पीएफआईः एनआईए का ताजा एक्शन क्या बैन लगाने के लिए है
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर एनआईए, ईडी, तमाम राज्यों की पुलिस का ताजा क्रैकडाउन बता रहा है कि केंद्र सरकार इस संगठन पर पाबंदी लगाने की घोषणा कभी भी कर सकती है। पीएफआई चूंकि इस बैन को कोर्ट में जरूर चुनौती देगा, इसलिए सरकार सबूतों के साथ ही बैन लगाना चाहती है। पीएफआई पर बीच-बीच में सरकारी एक्शन हो रहे थे लेकिन इतने बड़े पैमाने पर पहली बार कार्रवाई हुई है। पीएफआई पर केरल में आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या का संगीन आरोप है। बिहार में पिछले दिनों पीएफआई से जुड़े ऐसे लोग पकड़े गए हैं जिन पर प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की कथित साजिश रचने का आरोप है। केरल समेत कई राज्यों में पीएफआई आरएसएस के काम पर नजर रखता है और कानूनी तौर पर शिकायतें दर्ज कराता रहता है। कर्नाटक में बजरंग दल के हथियार ट्रेनिंग कैंप के खिलाफ उसकी शिकायत ने बोम्मई सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी।
पीएफआई पर पिछले दिनों कर्नाटक में हिजाब आंदोलन चलाने, हलाल मीट, रामनवमी पर हिंसा जैसे तमाम मुद्दों को लेकर आरोप लगाए गए। इससे पहले सीएए, एनआरसी और शाहीन बाग आंदोलन के दौरान भी पीएफआई का नाम आ चुका है। उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों के पीछे भी पीएफआई का नाम आया था। यह अलग बात है कि उस दंगे में सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 53 लोग मारे गए थे, जिसमें 40 मुसलमान और 13 हिन्दू थे।
विगत वर्षों में मुस्लिम छात्रों ने सिमी संगठन खड़ा किया था। जिस पर कांग्रेस शासनकाल में बैन लगा। वो बैन अब तक जारी है। सिमी में उस समय अब्दुल रहमान और अब्दुल हामिद भी थे। सिमी पर बैन लगने के बाद इन्हीं लोगों ने पीएफआई स्थापित की और इसके अलावा एक राजनीतिक पार्टी एसडीपीआई (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) भी बनाई गई। पीएफआई का काम सोशल वर्क था, जबकि एसडीपीआई राजनीतिक रूप से सक्रिय की गई। लेकिन पीएफआई ज्यादा बदनाम हुआ।
आरएसएस और बीजेपी ने ही सबसे पहले पीएफआई पर बैन लगाने की मांग की। 2018 में बीजेपी की सरकार कई राज्यों में आ चुकी थी। बीजेपी चाहती तो वो एकसाथ अपने राज्यों में इस संगठन पर बैन लगवा सकती थी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इस प्रयोग की शुरुआत 2018 में झारखंड से हुई। पीएफआई पर सबसे पहले 2018 में झारखंड की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने बैन लगाया था। लेकिन छह महीने बाद रांची हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। लेकिन 6 महीने बाद बीजेपी सरकार ने फिर से पीएफआई पर बैन लगा दिया। लेकिन 2019 में बीजेपी झारखंड में बुरी तरह हार गई। लेकिन सरकार जाने से पहले 12 फरवरी 2019 को उसने पीएफआई पर फिर से बैन लगा दिया। अब पीएफआई की पाबंदी से मुक्ति की अपील झारखंड सरकार के पास पेंडिंग है। इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ। झारखंड के अलावा किसी और बीजेपी शासित राज्य ने बैन नहीं लगाया। 2018 में जब झारखंड हाईकोर्ट ने बैन हटाया था तो उस समय कोर्ट ने कहा था कि पुलिस या जांच एजेंसी एक भी सबूत पीएफआई के खिलाफ पेश नहीं कर सकी है, जिसके आधार पर बैन को जारी रखा जाए।
कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने पहली बार 2010 में पीएफआई पर एक डोजियर बनाया था, जिसने समूह को "इस्लामिक संगठनों का एक परिसंघ जो प्रतिबंधित इस्लामिक आतंकवादी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के साथ सहयोग कर रहा था" कहा था। आईबी ने इस डोजियर में कहा था कि "नागरिक मंच, गोवा, सामुदायिक सामाजिक और शैक्षिक सोसायटी, राजस्थान, नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, पश्चिम बंगाल, लिओंग सोशल फोरम, मणिपुर और सामाजिक न्याय संघ, आंध्र प्रदेश जैसे संगठन सभी पीएफआई के बढ़ते नेटवर्क का हिस्सा थे।"
2017 में, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गृह मंत्रालय में एक और व्यापक डोजियर पेश किया। 2017 से ही बीजेपी और आरएसएस पीएफआई को बैन करने की आवाज प्रमुखता से उठा रहे हैं। एनआईए ने अपने डोजियर में पीएफआई का संबंध आतंकवाद से बताया है। कई इस्लामिक संगठनों के साथ पीएफआई के कथित संबंधों को सूचीबद्ध किया गया है। गुरुवार को जब देशभर में पीएफआई पर क्रैकडाउन की खबरें खासतौर पर टीवी चैनलों पर आने लगीं तो उनमें एक बात कॉमन थी, जिसमें एनआईए के हवाले से कहा गया था कि पीएफआई आतंकवाद का सबसे बड़ा मॉड्यूल है। इस क्रैकडाउन से पीएफआई पर देशव्यापी बैन का रास्ता साफ हुआ है।
एनआईए ने 2020 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पीएफआई दरअसल नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) का दूसरा अवतार था, जिसे 1993 में बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद के दंगों के बाद बनाया गया था। एनआईए की उस रिपोर्ट के मुताबिक “एनडीएफ ने बाद में तमिलनाडु के एमएनपी, कर्नाटक के केएफडी, सिटीजन फोरम (गोवा), कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी (राजस्थान), नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति (आंध्र प्रदेश) आदि के साथ विलय कर पीएफआई का गठन किया। पीएफआई के गठन की घोषणा पहली बार 9 नवंबर 2006 को बेंगलुरु में की गई थी।
पीएफआई के राजनीतिक मुखौटे एसडीपीआई ने केरल में पंचायत चुनावों में हिस्सा लिया था। एनआईए ने अपने डोजियर में पीएफआई और उसकी राजनीतिक शाखा एसडीपीआई को बेंगलुरु विस्फोट मामले, केरल के प्रोफेसर की हथेली काटने का मामला, केरल लव जिहाद मामले में शामिल होने के लिए सूचीबद्ध किया था। जून 2022 में गोवा, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में हिंसा भड़क गई थी। उससे पहले 14 अप्रैल को, मध्य प्रदेश बीजेपी प्रमुख वी.डी. शर्मा ने आरोप लगाया था कि पीएफआई ने खरगोन में आगजनी और पथराव के लिए फंडिंग की थी। बीजेपी युवा मोर्चा के प्रमुख तेजस्वी सूर्या ने भी पीएफआई पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप लगाया था।
पैगंबर मोहम्द पर विवादित टिप्पणी का मामला गरमाने के बाद यूपी, एमपी, गुजरात में जुमे वाले दिन मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। केंद्रीय जांच एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया था कि इन प्रदर्शनों के पीछे पीएफआई थी, जिसने मुसलमानों से प्रदर्शन का आह्वान किया था। हालांकि इन प्रदर्शनों के बाद वहां की बीजेपी सरकारों ने मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर भेजकर कार्रवाई की। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं।
क्या कहना है पीएफआई के महासचिव अनीस अहमद का
