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वरुण गांधी का बग़ावती सुर, कहा, चुनाव में टिकट मिले या नहीं, मुद्दे उठाते रहेंगे

वरुण गांधी का बग़ावती सुर, कहा, चुनाव में टिकट मिले या नहीं, मुद्दे उठाते रहेंगे

बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने क्यों कहा कि उन्हें चुनाव में टिकट मिले या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता, वे मुद्दे उठाते रहेगे? क्या यह खुली बग़ावत है?

कई बार केंद्रीय नेतृत्व व सरकार की आलोचना कर पार्टी की आँख की किरकिरी बन चुके बीजेपी नेता वरुण गांधी ने संकेत दे दिया है कि वे पार्टी के ख़िलाफ़ बग़ावत जारी रखेंगे।

उन्होंने अब कहा है कि इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है कि पार्टी उन्हें चुनाव में टिकट देती है या नहीं, वे आम जनता से जुड़े मुद्दे उठाते रहेंगे। उन्होंने इसके साथ ही यह भी कह दिया कि उनकी माँ ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता था। 

क्या कहा वरुण  गांधी ने?

पीलीभीत के इस सांसद ने बहेड़ी गाँव में लोगों से बात करते हुए कहा, "ये नेता डरते हैं कि उन्हें चुनाव में टिकट नहीं मिलेगा। यदि जन प्रतिनिधि ही जनता की आवाज़ न उठाएं तो कौन उठाएगा?"

वरुण गांधी ने इसके आगे अधिक अहम बातें कहीं। उन्होने कहा,

मुझे चुनाव में टिकट न मिले तो इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ने को है। मेरी माँ ने तो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता था। मैं सिर्फ सच कहता हूँ, सरकारें तो आती जाती रहती हैं।


वरुण गांधी, नेता, बीजेपी

याद दिला दें कि वरुण गांधी की माँ मेनका गांधी ने 1998 और 1999 में पीलीभीत से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव जीता था। 

वरुण गांधी यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि बीजेपी में किसी नेता में यह हिम्मत नहीं थी कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुद्दा उठाता। 

एमएसपी का मुद्दा उठाया था वरुण ने

बता दें कि कुछ दिन पहले ही बीजेपी के इस सांसद ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) का मुद्दा उठाया था। उन्होंने एमएसपी क़ानून को लेकर कुछ सुझावों की एक लिस्ट संसद को सौंपी थी।

वरुण ने एमएसपी पर एक ट्वीट कर कहा था, "भारत के किसान और उनकी सरकारें लंबे समय से कृषि संकट पर बहस कर रही हैं। एमएसपी कानून का समय आ गया है।"

उन्होंने इसके आगे कहा था, "मैंने प्रस्ताव तैयार किया और उसे संसद को सौंपा है, मुझे लगता है कि यह कानून का एक ज़रूरी हिस्सा हो सकता है। इस पर मैं किसी भी आलोचना का स्वागत करता हूँ।"

वरुण से परेशान बीजेपी?

लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब वरुण गांधी ने अपनी ही सरकार और पार्टी की आलोचना की है।

उन्होंने इसके पहले 30 नवंबर को 'इंडियन एक्सप्रेस' में एक लेख लिख कर अर्थव्यवस्था पर सरकार की नीतियों और उसके कामकाज की आलोचना की थी। उन्होंने 'पॉलिसी मेकर्स मस्ट ब्रेक इंडियाज़ साइकिल ऑफ पॉवर्टी' में लिखा था, "पिछले दशक में हमारे नीति निर्माताओं ने लगातार सैकड़ों अप्रभावी नीतियों की घोषणा की। इन नीतियों का लक्ष्य भारत में मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहन देना था। नौकरियाँ पैदा करनी थी और किसानों की आमदनी बढ़ानी थी।"

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वरुण गांधी माँ मेनका गांधी के साथ

इसी तरह वरुण गांधी ने बेरोज़गारी और नियुक्ति परीक्षा में घपले के मुद्दे को उठा कर सवाल किया था कि युवा आखिर कब तक सब्र रखे। 

वरुण गांधी ने ट्वीट किया था, "पहले तो सरकारी नौकरी ही नहीं है, फिर भी कुछ मौक़ा आए तो पेपर लीक हो, परीक्षा दे दी तो सालों साल रिजल्ट नहीं, फिर किसी घोटाले में रद्द हो। रेलवे ग्रुप डी के सवा करोड़ नौजवान दो साल से परिणामों के इंतज़ार में हैं। सेना में भर्ती का भी वही हाल है। आख़िर कब तक सब्र करे भारत का नौजवान?''

बीजेपी पर हमलावर वरुण

लखीमपुर खीरी की घटना के बाद से ही वरुण गांधी लगातार हमलावर रहे हैं। बीते दिनों एक और बेहद गंभीर ख़तरे की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा था कि लखीमपुर खीरी की घटना को हिंदू बनाम सिख बनाने की कोशिश की जा रही है। 

इसके पहले वरुण कह चुके हैं कि हत्या कर प्रदर्शनकारियों को चुप नहीं कराया जा सकता है। 

उन्होंने कुछ दिन पहले गोडसे जिंदाबाद के नारे लगाने वालों को भी लताड़ा था। उन्होंने कहा था कि ऐसे लोग इस देश को शर्मिंदा कर रहे हैं। 

पार्टी को चुनौती

वरुण गांधी शायद यह संदेश देना चाहते हैं कि वह किसानों के हक़ में अपनी आवाज़  पूरी मज़बूती के साथ उठाते रहेंगे और अगर पार्टी को उनका बोलना पसंद नहीं आ रहा है तो वह कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी इसे लेकर चर्चा है कि वरुण गांधी बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आ सकते हैं। उनके ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई होगी, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। लेकिन पीलीभीत के इस सांसद ने पार्टी नेतृत्व को एक तरह से चुनौती तो दे ही दी है। 

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