एनआरसी पर कविता लिखने से असम में मामला दर्ज!
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताज़ा मामला है इससे जुड़ी एक कविता का, जो असम में रहने वाले मुसलमानों की बोली ‘मिया’ में लिखी गई है। इस कविता के लेखक के ख़िलाफ़ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज की गई है, आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल का आरोप लगाया गया है, एक समुदाय विशेष के लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया है। इसके अलावा एक दूसरी कविता से सामग्री चुराने का आरोप भी लगा है।
असम पुलिस ने लोगों से शिकायत मिलने पर 10 जुलाई को एक एफ़आईआर दर्ज किया। शिकायत दर्ज कराने वालों में एक पत्रकार प्रणब दोलोई ने कहा है कि ‘मैं मियाँ हूँ’ कविता में कहा गया है कि असमिया लोग मुसलमानों से नफ़रत करते हैं। दोलोई ने कहा कि वह इस कविता के ख़िलाफ़ नहीं है, कवि चाहें जो लिखें, पर यह ग़लत है कि असम के लोग मुसलमानों से नफ़रत करते हैं। यह कविता मियाँ बोली में काज़ी सरवर हुसैन ने लिखी है और उसका अंग्रेज़ी अनुवाद सलीम हुसैन ने किया है। ये दोनों ही मियाँ समुदाय के हैं और असम के बरपेटा ज़िले में रहते हैं।
क्या है कविता में
इस कविता में कहा गया है कि किस तरह मियाँ लोगों के ख़िलाफ़ भेदभाव किया जाता है, उन्हें सताया जाता है, उनकी हत्या कर दी जाती है, उनकी महिलाओं से बलात्कार किया जाता है। दरअसल, बांग्लादेश से आकर असम में रहने वाले मुसलमानों को मियाँ कहा जाता है और उनकी बोली को भी यही कहा जाता है। यह बोली बांग्ला की तरह ही है, कुछ शब्द अलग हैं, लेकिन यह असमिया से बिल्कुल अलग है।इस कविता ने असम में धूम मचा रखी है। इसके कई वीडियो बने हैं, जो यूट्यूब पर अलग-अलग चैनल पर चल रहे हैं और लाखों के व्यू बटोर रहे हैं। देखिए यह कविता:
दोलोई ने यह आरोप भी लगाया है कि ‘मैं मियाँ हूँ’ कविता दरअसल अरब कवि महमूद दरवेश की कविता ‘आईडी कार्ड’ को चुरा कर और उसमें कुछ हेर फेर कर लिखी गई है। उसने आई डी कार्ड का नंबर हटा कर एनआरसी नंबर का इस्तेमाल किया है।
क्या है मियाँ कविता
मियाँ कविता मोटे तौर पर विरोध कविता है। इसमें बांग्लादेश से असम आए मुसलमानों की समस्याओं, उनकी पीड़ा, प्रेम और तमाम चीजें शामिल है। इन कविताओं में बंगाली मुसलमान समाज की अभिव्यक्ति होती है।गुवाहाटी सेंट्रल के डीआईजी धर्मेंद्र दास ने कहा है कि इस मामले में अब तक किसी को गिरफ़्तार नहीं किया गया है, पर पुलिस मामले की जाँच कर रही है। मामला यह है कि एनआरसी एक राजनीतिक और प्रशासनिक मुद्दा है। लेकिन में इसमें साहित्य भी शामिल हो गई है। स्थानीय लोग सवाल यह उठा रहे हैं कि किसी का एनआरसी पर चाहे जो विचार हो, कविता की वजह से उसे दंडित नहीं किया जा सकता है।