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संक्रमित करने से पहले कोरोना वायरस जाति, धर्म, रंग नहीं देखता है: प्रधानमंत्री

संक्रमित करने से पहले कोरोना वायरस जाति, धर्म, रंग नहीं देखता है: प्रधानमंत्री

कोरोना महामारी के बीच धार्मिक आधार पर भेदभाव किए जाने और इसे साम्प्रदायिक रूप दिए जाने की चर्चाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कोरोना महामारी निशाना बनाने से पहले जाति, धर्म, रंग, पंथ, भाषा या सीमा नहीं देखती है।

कोरोना महामारी के बीच धार्मिक आधार पर भेदभाव किए जाने और इसे साम्प्रदायिक रूप दिए जाने की चर्चाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कोरोना वायरस हमला करने से पहले जाति, धर्म, रंग, पंथ, भाषा या सीमा नहीं देखता है। उन्होंने कहा कि यह सभी को एक समान प्रभावित करता है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इसीलिए हमारी प्रतिक्रिया के रूप में प्राथमिकता एकता और भाईचारा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस लड़ाई में हम साथ हैं। 

प्रधानमंत्री ने इसको लेकर लिंक्डइन पर एक पोस्ट लिखा है। उन्होंने लिखा है, 'इतिहास में बीते लम्हों से अलग जब देश या समाज एक-दूसरे के ख़िलाफ़ थे, आज हम एक साथ एक आम चुनौती का सामना कर रहे हैं। भविष्य एक साथ रहने और उस स्थिति से उबरने के बारे में होगा।' लिंक्डइन पर लिखे अपने उस लेख का लिंक प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर भी साझा किया है।

प्रधानमंत्री की यह प्रतिक्रिया उस समय आई है जब तब्लीग़ी जमात का मामला आने के बाद से देश भर में नफ़रत की कई घटनाएँ सामने आ रही हैं। आज ही एक रिपोर्ट आई है कि मेरठ के वेलेंटिस कैंसर हॉस्पिटल ने विज्ञापन निकालकर कहा है कि हॉस्पिटल अब नये मुसलिम मरीजों को तब तक भर्ती नहीं करेगा जब तक कि वह कोरोना नेगेटिव होने की रिपोर्ट नहीं देगा। ऐसी शर्त दूसरे धर्म के लोगों के लिए नहीं है। 

इसस पहले हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भी धर्म के आधार पर कोरोना वार्ड बनाने की ख़बर आने के बाद ऐसा ही विवाद हुआ था। तब गुजरात सरकार ने उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। उस हॉस्पिटल के मेडिकल सुप्रींटेंडेंट डॉ. गुणवंत एच राठौड़ ने भी कहा था कि धर्म के आधार पर अलग कोरोना वार्ड नहीं बनाया गया है और उनके बयान को ग़लत तरीक़े से पेश किया गया है। यानी वह पिछले बयान से पूरी तरह पलट गए। एक दिन पहले ही 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने लिखा था कि राठौड़ ने कहा था कि 'यहाँ हमने हिंदू और मुसलिम मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए हैं।' इसके बाद विवाद थम गया।

मुसलिमों के ख़िलाफ़ ऐसे नफ़रत वाले बयान के कारण ही हिमाचल प्रदेश में जम्मू-कश्मीर के 9 मुसलिम मज़दूरों पर हमला कर दिया गया था। सरपंच, वकील और स्थानीय लोग कहते हैं कि हमले का कारण तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम को लेकर 'नफ़रत फैलाने वाला कैंपेन' है। वे कहते हैं कि सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाले बयान ने लोगों के दिमाग़ में ज़हर घोल दिया है।

हाल ही में दिल्ली में भी एक युवक को पीटा गया था। उत्तर प्रदेश से तो कई ख़बरें आ गईं कि मुसलिमों को सब्जी भी नहीं बेचने दी जा रही है। दरअसल, कुछ रिपोर्टों में तो आरोप लगाया गया है कि मीडिया का एक वर्ग ऐसी रिपोर्टिंग कर रहा है कि अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बना है। इस मामले में जमीयत उलेमा ए हिंद ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि मीडिया का कुछ हिस्सा तब्लीग़ी जमात के दिल्ली में पिछले महीने हुए कार्यक्रम को लेकर सांप्रदायिक नफ़रत फैला रहा है।

प्रधानमंत्री ने यह भी लिखा है कोरोना वायरस के महासंकट ने कितना कुछ बदल दिया है। किसी ने जो सोचा नहीं होगा, वैसी परिस्थितियाँ पैदा हो गई हैं। उन्होंने लिखा, 'युवा ऊर्जा से लबालब भारत दुनिया को एक नई कार्य संस्कृति दे सकता है क्योंकि यह राष्ट्र अपने नवोन्मेषी विचारों के प्रति उत्साह के लिए मशहूर है।'

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