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इजराइल-फिलिस्तीन पर भारत का रुख नहीं बदला- मोदी फिलिस्तीनी राष्ट्रपति से बोले

इजराइल-फिलिस्तीन पर भारत का रुख नहीं बदला- मोदी फिलिस्तीनी राष्ट्रपति से बोले

हमास-इज़राइल संघर्ष के तुरंत बाद भारत के रुख पर सवाल पूछा जा रहा था कि क्या फिलीस्तीन पर भारत का रवैया बदल गया है? जानिए, अब खुद प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा है।

इजराइल-फिलिस्तीन पर भारत का रुख पहले की तरह ही जस का तस है और इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। यह बात खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ही कही है। वह भी फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास से बातचीत में ही। पहले वह लगातार इज़राइल के समर्थन की बात कहते रहे थे। 7 अक्टूबर के हमले के तुरंत बाद ही उन्होंने ट्वीट कर इज़राइल के साथ खड़े होने की बात कहते हुए ट्वीट कर दिया था। बाद में भी वह फिर से वही बात दोहराते रहे थे। इसी वजह से लगातार सवाल उठ रहे थे कि क्या पीएम मोदी ने भारत की विदेश नीति फिलिस्तीन को लेकर बदल दी है? 

अब उन्होंने ट्वीट करके ही इस बात की जानकारी दी है कि इज़राइल-फिलिस्तीन को लेकर भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने कहा, 'फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के राष्ट्रपति महामहिम महमूद अब्बास से बात की। ग़ज़ा के अल अहली अस्पताल में नागरिकों की मौत पर अपनी संवेदना व्यक्त की। हम फ़िलिस्तीनी लोगों के लिए मानवीय सहायता भेजना जारी रखेंगे। क्षेत्र में आतंकवाद, हिंसा और बिगड़ती सुरक्षा स्थिति पर अपनी गहरी चिंता साझा की। इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की लंबे समय से चली आ रही सैद्धांतिक स्थिति को दोहराया।'

क़रीब हफ़्ते भर पहले विदेश मंत्रालय को भी इस पर सफ़ाई देनी पड़ी थी कि भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। ऐसा इसलिए ता कि हमास ने जब इज़राइल पर हमला किया था तो पहली प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वह 'इज़राइल में आतंकवादी हमलों की ख़बर से सदमे' में हैं और भारत इस कठिन समय में इजराइल के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है। 

पीएम मोदी के इस बयान से एक बड़ा संदेश गया था और सवाल उठा था कि क्या फिलिस्तीन पर भारत का रुख बदल गया है? लगातार यह सवाल पूछा जाता रहा था, लेकिन विदेश मंत्रालय की ओर से साफ़ तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया था। 

13 अक्टूबर को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान में कहा था, 'इस संबंध में हमारी नीति लंबे समय से और लगातार वही रही है। भारत ने हमेशा सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना और इजराइल के साथ शांति से रहने के लिए सीधी बातचीत बहाल करने की वकालत की है।'

प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को महमूद अब्बास से बातचीत के दौरान ग़ज़ा अस्पताल में बमबारी में नागरिकों की जान जाने पर संवेदना व्यक्त की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत फिलिस्तीनी लोगों को मानवीय सहायता भेजना जारी रखेगा।

बता दें कि भारत ने शुरुआत से ही फिलिस्तीन के मुद्दे का समर्थन किया है। 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ मतदान किया था। फिलिस्तीन के नेता यासर अराफात कई बार भारत आए। उनके इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक के नेताओं से अच्छे संबंध रहे। 1999 में तो फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात तत्कालीन पीएम वाजपेयी के घर पर उनसे मिले थे।

2015 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, 2012 में तत्कालीन विदेश मंत्री एस एम कृष्णा, 2000 में तत्कालीन गृहमंत्री एल के आडवाणी और तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने फिलिस्तीन का दौरा किया था। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में पहली बार फिलिस्तीन की ऐतिहासिक यात्रा की थी। उनसे पहले 2016 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर भी फिलिस्तीन गए थे।

हाल के दिनों में भारत की नीति इज़राइल की तरफ़ झुकी हुई दिखती है। पीएम मोदी के कार्यकाल के दौरान इज़राइल के साथ संबंध बेहद घनिष्ठ हुए हैं। इसी बीच हमास का हमला हुआ और प्रधानमंत्री ने इज़राइल को समर्थन की बात कही।

बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को भी कहा, 'नेतन्याहू से फोन पर बात हुई। उन्होंने मौजूदा स्थिति पर अपडेट जानकारी दी। भारत के लोग इस कठिन समय में इजराइल के साथ मजबूती से खड़े हैं। भारत आतंकवाद के सभी रूपों और उसकी गतिविधियों की मज़बूती से और साफ़ तौर पर निंदा करता है।' इसके बाद से लगातार सरकार से सवाल किए जाते रहे।

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