देश में जातिगत, धार्मिक भेदभाव कितना गहरा? जानें प्यू रिसर्च ने क्या कहा
देश में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव होता है या नहीं? इस सवाल का जवाब बेहद आसान है। हो भी क्यों न! चाहे हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला हो या आईआईटी बॉम्बे के दलित छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या का। चाहे देश भर में दलितों पर उत्पीड़न के मामले हों या मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रती भाषण व लिंचिंग के मामले, देश भर में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव की ख़बरें आती रही हैं। तो सवाल है कि कितने लोग यह मानते हैं कि ऐसे भेदभाव होते हैं? इस सवाल का जवाब प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में आया है।
प्यू रिसर्च सेंटर की नई रिपोर्ट के अनुसार 70 प्रतिशत से अधिक भारतीयों का मानना है कि भारत में धार्मिक भेदभाव या तो मध्यम या बहुत बड़ी समस्या है। 69 फीसदी भारतीय मानते हैं कि भारत में जातिगत आधार पर भेदभाव होता है। खास बात यह है कि यह दुनिया भर में सर्वेक्षण किए गए 36 देशों में सबसे अधिक अनुपात में है। हालाँकि अन्य देशों के उत्तरदाताओं से जाति के बजाय ‘नस्लीय और जातीय’ भेदभाव के बारे में पूछा गया था।
भारतीयों में धार्मिक और जातिगत भेदभाव एक बड़ी चिंता है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'कुल मिलाकर इस सर्वेक्षण में हमने जिन अन्य मुद्दों के बारे में पूछा, उनकी तुलना में धार्मिक भेदभाव के बारे में कुछ कम चिंता है। फिर भी 29 प्रतिशत वयस्कों का कहना है कि धर्म के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव एक बहुत बड़ी समस्या है, और 27 प्रतिशत का कहना है कि यह एक मध्यम रूप से बड़ी समस्या है।' हालाँकि, इसने यह भी नोट किया कि भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहां धार्मिक भेदभाव एक बड़ी चिंता का विषय है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'पांच देशों- बांग्लादेश, फ्रांस, भारत, नाइजीरिया और श्रीलंका- में आधे या उससे ज़्यादा लोगों का मानना है कि धार्मिक भेदभाव एक बहुत बड़ी समस्या है।' भारत में 57 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि धार्मिक भेदभाव एक बहुत बड़ी समस्या है और अन्य 14 प्रतिशत ने कहा कि यह एक मध्यम रूप से बड़ी समस्या है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'सर्वे किए गए देशों में 34 प्रतिशत वयस्कों का कहना है कि नस्लीय या जातीय भेदभाव एक बहुत बड़ी समस्या है। अन्य 34 प्रतिशत इसे एक मध्यम रूप से बड़ी समस्या मानते हैं।'
भारत में उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या जाति और जातीय भेदभाव एक समस्या है और यदि हाँ, तो कितनी बड़ी?
हालांकि, केवल 28 प्रतिशत भारतीय उत्तरदाताओं ने कहा कि जाति और जातीय भेदभाव के कारण ‘काफी असमानता’ है। अन्य 28 प्रतिशत ने कहा कि इस तरह के भेदभाव के कारण 'ठीक ठाक असमानता’ है।
प्यू रिसर्च सेंटर ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है ‘आर्थिक असमानता को दुनिया भर में एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है’। यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र, यूरोप, लैटिन अमेरिका, मध्य पूर्व उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र, उत्तरी अमेरिका और उप-सहारा अफ्रीका के 36 देशों में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। प्यू ने 5 जनवरी से 22 मई, 2024 की अवधि में अमेरिका में 3,600 लोगों और अन्य 35 देशों में 41,503 लोगों का सर्वेक्षण किया। एक तिहाई देशों में सर्वेक्षण फोन पर किए गए, जबकि बाक़ी देशों में सर्वेक्षण व्यक्तिगत रूप से किए गए।
जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव की यह रिपोर्ट उस भारत की स्थिति को दिखाता है जहाँ दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या जैसे मामले हुए। वह एक दलित छात्र थे। वह आंबेडकर छात्र संघ से जुड़े थे। ऐसे मुद्दों पर प्रदर्शन और आंदोलन करते थे जो दक्षिणपंथी जमातों को रास नहीं आते थे। उनकी शिकायत पर वेमुला की छात्रवृत्ति रोक दी गई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक छात्र नेता के साथ मारपीट के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया गया। उन पर कार्रवाई के लिए चिट्ठियां लिखने वालों में संघ के नेता बंडारू दत्तात्रेय भी थे जिनकी चिट्ठी स्मृति ईरानी ने भी विश्वविद्यालय के वीसी तक अग्रसारित की थी जो उन दिनों मानव संसाधन मंत्री हुआ करती थीं।
वेमुला ने अपने पाँच साथियों के साथ क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की थी। लेकिन जब उन्हें विश्वविद्यालय से निकालने का आदेश हुआ तब वह टूट गये। एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद उन्होंने हताशा के किसी कमज़ोर लम्हे में ख़ुदकुशी कर ली थी।
ऐसा ही एक मामला आईआईटी बॉम्बे के एक दलित छात्र दर्शन सोलंकी का आया था। एपीपीएससी यानी आंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल IIT बॉम्बे ने बयान जारी कर कहा था कि 'हमारी शिकायतों के बावजूद संस्थान ने दलित बहुजन आदिवासी छात्रों के लिए स्थान को समावेशी और सुरक्षित बनाने की परवाह नहीं की। प्रथम वर्ष के छात्रों को आरक्षण विरोधी भावनाओं और गैर-योग्यता के ताने के मामले में सबसे अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। हाशिए के समूह से फैकल्टी और काउंसलर की कमी है।'
बयान में यह भी कहा गया कि 'यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदाय के छात्रों को परिसर में छात्रों, संकायों और कर्मचारियों से अत्यधिक उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है'।
इसके अलावा, दलित उत्पीड़न के मामले लगातार आते रहे हैं। चोरी के आरोप में दलितों की पिटाई करना, उनसे दुर्व्यवहार करना, मूँछे काट देना, शादी में घोड़ी पर नहीं चढ़ने देना, एक मटके से पानी नहीं पीना देना जैसी भेदभाव की घटनाएँ लगातार आती रही हैं।
इसी तरह के उत्पीड़न के मामले मुस्लिमों के साथ भी आते रहे हैं। मुस्लिम दुकानदारों का बहिष्कार करने, गोमांस की तस्करी करने का आरोप लगाकर लिंचिंग करने, उनके ख़िलाफ़ धार्मिक नफ़रत फैलाने के मामले भी आते रहे हैं। राजस्थान के अलवर के पहलू खान को 2017 में पीट-पीट कर मार दिया गया था। वे दुधारू गाय को खरीदकर अपने घर जा रहे थे, लेकिन उनको गाय तस्करी करने का आरोप लगाकर लिंच कर दिया गया था।
ऐसा ही मामला 2018 में हापुड़ में आया था जहाँ पशुओं की खरीदारी करने वाले कासिम और समयदीन को गोकशी करने का आरोप लगाकर लिंच कर दिया गया था। इसमें कासिम की मौत हो गई थी। लगातार लिंचिंग की घटनाएँ होती रही हैं और इसको अब तक रोका नहीं जा सका है। इसके साथ ही देश भर में अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रती भाषण के मामले आते रहे हैं। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि इसका नतीज़ा यह होता है कि मुस्लिमों के साथ भेदभाव की घटनाएँ बढ़ीं और उनपर हमले भी बढ़े हैं।