लालकिले से पीएम मोदी का भाषण समझिए- बांग्लादेशी हिन्दू, सिविल कोड, महिला सुरक्षा पर चिन्ता
प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले से 15 अगस्त 2024 को जो भाषण दिया, उसके जरिए उन्होंने कई सारे मुद्दों को छुआ। लेकिन सारे मुद्दे कुल मिलाकर राजनीतिक हैं और उनके जरिए माहौल बनाने की कोशिश है। 98 मिनट के भाषण ने उनके 2016 के भाषण के 96 मिनट के पिछले रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। 2017 में उनका सबसे छोटा भाषण 56 मिनट का था। लेकिन मोदी के भाषण से निकला क्या, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
बांग्लादेश के हिन्दुओं की चिन्ता
पीएम नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चिंता जताई। मोदी ने कहा कि भारत हमेशा बांग्लादेश की वृद्धि और विकास का समर्थक रहेगा। एक पड़ोसी देश के रूप में, मैं बांग्लादेश में जो कुछ भी हुआ है, उसके बारे में चिंता को समझ सकता हूं। मुझे उम्मीद है कि वहां हालात जल्द से जल्द सामान्य हो जाएंगे। 140 करोड़ देशवासियों की चिंता वहां के हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। भारत हमेशा चाहता है कि हमारे पड़ोसी देश समृद्धि और शांति के रास्ते पर चलें। हम शांति के लिए प्रतिबद्ध हैं...आने वाले दिनों में, हम बांग्लादेश की 'विकास यात्रा' में उसके लिए शुभकामनाएं देना जारी रखेंगे क्योंकि हम मानव जाति के कल्याण के बारे में सोचते हैं।'
मोदी की बांग्लादेश के हिन्दुओं की चिन्ता जायज हो सकती है। लेकिन ध्यान रहे कि एक भारतीय प्रधानमंत्री लाल किले से राष्ट्रीय भाषण में बांग्लादेश के हिन्दुओं को लेकर चिन्ता जता रहा है। जबकि ऐसी ही चिन्ता भारत में मुस्लिमों समेत तमाम अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों, लिंचिंग की घटनाओं पर जब बाकी देश या अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन जताते हैं तो भारत उसे खारिज कर देता है और अपने अंदरुनी मामलों में दखल न देने की चेतावनी देता है। भारत में बांग्लादेश के हिन्दुओं से कहीं ज्यादा आबादी है और उनकी भारत की तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका है। अब अगर कोई देश भारत में रहने वाले मुस्लिमों, सिखों और ईसाईयों को लेकर आवाज उठाता है तो क्या भारत ऐतराज करेगा। बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना और इजराइल को हथियारों की सप्लाई को लेकर भारत वैसे ही अंतरराष्ट्रीय विवादों में चल रहा है।
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मौजूदा "सांप्रदायिक" नागरिक संहिता के स्थान पर "धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता" समय की मांग है।
पीएम मोदी ने कहा- "सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर बार-बार चर्चा की है। देश के एक बड़े वर्ग को लगता है, और सही भी है, कि वर्तमान नागरिक संहिता एक सांप्रदायिक नागरिक संहिता है, एक भेदभावपूर्ण नागरिक संहिता है। मोदी ने कहा- "सुप्रीम कोर्ट ने हमें बताया है और यह संविधान निर्माताओं का सपना था, इसलिए इसे पूरा करना हमारा कर्तव्य है।" मोदी ने कहा- "देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करने वाले कानूनों को खत्म किया जाना चाहिए। आधुनिक समाज में उनका कोई स्थान नहीं है। समय एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता (सेकुलर सिविल कोड) की मांग करता है। और तब जाकर हम धार्मिक भेदभाव से मुक्त होंगे।”
पीएम मोदी के भाषण से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। क्या अंबेडकर ने जो संविधान लिखा है और उसमें जिस समान नागरिक संहिता का जिक्र है, वो साम्प्रदायिक है। कम से कम मोदी ने तो आज उसे साम्प्रदायिक नागरिक संहिता करार दिया है। मोदी ने जिस सेकुलर नागरिक संहिता शब्द का इस्तेमाल किया है, उसका आशय क्या है। उन्होंने यह साफ नहीं किया है कि उनका सेकुलर नागरिक संहिता से आशय क्या है। क्योंकि उनकी भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में तो यूसीसी लागू करने की बात कही गई है, जिसका जिक्र संविधान में भी है। भाजपा शासित कई राज्य यूसीसी की तरफ आगे भी बढ़ चुके हैं। जिसमें उत्तराखंड प्रमुख है। क्या मोदी यह कहना चाहते हैं कि केंद्र सरकार अब यूसीसी को सेकुलर सिविल कोड के नाम से लागू करेगी। समय बताएगा।
महिला सुरक्षा की चिन्ता
पीएम मोदी ने कहा कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लिए दी जाने वाली सजाओं का व्यापक प्रचार-प्रसार करने की जरूरत है, ताकि परिणाम का डर रहे। पीएम ने कहा कि उनकी सरकार ने "महिला-नेतृत्व वाले विकास मॉडल" पर काम किया है, लेकिन वह अभी भी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और हिंसा की घटनाओं पर चिंतित हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसी घटनाओं के खिलाफ लोगों में गुस्सा है। मोदी पश्चिम बंगाल की घटना का नाम लिए बिना कहा- "लेकिन कुछ चिंताजनक घटनाक्रम भी हैं। मैं आज लाल किले से अपना दर्द व्यक्त करना चाहता हूं। एक समाज के रूप में, हमें गंभीरता से सोचने की जरूरत है। हमारी माताओं-बहनों पर अत्याचार को लेकर जनता में आक्रोश है। मैं इस आक्रोश को महसूस करता हूं। देश को, समाज को, हमारी राज्य सरकारों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जल्द से जल्द जांच होनी चाहिए, राक्षसी कृत्यों में शामिल लोगों की जांच होनी चाहिए। समाज में विश्वास पैदा करने के लिए यह जरूरी है।''
