फाइजर वैक्सीन भारत में क्यों नहीं? सीईओ ने किसे ज़िम्मेदार बताया
फाइजर की वैक्सीन भारत में उपलब्ध होगी या नहीं और होगी तो कब होगी? इस सवाल पर यदि भारत सरकार और फाइजर के प्रतिनिधियों के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो अब लीजिए सीधे फाइजर के चेयरमैन और सीईओ एल्बर्ट बाउर्ला से ही जानिए कि भारत में फाइजर की वैक्सीन उपलब्धता पर वह क्या कहते हैं। उन्होंने कहा है कि इस वैक्सीन को भारत में मंजूरी नहीं मिली है और वह अपनी तरफ़ से इसके लिए हर कोशिश कर रहे हैं। उनका यह बयान तब आया है जब भारत सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि कुछ शर्तों को लेकर सहमती नहीं बन पाई है। हालाँकि सरकार यह भी उम्मीद जता रही है कि जल्द ही सहमति बन जाने और जुलाई तक टीके को लेकर क़रार हो जाने की संभावना है।
फाइजर के सीईओ का ताज़ा बयान किसी सरकारी प्रतिक्रिया में नहीं आया है। न ही किसी पत्रकार के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया है। उन्होंने भारत के एक नागरिक द्वारा कोरोना टीके को लेकर लिखे गए ख़त के जवाब में प्रतिक्रिया दी है। पुणे के प्रकाश मिरपुरी ने ईमेल से फाइजर के सीईओ से पूछा था कि उनकी कंपनी की कोरोना वैक्सीन भारत में कब उपलब्ध होगी।
मिरपुरी के उसी ईमेल के जवाब में एल्बर्ट बाउर्ला ने उनको ख़त लिखा। उसमें उन्होंने मिरपुरी के स्वास्थ्य का हालचाल जाना और इसके लिए उनकी तारीफ़ भी की कि वह और उनका परिवार फाइजर-बायो एन टेक की वैक्सीन लेना चाहता है।
बाउर्ला ने लिखा है, 'निश्चित तौर पर हम चाहते हैं कि आप जितनी जल्द संभव हो फाइजर-बायो एन टेक की वैक्सीन लगवाएँ, लेकिन हमें अभी तक भारत में इसके लिए नियामक मंजूरी नहीं मिली है। और हम इसके लिए जो कुछ भी हो सकता है वह कर रहे हैं कि सरकार के साथ क़रार कर पाएँ जिससे कि सरकार के टीकाकरण अभियान के लिए हमारे टीके उपलब्ध हो सकें।'
पुणे निवासी मिरपुरी ने फाइजर के सीईओ को ख़त क्यों लिखा? इसके जवाब में वह कहते हैं उनका दोस्त अमेरिका में रहता है जिनकी माँ अमेरिकी राष्ट्रपति के आवास ह्वाइट हाउस में डॉक्टरों के पैनल में हैं। मिरपुरी जब कोरोना संक्रमित थे और अस्पताल में भर्ती थे तो उनके दोस्त से उन्हें फाइजर वैक्सीन लगवाने का सुझाव मिला था। 'इंडिया टुडे' की रिपोर्ट के अनुसार उनका दोस्त उन्हें बार-बार यह कहता कि फाइजर सबसे बेहतरीन वैक्सीन है, वह फाइजर वैक्सीन लगवाए। रिपोर्ट के अनुसार मिरपुरी ने कहा कि क्योंकि उनकी माँ ह्वाइट हाउस में डॉक्टरों के पैनल में हैं इसलिए उन्हें यह ज़्यादा विश्वसनीय लगा।
रिपोर्ट के अनुसार मिरपुरी जब कोरोना से ठीक होकर घर लौटे तो उन्होंने तीन वैश्विक कंपनियों को कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए ख़त लिखे। उन्होंने इन कंपनियों में शेयर ख़रीदने का भी फ़ैसला किया और 5 लाख रुपये निवेश किए।
यानी वह उन कंपनियों के शेयरधारक हो गए। हालाँकि मिरपुरी को फाइजर के सीईओ से वैक्सीन उपलब्ध होने का आश्वासन मिला है, लेकिन उन्होंने तय किया है कि फ़िलहाल भारत में जो वैक्सीन उपलब्ध है वह उसे लगवाएँगे।
वैसे, देश में वैक्सीन की काफ़ी कमी की शिकायतें आ रही हैं और इस वजह से टीकाकरण अभियान धीमा पड़ गया है। इसी कारण फाइजर और मॉडर्ना जैसे टीके की भी ज़रूरत ज़्यादा महसूस की जा रही है। लेकिन फाइजर और भारत सरकार के क़रार करने में एक दिक्कत आ रही है। दिक्कत है नियामक छूट को लेकर। फाइजर कंपनी चाहती है कि उसे टीके लगाने से दुष्प्रभाव जैसी किसी क्षति की पूर्ति के रूप में दिए जाने वाले हर्जाने जैसी नियामक छूट मिले। यानी कंपनी चाहती है कि सरकार यह दावा करे कि किसी दुष्प्रभाव पड़ने की स्थिति में उसे क़ानूनी छूट मिले और उससे सरकार ख़ुद निपटे।
इसको लेकर पिछले कुछ हफ़्तों में दोनों पक्षों के बीच कई दौर की वार्ता भी हो चुकी है। इसमें फाइज़र के चेयरमैन और सीईओ एल्बर्ट बाउर्ला भी शामिल रहे थे। फाइजर का तर्क है कि उसने जिस किसी भी देश के साथ क़रार किया है उसमें उसे दुष्प्रभाव की स्थिति में नियामक छूट मिली है। इसमें अमेरिका सहित कई यूरोपीय देश शामिल हैं। कंपनी ऐसा ही भारत सरकार से चाहती है।
इधर भारत सरकार का कहना है कि उसने जिस किसी भी कंपनी के साथ क़रार किया है उसमें उसने किसी भी कंपनी को ऐसी छूट नहीं दी है। देश में फ़िलहाल तीन कंपनियों- कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक की वैक्सीन की मंजूरी मिली है और इन तीनों कंपनियों के टीके लगाए भी जा रहे हैं। यदि सरकार वह छूट फाइजर को देती है तो दूसरी कंपनियों को भी देने की मजबूरी होगी। यहीं पर पेच फँस रहा है।
हालाँकि सरकार ने उम्मीद जताई है कि इस गतिरोध को जल्द दूर कर लिया जाएगा और जुलाई तक फाइजर की वैक्सीन देश में उपलब्ध होने की संभावना है।