पीएमएलए कानूनः सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 17 दलों ने 'खतरनाक' बताया
देश के 17 विपक्षी दलों ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले (पीएमएलए) में हाल ही में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खतरनाक करार देते हुए इसे नामंजूर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से ईडी समेत तमाम केंद्रीय जांच एजेंसियों को कई गैर जरूरी अधिकार भी मिल गए हैं। इस पर देश में लंबे समय से तमाम चिन्तक चिन्ता जता रहे थे, लेकिन 17 विपक्षी दलों ने बुधवार को मुखर होकर इसकी आलोचना की है।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, सीपीएम, समाजवादी पार्टी और आरजेडी समेत बाकी अन्य दलों के प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया है, हमें उम्मीद है कि खतरनाक फैसला अल्पकालिक होगा और संवैधानिक प्रावधान जल्द ही लागू होंगे।
17 Opposition parties, including TMC & AAP, plus one independent Rajya Sabha MP, have signed a joint statement expressing deep apprehensions on long-term implications of the recent Supreme Court judgement upholding amendments to PMLA,2002 and called for its review. The statement: pic.twitter.com/vmhtxRHAnl
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 3, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते संशोधित कानून के तहत ईडी को दी गई शक्तियों की वैधता को बरकरार रखा। इसे करीब 250 याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी।
फैसले की समीक्षा के लिए विपक्षी दल फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए तैयार हैं। संसद में जिस तरह से संशोधनों को पारित किया गया, उस पर सवाल उठाते हुए, विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि केंद्र सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ व्यापक शक्तियों का दुरुपयोग किया जाता है। ये आरोप हाल ही में तब गूंजे जब ईडी ने नेशनल हेराल्ड प्रकाशन से जुड़े एक मामले में कांग्रेस के गांधी परिवार से पूछताछ की।
पिछली सरकार की तुलना में मोदी सरकार के तहत ईडी द्वारा छापे 26 गुना अधिक हैं, लेकिन दोष कम साबित हो पाए हैं। पिछले आठ वर्षों में 3,010 मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित खोजों के दौरान, केवल 23 आरोपियों को दोषी ठहराया गया है।
वित्त मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, ईडी ने 112 जगह तलाशी ली लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग का कोई मामला सामने नहीं आया। लेकिन छापों को खूब प्रचारित किया गया। इसके अलावा, विपक्ष के बयान में बुधवार को कहा गया कि 2019 में संशोधनों को वित्त अधिनियम के तहत थोपा गया था जिसे "मनी बिल" के रूप में पेश किया गया था। इससे जुड़ा मामला अभी भी कोर्ट में पेंडिंग है।
इस विधेयक से जुड़े संशोधनों को राष्ट्रपति को अंतिम मंजूरी के लिए भेजे जाने से पहले लोकसभा से मंजूरी की आवश्यकता थी। इसे राज्यसभा द्वारा खारिज करने की आशंका थी, जहां सरकार के पास निश्चित रूप से अनुमोदन के लिए संख्या नहीं थी। विपक्ष का बड़ा तर्क यह है कि जब एक कानून पहले से मौजूद है तो उसमें बाद के संशोधनों की क्या जरूरत है।
विपक्ष ने कहा कि अगर कल को सुप्रीम कोर्ट यह मानता है कि वित्त अधिनियम के माध्यम से चुनौती देने वाले संशोधन कानून में खराब हैं तो पूरी कवायद व्यर्थ हो जाएगी और अदालतों में समय की हानि होगी। हम अपने सुप्रीम कोर्ट को सर्वोच्च सम्मान में रखते हैं, और हमेशा रखेंगे। फिर भी, हम यह इंगित करने के लिए मजबूर हैं कि संशोधनों की संवैधानिकता की जांच के लिए एक बड़ी पीठ के फैसले का इंतजार करना चाहिए था।
विपक्षी दलों ने कहा कि पीएमएल कानून में इन संशोधनों ने अपने राजनीतिक विरोधियों को दुर्भावनापूर्ण तरीके से टारगेट करने के लिए मौका दिया गया है। जांच एजेंसियां इन संशोधित कानूनों का उपयोग करके सरकार के राजनीतिक प्रतिशोध का हथियार बन सकती हैं। हम इस बात से भी बहुत निराश हैं कि अधिनियम में नियंत्रण और संतुलन की कमी है, जिससे स्वतंत्र फैसला देने में बाधा आएगी।