महीने बाद भी दंगा पीड़ितों का सही ढंग से पुनर्वास नहीं हो सका है। 

दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों को लेकर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की ओर से बनाए गए पांच सदस्यों वाले पैनल ने कहा है कि दंगों के दौरान पुलिस पूरी तरह निष्क्रिय थी और उसकी जांच पक्षपातपूर्ण थी। पैनल ने दिल्ली सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दंगों के चार महीने बाद भी दंगा पीड़ितों का सही ढंग से पुनर्वास नहीं हो सका है। पैनल ने यह भी कहा है कि दंगों में पुलिस की सहभागिता थी। 

इस पैनल के प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एम.आर.शमशाद थे। शमशाद ने कहा है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगाग्रस्त 8 इलाक़ों में मुसलिम महिलाओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। शमशाद के मुताबिक़, ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था। 

दिल्ली सरकार पर सवाल 

रिपोर्ट में दिल्ली सरकार पर भी सवाल उठाते हुए कहा गया है कि नुक़सान, लूट, आगजनी के कई मामलों में चार महीने के बाद भी वेरिफ़िकेशन प्रक्रिया तक पूरी नहीं हो पाई है और जिन मामलों में वेरिफ़िकेशन पूरा हो गया है, वहां या तो अंतरिम मुआवजा राशि नहीं दी गई या फिर थोड़ी सी ही दी गई। 

इस पैनल ने पीड़ितों की परेशानियों जैसे - उनकी एफ़आईआर दर्ज न होना और बाक़ी दिक्कतों के लिए पांच सदस्यों वाले एक स्वतंत्र पैनल का गठन किए जाने की बात कही है। 

पैनल के मुताबिक़, कुछ मामलों में दंगा पीड़ितों ने कहा कि या तो उनकी एफ़आईआर दर्ज करने में देरी की गई या फिर उस पर कार्रवाई नहीं की गई। कुछ मामलों में तो पीड़ितों को ही गिरफ़्तार कर लिया गया। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि दंगों के दौरान हिंदुओं के किसी मंदिर को नुक़सान नहीं हुआ जबकि मुसलिमों की 22 इबादतगाहों को नुक़सान पहुंचा। इनमें क्षतिग्रस्त हुए कब्रिस्तानों और मदरसों की संख्या शामिल नहीं है।

पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक़, कुछ मामलों में पीड़ितों ने कहा कि उनसे अभियुक्तों से समझौता करने के लिए कहा गया। पैनल ने यह भी कहा है कि बिना जांच पूरी किए ही चार्जशीट दायर कर दी गई। 

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पैनल के मुताबिक़, ‘शरणार्थी कैंपों में रह रहे मुसलमानों को दो बार विस्थापित किया गया और लॉकडाउन की वजह से बिना किसी तैयारी के उन्हें कैंपों से हटा दिया गया।’ 

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कुछ मामलों में पीड़ितों से उनका कोई पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा गया और फिर उनके मजहब के आधार पर उन्हें निशाना बनाया गया। 

दिल्ली पुलिस ने अपने एफ़िडेविट में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों को दंगों के लिए जिम्मेदार बताया है। एफ़िडेविट में पुलिस ने कहा है कि उसने दंगों को लेकर 750 एफ़आईआर दर्ज की और 11 जुलाई तक 1430 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। 

‘सुनियोजित थे दंगे’ 

इससे पहले दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ये दंगे ‘सुनियोजित’ और ‘एकतरफा’ थे और इसमें ‘मुसलमानों के घरों और दुकानों को ही अधिक नुक़सान हुआ है’ और उन्हें ‘स्थानीय लोगों की मदद से ही’ निशाना बनाया गया। 

‘दंगों की जांच एकतरफ़ा’

पिछले महीने दिल्ली दंगों के एक मामले में भी दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी और कहा था कि मामले की जाँच एकतरफ़ा है। दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में पुलिस 'पिंजरा तोड़' की सदस्यों देवांगना, नताशा के अलावा सफ़ूरा ज़रगर, मीरान हैदर और कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ़्तार कर चुकी है। ये सभी लोग दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर सीएए, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ हुए विरोध-प्रदर्शनों में शामिल रहे थे। 

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