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फ़ाइजर ने वैक्सीन की मंजूरी वाला अपना आवेदन वापस क्यों लिया?

फ़ाइजर ने वैक्सीन की मंजूरी वाला अपना आवेदन वापस क्यों लिया?

फ़ाइजर ने कोरोना वैक्सीन की आपात मंजूरी के लिए दिया गया अपना आवेदन आख़िरकार वापस ले लिया है। क़रीब दो महीने पहले सबसे पहले फ़ाइजर ने ही भारत में वैक्सीन की मंजूरी के लिए आवेदन किया था। 

फ़ाइजर ने कोरोना वैक्सीन की आपात मंजूरी के लिए दिया गया अपना आवेदन आख़िरकार वापस ले लिया है। क़रीब दो महीने पहले सबसे पहले फ़ाइजर ने ही भारत में वैक्सीन की मंजूरी के लिए आवेदन किया था। फ़ाइजर की वैक्सीन ही पहली वैक्सीन है जिसे इंग्लैंड में सबसे पहले आपात मंजूरी मिली और फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी इसको मंजूरी दे दी। अब तक दुनिया भर के दर्जनों देशों में इसको मंजूरी मिल चुकी है। इसकी वैक्सीन संक्रमण को रोकने में 95% प्रभावी पाई गई है। हालाँकि, भारत में इसे मंजूरी नहीं मिल पाई।

अमेरिकी कंपनी फ़ाइजर ने शुक्रवार को कहा कि दो महीने तक अधिकारियों से मंजूरी के लिए इंतज़ार करने के बाद इसने अपने आवेदन को वापस लेने का फ़ैसला लिया है। आख़िरी बार इसी हफ़्ते 3 फ़रवरी को विशेषज्ञों की समिति के साथ बैठक में भी बात नहीं बनी। अधिकारियों ने फ़ाइजर से और अधिक जानकारी मांगी जो कंपनी नहीं दे पाई।

कंपनी का कहना है कि यह प्राधिकरण के साथ 'जुड़ाव जारी रखेगी' और अतिरिक्त जानकारी के साथ मंजूरी के लिए फिर से आवेदन करेगी। हालाँकि कंपनी की ओर से जो कहा गया है उससे साफ़ नहीं है कि क्या अतिरिक्त जानकारी इससे मांगी गई थी। 

फ़ाइजर के प्रवक्ता ने कहा कि फ़ाइजर भारत सरकार द्वारा उपयोग के लिए अपनी वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है और आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के अपेक्षित मानकों को पूरा करने के लिए भी। 

दिसंबर महीने की शुरुआत में सबसे पहले फाइजर और फिर सीरम इंस्टीट्यूट व भारत बायोटेक ने वैक्सीन की मंजूरी के लिए विशेषज्ञ पैनल को आवेदन किया था। आँकड़े पर्याप्त नहीं होने की बात कहकर तीनों को ही मंजूरी नहीं दी गई थी।

तीनों कंपनियों से कहा गया था कि तीसरे चरण के ट्रायल के पूरे आँकड़े उपलब्ध कराएँ

भारत में आवेदन करने से पहले ही फ़ाइज़र को इंग्लैंड में आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी मिल चुकी थी और इसका टीका भी लगाया जाने लगा था। इसी आधार पर फ़ाइज़र ने भारत में क्लिनिकल ट्रायल से छूट देने के साथ डीसीजीआई में आवेदन किया था। 

न्यू ड्रग्स एंड क्लिनिकल ट्रायल नियम, 2019 के मुताबिक़ कोई कंपनी इस तरह की छूट माँग सकती है। ऐसा तभी हो सकता है जब उस वैक्सीन को दूसरे किसी देश में मंजूरी दी गई हो और इसे वहाँ से खरीदा जा रहा हो। 

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फिर 30 दिसंबर को फिर से विशेषज्ञ पैनल ने बैठक की, लेकिन तब भी किसी कंपनी की वैक्सीन को मंजूरी नहीं मिली। 

1 जनवरी को फिर से बैठक हुई और इसमें सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन कोविशील्ड को आपात मंजूरी दे दी गई। एक दिन बाद दो जनवरी को भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को भी मंजूरी दे दी गई। हालाँकि फ़ाइजर को तब भी मंजूरी नहीं दी गई और अतिरिक्त आँकड़े माँगे गए थे।

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भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की मंजूरी पर विवाद भी हुआ था। मंजूरी दिए जाने के बाद सवाल यह उठा कि जब कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल पूरे ही नहीं हुए हैं तो बिना पूरे आँकड़ों के कैसे मंजूरी दी गई। विवाद के बाद फिर यह ख़बर आई कि कोवैक्सीन को मंजूदी दिए जाने की सिफारिश वाले नोट के आख़िर में लिखा गया है, ‘विचार-विमर्श के बाद समिति ने एक कड़े एहतियात के साथ जनहित में आपात स्थिति में सीमित उपयोग के लिए मंजूरी देने की सिफारिश की। इसका इस्तेमाल क्लिनिकल ट्रायल मोड में, टीकाकरण के लिए अधिक विकल्प के रूप में करने की सिफ़ारिश की गई। विशेष रूप से नये क़िस्म के कोरोना संक्रमण की स्थिति में। इसके अलावा फर्म अपने तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल को जारी रखेगी और उपलब्ध होने पर आँकड़े पेश करेगी।’

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