पर्यावरण के लिए काम करने वाली 22 वर्षीय दिशा रवि पर दिल्ली पुलिस और सरकार की कार्रवाई क्यों की जा रही है? वह कार्रवाई कितना सही है और इसके क्या परिणाम होंगे? कार्रवाई को लेकर आख़िर पर्यावरण से जुड़े रहे युवाओं-कार्यकर्ताओं से लेकर सामाजिक नागरिक संगठनों और विपक्षी दलों के नेताओं ने क्यों सवाल उठाए हैं, इसका अंदाज़ा अख़बारों की संपादकीय टिप्पणी से भी लग जाता है।
अख़बारों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं और लिखा है कि एक बाहरी साज़िश का खुलासा करने के नाम पर ऐसा लगता है कि सरकार अपनी पूरी ताक़त एक्टिविस्टों पर लगा रही है। अख़बारों ने सुझाव दिया है कि इससे बेहतर तो यह होता कि कृषि क़ानूनों पर उठ रहे सवालों, किसानों की चिंताओं और उनके डर को दूर किया जाता।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने संपादकीय में लिखा है, ‘दिल्ली पुलिस ने जलवायु पर काम करने वाली ग्रेटा थनबर्ग द्वारा किसान विरोध को लेकर 3 फ़रवरी को ट्वीट किए गए ‘टूलकिट’ के मामले में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ राजद्रोह और साज़िश का केस दर्ज किया है और रवि को गिरफ्तार किया है। सार्वजनिक तौर पर जो साक्ष्य हैं उससे भी पता चलता है कि दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे दस्तावेज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है जो किसी का समर्थन करने का एक आदर्श दस्तावेज होता है। और केंद्र सरकार के प्रति जावबदेह दिल्ली पुलिस यह बताने में जोर लगा रही है कि इसके पीछे एक अंतरराष्ट्रीय साज़िश है। जबकि यही केंद्र सरकार किसान यूनियन के नेताओं के साथ 11 दौर की बातचीत कर चुकी है और आगे भी बातचीत को जारी रखना चाहती है।’
अख़बार लिखता है कि एक निष्पक्ष जाँच ही रवि को क़ानूनी सुरक्षा प्रदान कर सकती है और निर्दोष या दोषी साबित कर सकती है। लेकिन जिस तरह से 26 जनवरी के बाद एफ़आईआर की अंधाधुंध बाढ़ आई है, जिस तरह से समर्थन करने के एक सामान्य टूल को अनोखे तौर पर बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जा रहा है और 22 वर्षीय कार्यकर्ता की गिरफ्तारी हुई है उससे गंभीर चिंता पैदा होती है।
अख़बार यह भी लिखता है कि एक बड़ी विदेशी साज़िश का भंडाफोड़ करने के नाम पर ऐसा लगता है कि सरकार अपनी पूरी ताक़त एक्टिविस्टों पर लगा रही है बजाय इसके कि कृषि क़ानूनों पर उठ रहे सवालों, किसानों की चिंताओं और डर को दूर करने के उपाए करे।
संपादकीय में लिखा गया है कि इस प्रक्रिया में यह विशेष रूप से देश के युवाओं को एक मैसेज दे रही है कि आप सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा सकते हैं और उससे बात कर सकते हैं लेकिन अपने जोखिम पर।
‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में लिखा है, ‘दिल्ली पुलिस ने ग्रेटा थनबर्ग द्वारा प्रचारित कृषि आंदोलन से जुड़ी टूलकिट में उसकी भागीदारी का आरोप लगाते हुए युवा जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ़्तारी के लिए आपराधिक साज़िश और समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे जो आरोप लगाए गए हैं वे असंगत जान पड़ते हैं।’
अख़बार ने लिखा है कि विश्व स्तर पर टूलकिट्स का उपयोग एक्टिविस्ट समूहों द्वारा अपने उद्देश्यों के बारे में बुनियादी जानकारी देने, सोशल मीडिया टैग और विरोध प्रदर्शनों पर सुझाव देने के लिए किया जाता है। संपादकीय में लिखा है कि ‘हालाँकि, दिल्ली पुलिस के पास अब सार्वजनिक आक्रोश के लिए ख़ुद को दोषी ठहराने के अलावा कोई उपाय नहीं है।’
इस संपादकीय में लिखा गया है- ‘पुलिस की कार्रवाई, यदि इस इरादे से की गई कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वामपंथी समर्थन को ख़त्म किया जाए जिससे किसान आंदोलन हुआ है, तो इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इससे किसानों और युवाओं में अलगाव पैदा हो रहा है।’