हालांकि पीएफआई के महासचिव अनीस अहमद का कहना है संगठन ने देश के खिलाफ कुछ भी नहीं किया है और अगर सरकार ने इसे प्रतिबंधित करने की कोशिश की तो वह अदालत का सहारा लेंगे। अनीस ने हाल ही में बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि पीएफआई का भारत को गजवा-ए-हिन्द बनाने का न इरादा है और न ऐसा सपना है। उसका भारतीय संविधान में अटूट विश्वास है। वो एक जिम्मेदार संगठन है जो मुसलमानों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए काम कर रहा है।अनीस ने बीबीसी से कहा था - हम भारत को इस्लामी देश नहीं बनाना चाहते हैं। न ही हिन्दुओं की हत्या हमारे एजेंडे का हिस्सा है। बीबीसी के मुताबिक उन्होंने कहा कि 'इंडिया 1947 एम्पावरिंग पीपुल' हमारा एक ड्राफ्ट जरूर है, जिसे 'एम्पावर इंडिया फाउंडेशन' ने तैयार किया था। इसे भारत की आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर मशहूर जज राजिंदर सच्चर ने दिल्ली में रिलीज किया था।
बीबीसी के यह पूछे जाने पर कि सरकारी एजेंसियां और मीडिया उन्हें आतंकवादी संगठन क्यों कहता और लिखता है, इसके जवाब में पीएफआई महासचिव अनीस अहमद ने कहा कि हम सरकार की मुस्लिम विरोधी नीतियों की आलोचना करते हैं। मुसलमान अपने संवैधानिक अधिकार इस देश में मांग सकें, इसके लिए हम उन्हें ताकत दे रहे हैं, जागरूक कर रहे हैं तो पूरी कोशिश की जा रही है कि हमें आतंकी और आपराधिक संगठन बना दिया जाए।
बजरंग दल और पीएफआई
पीएफआई और उसका राजनीतिक संगठन एसडीपीआई बीजेपी और कांग्रेस की गतिविधियों पर बारीक नजर रखता है। किसी भी कमजोरी को पकड़ कर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करता है। कर्नाटक में एनआईए ने जिन लोगों को पकड़ा है, उनमें वो लोग हैं जिन्होंने राज्य के कोडगु में बजरंग दल के हथियार ट्रेनिंग कैंप के खिलाफ मई में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।दक्षिण कोडागु के पोन्नमपेट में साईं शंकर शिक्षा संस्थान में हथियारों का प्रशिक्षण कैंप बजरंग दल की ओर से आयोजित किया गया था। इसकी रिपोर्ट और तस्वीरें मीडिया में प्रमुखता से आई थीं।
बजरंग दल के हथियार ट्रेनिंग कैंप के खिलाफ सिर्फ पीएफआई और एसडीपीआई की ही शिकायत पुलिस को मिली थी। पोन्नमपेट शहर में साईं शंकर स्कूल के मैदान में आयोजित इस शिविर में एयर गन का इस्तेमाल भी किया गया था।
कोडागु के जिस पुलिस अधिकारी ने पीएफआई और एसडीपीआई की शिकायतों पर जांच शुरू की थी, उसे वहां से कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने हटा दिया। विवाद बढ़ा तो बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और बीजेपी विधायक सी.टी. रवि ने दावा किया कि बजरंग दल का ट्रेनिंग कैंप आत्मरक्षा पाठ्यक्रम का एक हिस्सा था। उन्हें एके-47 और बम इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया था। बजरंग दल हर साल अपने कार्यकर्ताओं को आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षित करता है।
संघ से जुड़ी श्रीराम सेना के संस्थापक प्रमोद मुतालिक ने भी शिविर का बचाव करते हुए कहा कि आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण देने में कुछ भी गलत नहीं है।
बहरहाल, बजरंग दल का प्रशिक्षण शिविर 5 से 11 मई तक आयोजित किया गया था। ट्रेनिंग लेने वाले कार्यकर्ताओं ने 10 मई को पोन्नमपेट शहर में एक जुलूस में भाग लिया। यह जुलूस संघ के पथ संचालन जैसा था।
बजरंग दल के हथियार ट्रेनिंग कैंप का मामला पूरी तरह दब चुका है। राज्य की बीजेपी सरकार ने आरोपों की कोई जांच नहीं कराई। पुलिस रेकॉर्ड में मामला बंद हो चुका है।