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चीनी फ़ोन: राहुल मूर्खों के सरदार या मोदी ने की ग़लतबयानी?

चीनी फ़ोन: राहुल मूर्खों के सरदार या मोदी ने की ग़लतबयानी?

प्रधानमंत्री मोदी ने बिना नाम लिए राहुल गांधी को मूर्खों का सरदार क्यों कहा था? भारत में मोबाइल फोन को लेकर न? सच क्या है? कहीं पीएम मोदी के दावे ही ग़लत तो नहीं?

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कुछ दिनों पहले चुनाव आयोग से शिकायत की थी कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गाँधी ने एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री और बीजेपी के नेता नरेंद्र मोदी को पनौती कहकर चुनावी क़ानूनों का उल्लंघन किया है। इसके जवाब में कांग्रेस ने कल मोदी के ख़िलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की कि उन्होंने राहुल गाँधी को एक सभा में मूर्खों का सरदार कहा।

राहुल ने मोदी को पनौती क्यों कहा था, इसका संदर्भ (वर्ल्ड कप क्रिकेट फ़ाइनल में भारत की हार) तो आपको मालूम ही होगा। लेकिन मोदी ने राहुल को मूर्खों का सरदार क्यों कहा, इसकी कहानी बहुत ही दिलचस्प है। दिलचस्प इसलिए कि आपको पहली नज़र में लगेगा कि मोदी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं लेकिन गहराई में जाने पर आप सोच-विचार में पड़ जाएँगे कि जो व्यक्ति दूसरों को मूर्खों का सरदार बता रहा है, कहीं वही असल में जनता से ग़लत बयानी तो नहीं कर रहा है?

बात है भारत में इस्तेमाल होने वाले मोबाइल फ़ोनों की। राहुल ने मध्य प्रदेश की एक चुनावी सभा में कहा था कि हम जो शर्ट पहनते हैं, जूते पहनते हैं, मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, उन सबके पीछे लिखा होता है - मेड इन चाइना। इसी की प्रतिक्रिया में मोदी ने बिना राहुल का नाम लिए उनको मूर्खों का सरदार कहा था क्योंकि मोदी के अनुसार सच्चाई यह है कि आज भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा फ़ोन निर्माता है। दूसरे शब्दों में भारतीय जो फ़ोन इस्तेमाल करते हैं, वे भारत-निर्मित हैं, न कि चीन में बने हुए।

प्रधानमंत्री की बात का समर्थन उनके मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी किया जब उन्होंने बताया कि आज भारत में जितने भी मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल हो रहे हैं, उनमें 99.2% भारत में बन रहे हैं।

तो क्या राहुल वाक़ई अज्ञानी हैं? क्या वास्तव में वे नहीं जानते कि आज भारत में इस्तेमाल होने वाले तक़रीबन सारे मोबाइल फ़ोन भारत में ही बन रहे हैं? यह समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि यह भारत में 'बनना' क्या है? 

भारत में मोबाइल फ़ोन का 'बनना' वैसा है जिस तरह आप अपने रसोईघर में चाय 'बनाते' हैं। चीनी बाहर से लाते हैं, चाय पत्ती बाहर से लाते हैं, दूध बाहर से लाते हैं, इलायची और अदरक बाहर से लाते हैं और फिर आप कहते हैं कि यह चाय तो हमने घर में 'बनाई' है।

चाय की ही तरह भारत में जो मोबाइल फ़ोन बनते हैं, उनका क़रीब 85% बाहर से आता है। यहाँ बस उसकी फ़िनिशिंग होती है। यदि तकनीकी भाषा में कहें तो हमारा योगदान (वैल्यू एडिशन) केवल 15% है।

रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर और प्रख्यात अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने इस साल मई में इसी सच्चाई की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा था कि भारत में मोबाइल फ़ोन के उत्पादन में जो तेज़ी आई है, वह असेंबली (पुर्ज़ा जोड़ाई) के कारण से है। हम बाहर से कलपुर्ज़े लाते हैं, यहाँ उनको जोड़ते हैं और कहते हैं कि हम दुनिया के दूसरे नंबर के मोबाइल उत्पादक हो गए।

भारत में मोबाइल बनाने (यानी अंतिम रूप देने का) के काम में तेज़ी आने का एक महत्वपूर्ण कारण है सरकार की PLI स्कीम यानी उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना। इसके तहत मोबाइल फ़ोन बनाने वालों को भारत सरकार इनवॉइस मूल्य पर 6% से 4% तक की सब्सिडी देती है अगर वे भारत में ही फ़ोन बनाएँ। यहाँ फ़ोन 'बनाने' का मतलब फ़ोन में इस्तेमाल हुआ हर हिस्सा भारत में बनाना नहीं है, केवल उसको जोड़कर मोबाइल का रूप देना है। इससे मोबाइल कंपनियों को दोहरा लाभ हो रहा है।

पहला यह कि एक स्मार्टफ़ोन में 1500 से 2000 तक छोटे-बड़े पुर्ज़े होते हैं जिनको रोबॉट के ज़रिए जोड़ा नहीं जा सकता। उसके लिए दक्ष मानवीय हाथों की ज़रूरत होती है। भारत में ये दक्ष हाथ सस्ते में मिल जाते हैं। दूसरे, बाहर से ये कलपुर्ज़े लाकर भारत में जोड़कर अंतिम रूप देकर उनको अच्छी-ख़ासी सब्सिडी का लाभ भी मिलता है।

उधर केंद्र सरकार को यह कहने का मौक़ा मिल जाता है कि भारत मोबाइल फ़ोन बनाने वालों में दुनिया में नंबर 2 हो गया और आज 99% भारतीय भारत में बना मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करते हैं जबकि सच्चाई यह है कि ये सब-के-सब मेड इन इंडिया फ़ोन नहीं, असेंबल्ड इन इंडिया फ़ोन हैं।

अब आप ही फ़ैसला करें कि राहुल गाँधी ने जब कहा कि आप विदेशी फ़ोन इस्तेमाल करते हैं तो क्या वे अपनी मूर्खता प्रदर्शित कर रहे थे या जो शख़्स उनको मूर्खों का सरदार बताता है, वह ख़ुद जनता को मूर्ख बना रहा है।

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