'द टेलीग्राफ़' ने भी भारत के विचारोन्मुख युवाओं के बारे में लिखा है और सवाल उठाया है कि भारत में राजनीतिक रूप से सक्रिय और विचार रखने वाले युवा क्यों उभर रहे हैं? इसने लिखा है कि यह सवाल तब उठा जब 22 वर्षीय दिशा रवि की गिरफ्तारी हुई जिन पर दिल्ली पुलिस द्वारा किसान आंदोलन पर सोशल मीडिया टूलकिट के पीछे महत्वपूर्ण 'षड्यंत्रकारियों' में से एक होने का आरोप लगाया गया है।
रवि की गिरफ्तारी के दौरान क़ानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने में पुलिस की विफलता के बारे में सवाल उठाए गए हैं।
अख़बार ने दिशा रवि से पहले भी युवा एक्टिविस्टों और छात्रों की गिरफ़्तारी का ज़िक्र किया है। इसने लिखा है कि रवि की गिरफ्तारी से पहले एक युवा मुसलिम व्यक्ति, कॉमेडियन की गिरफ्तारी हुई थी। एक कॉमेडी के लिए। उनपर आरोप लगाया है, जो कि कथित तौर पर उन्होंने वैसा कुछ कहा ही नहीं था। अख़बार ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के कई छात्रों और शोधार्थियों पर दिल्ली दंगों में शामिल होने या विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में भाग लेने पर लगाए गए आरोपों का ज़िक्र किया है। अख़बार लिखता है कि इन घटनाओं में एक चिंताजनक पैटर्न का पता लगाना संभव है।
‘द हिंदू’ ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में भी दिशा रवि की गिरफ़्तारी पर सवाल उठाए हैं। इसने लिखा है, ‘भारत में पुलिस, और विशेष रूप से वर्तमान शासन के तहत सुरक्षा बल, अनावश्यक गिरफ्तारियों और उत्पीड़न के एक उपकरण के रूप में संदिग्घ केस दर्ज करने का एक ख़राब रिकॉर्ड है। दिल्ली पुलिस ने एक मामले में एक 22 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता को गिरफ्तार करके उन सभी मामलों को भी पीछे छोड़ दिया है। अविश्वसनीय आरोप लगाया जाता है कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आयोजकों के लिए एक सोशल मीडिया टूलकिट बनाना राजद्रोह और दंगे भड़काने के तहत आता है।
अख़बार ने लिखा है कि जिस तरह से दिल्ली पुलिस की एक टीम ने बेंगलुरु की यात्रा की और दिशा रवि को हिरासत में ले लिया, ज़ाहिर तौर पर अंतरराज्यीय गिरफ्तारी पर दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन किए बिना, नई गिरावट को दर्शाता है।
अख़ाबर ने लिखा है कि ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन करने वालों के लिए इस तरह के टूलकिट आम हैं, और उनमें विरोध प्रदर्शन के लिए कॉल, ट्वीट किए जाने वाले टेक्स्ट, उपयोग किए जाने वाले हैशटैग और अधिकारियों और सार्वजनिक अधिकारियों के नाम होते हैं जिनके हैंडल को टैग किया जा सकता है।
बदा दें कि दिशा रवि को विपक्षी नेताओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं से मिल रहे समर्थन के बीच पुलिस ने एक दिन पहले ही प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कई और आरोप लगाए हैं। इसने कहा है कि टूलकिट मामले में गिरफ़्तार दिशा रवि ने दो अन्य कार्यकर्ताओं के साथ गणतंत्र दिवस हिंसा से पहले ज़ूम मीटिंग की थी। पर्यावरण के मुद्दों पर काम करने वाली बेंगलुरू की दिशा की गिरफ़्तारी किसान आंदालन से जुड़े उस टूलकिट मामले में हुई है जिसे पर्यावरण पर काम करने वाली स्वीडन की ग्रेटा तनबर्ग (थमबर्ग) ने शेयर किया था।
दिशा रवि की गिरफ़्तारी के बाद दिल्ली पुलिस दिशा के दो सहयोगियों की तलाश में है। पुलिस ने सोमवार को इन दोनों के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी कर दिया है। दिशा के अलावा जो दो अन्य एक्टिविस्ट हैं उनका नाम निकिता जैकब और शांतनु हैं। इन दोनों के ख़िलाफ़ दर्ज केस में उन पर ग़ैर जमानती धाराएँ लगाई गई हैं। 26 जनवरी को हिंसा से पहले ज़ूम मीटिंग में भी इन्हीं के नाम हैं।