क्या सड़क बनाने का काम भी निजी हाथों में सौंपेगी मोदी सरकार?
क्या अब केंद्र सरकार सड़कों के निर्माण कार्य को भी निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को कुछ ऐसा ही सुझाव दिया है। पीएमओ ने सुझाव दिया है कि नई सड़कों के निर्माण के काम को रोक दिया जाए और प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए पूरे हो चुके प्रोजेक्ट को उनके हाथों में सौंप दिया जाए।
मोदी सरकार के दुबारा सत्ता में आने के बाद से ही उस पर यह आरोप लगता रहा है कि वह निजीकरण, उदारीकरण व वैश्वीकरण की नीतियों को बेहद तेज़ी से लागू कर रही है और ऐसे क्षेत्रों में लागू कर रही है जो अभी तक इससे बचे हुए थे, जैसे रक्षा क्षेत्र।
एक ताज़ा ख़बर के मुताबिक़, रक्षा सचिव को यह आदेश दिए गए हैं कि वह सौ दिनों के अंदर यानी 15 अक्टूबर, 2019 तक आर्डिनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड का कार्पोरेटाइज़ेशन यानी निगमीकरण कर दें। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने प्रधानमंत्री से माँग की है कि वे आर्डिनेंस फ़ैक्ट्री के निजीकरण की प्रक्रिया को तुरंत वापस लें।इसके बाद देश के इतिहास में पहली बार आर्डिनेंस फ़ैक्ट्री के 82,000 कर्मचारी, केन्द्र सरकार के आर्डिनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड के हज़ारों कर्मचारी निगमीकरण के प्रस्ताव के विरोध में हड़ताल पर चले गए थे।
अंग्रेजी अख़बार ‘द मिंट’ में छपी एक ख़बर के मुताबिक, 17 अगस्त को प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव संजीव रंजन को एक पत्र भेजा है। पत्र में एनएचएआई को उसकी कार्यकुशलता में सुधार लाने की सलाह दी गई है।
पत्र में कहा गया है कि सड़कों के अनावश्यक और अनियोजित विस्तार की वजह से भूमि अधिग्रहण और निर्माण कार्यों में बहुत ज़्यादा धन ख़र्च हुआ है।
पत्र में कहा गया है, ‘सड़कों को बनाना वित्तीय रूप से बिना फ़ायदे का काम हो गया है, कंन्स्ट्रक्शन कंपनियाँ और निजी निवेशक नई परियोजनाओं को छोड़ रहे हैं।’पत्र में यह भी कहा गया है कि हाईब्रिड एम्युनिटी मॉडल जिसमें सरकार और प्राइवेट डेवलपर नई सड़क बनाने के लिए मिलकर ख़र्च करते हैं, वह अब टिकाऊ नहीं रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए पीएमओ की ओर से दिए गए सुझाव में कहा गया है कि एनएचएआई को उसके पास जो संपत्ति है उससे पैसा कमाने की कोशिश करनी चाहिए। चाहे वह ऐसा टोल टैक्स वसूली के लिए ऊंची बोली लगाने से करे या फिर इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश ट्रस्ट (इन्वे आईटी) से।
अगर पीएमओ के सुझावों के आधार पर एनएचएआई काम करती है तो बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफ़र (बीओटी) के आधार पर बोली लगाई जा सकती है। बीओटी में रोड बनाने के लिए प्राइवेट डेवलेपर पैसा लगाते हैं और एनएचएआई इसकी बैलेंस शीट की की माँगों को कम कर सकता है। और इसका सीधा मतलब यही हुआ कि एनएचएआई सड़कों का निर्माण पूरी तरह बंद कर सकता है।
इससे पहले सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि वह रेलवे के निजीकरण की तैयारी कर रही है। हाल ही में एक ऐसी रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि मोदी सरकार कुछ रूट्स पर ट्रेनों के संचालन के लिए निजी कम्पनियों से बोलियाँ मँगवा सकती है। बता दें कि मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में भी रेलवे के निजीकरण की कोशिश की थी और इसके लिए एक समिति का गठन किया था। लेकिन समिति की रिपोर्टों पर काफ़ी विवाद हुआ था और तब यह लागू नहीं हो पाया था।
हालाँकि देश में निजीकरण, उदारीकरण की नीतियों पर काम 1991 से ही शुरू हो गया था। लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार को इस बार भारी बहुमत मिलने से वह इस दिशा में बिना किसी की परवाह किये काम कर रही है।
ख़बरों के मुताबिक़, इस सरकार में मंत्रियों के एक समूह को यह ज़िम्मेदारी दी गई है कि वे तेज़ी से सार्वजनिक उपक्रमों जैसे ऑयल एंड नैचुरल गैस कमीशन, इंडियन ऑयल, गैस अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड, नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कार्पोरेशन, नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन, कोल इंडिया, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड व अन्य का विनिवेश करें।लेकिन डर इस बात का है कि सभी क्षेत्रों को अगर निजीकरण के लिए खोल दिया जाएगा तो कुछ समय बाद गिनी-चुनी बड़ी निजी कम्पनियाँ बाज़ार को अपनी गिरफ़्त में नहीं ले लेंगी लेकिन सवाल यह है कि यह कब तक चलेगा और आख़िर कब तक सभी चीजों को बेचा जाएगा।
बता दें कि इन दिनों इस बात की चर्चा है कि 70 सालों के इतिहास में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे ख़राब स्थिति में पहुँच चुकी है। डॉलर के मुकाबले रुपये बहुत ज़्यादा गिर चुका है। निजी व्यापार पर चोट पहुँच रही है और इसका असर ऑटोमोबाइल, सीमेंट, लोहा, उद्योग पर पड़ा है। इसके साथ ही कपड़ा उद्योग, टैक्सटाइल उद्योग बंद होने की कगार पर है। यह भी ख़बरें आई हैं कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र से 10 लाख लोगों की नौकरियाँ जाने का ख़तरा है। बिस्कुट कंपनी पारले जी ने 10,000 लोगों को निकाल दिया है।