महिला सुरक्षा पर पीएम मोदी की चिन्ता जायज है। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि जब किसी विपक्षी शासित राज्य में इस तरह का महिला विरोधी अपराध होता है तो भाजपा और मीडिया उसे जोर-शोर से मुद्दा बनाते हैं। लेकिन यूपी, एमपी, हरियाणा, राजस्थान में इससे भी भयंकर महिला विरोधी अपराध होते हैं लेकिन भाजपा उन घटनाओं पर चिन्ता तक नहीं जताती है और न ही मीडिया उसे प्रमुखता देता है। लेकिन इसका आशय यह नहीं कि पश्चिम बंगाल की घटना पर वहां की सरकार को कुछ कहा ही न जाए। डॉ मनमोहन सिंह सरकार के समय दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था। भाजपा-आरएसएस काडर ने उस दौरान अन्ना आंदोलन को हवा देकर पूरा सरकार विरोधी माहौल दिल्ली में बना दिया। उस समय तत्कालीन सरकार निर्भया कांड के मद्देनजर महिला विरोधी अपराध के खिलाफ कड़े कानून लाई। यह सवाल भी जरूरी है कि सिर्फ शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध सुर्खियां बन रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में भी अगर पीड़ित महिला हाई प्रोफाइल वाली हुई तो टीवी चैनल टीआरपी के लिए उसे जुनून की हद तक हवा देते हैं। महिला विरोधी अपराध को एक ही नजरिए से देखे जाने की जरूरत है चाहे वो प्रधानमंत्री का नजरिया हो या फिर मीडिया का।
चुनावी बॉन्ड घोटाले के दौर में मोदी भ्रष्टाचार को लेकर चिंतित
मोदी ने भ्रष्टाचार पर काफी गंभीर चिन्ता जताई। नरेंद्र मोदी ने संरक्षण की संस्कृति और भ्रष्टाचार को "दीमक" बताते हुए कहा कि कुछ लोग इसका महिमामंडन करते हैं लेकिन वह उनके खिलाफ डटे रहेंगे। मोदी ने भ्रष्टाचार और इसके महिमामंडन पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे समाज के लिए बड़ा मुद्दा बताया। उन्होंने कहा, "मैं जानता हूं कि मुझे इस लड़ाई की कीमत चुकानी पड़ेगी, मेरी प्रतिष्ठा दांव पर लग सकती है, लेकिन व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से ज्यादा महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित हैं।"
मोदी का भ्रष्टाचार पर बोलने को क्या माना जाए। विपक्षी दलों का कहना है कि जिस सरकार ने, जिस पार्टी ने चुनावी बॉन्ड जैसा घोटाला किया हो, वो भ्रष्टाचार पर क्या भाषण देगी। नेता विपक्ष और अन्य विपक्षी दलों ने अडानी-अंबानी समूह और उनसे मोदी के रिश्तों को जोड़कर गंभीर सवाल उठाए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट चर्चा में है, जिसमें अडानी-सेबी और मोदी को निशाना बनाया गया है। हिंडनबर्ग ने मोदी सरकार पर अडानी समूह को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कहा कि इसी वजह से अडानी समूह ने तमाम आर्थिक हेराफेरी की है। ये सारे मामले संसद में भी उठ चुके हैं। लेकिन मोदी अब उल्टा भ्रष्टाचार का मामला उठा रहे हैं। बहरहाल, यह विषय है, जिसकी सच्चाई जनता भी जानती है।
एक देश-एक चुनाव का राग
पीएम मोदी ने अपने भाषण में एक देश एक चुनाव का मुद्दा फिर उठाया और कहा कि उन्हें इस पर जनता का समर्थन चाहिए। यहां पर बताना जरूरी है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में सरकार ने एक कमेटी भी बनाई है जिसने सभी स्टेकहोल्डर से इस पर राय मांगी थी। सभी विपक्षी दलों ने इस पर खुलकर कह दिया कि वे एक देश-एक चुनाव के विचार के खिलाफ हैं। तमाम जन सरोकार संगठनो ने भी इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। सिर्फ भाजपा और उसके शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इस विचार से सहमत हैं। केंद्र में अब एनीडए की सरकार है। क्या मोदी ने 15 अगस्त पर इस विचार से पहले जेडीयू और टीडीपी की राय भी पूछी। भाजपा के अन्य सहयोगी दलों की इस पर क्या राय है। जाहिर है कि क्षेत्रीय दल तो इस विचार के सबसे ज्यादा खिलाफ हैं। वैसे भी यह मुद्दा घिसापिटा है। लगता नहीं कि मोदी बैसाखी पर टिकी अपनी सरकार के दौरान इसे लागू भी कर पाएंगे।पीएम मोदी ने अपने भाषण में बार-बार विपक्ष को निशाना बनाया। उन्होंने एक तरह से आरोप लगाया कि विपक्ष आर्थिक तरक्की में रोड़े अटका रहा है। प्रधानमंत्री क्या कहना चाहते हैं, इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है। मोदी चाहते हैं कि विपक्ष आंख मूंद कर उनकी सरकार की हर नीति का समर्थन करे। वो यह भी चाहते हैं कि विपक्ष उनकी सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरना छोड़ दे। वे यह भी चाहते हैं कि विपक्ष केंद्रीय जांच एजेंसियों ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स आदि की जांच पर कुछ भी न बोले। जांच एजेंसियों को किसी भी विपक्षी नेता पर कार्रवाई की छूट हो।