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पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें जल्द ही 100 रुपए पार कर जाएंगी?

पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें जल्द ही 100 रुपए पार कर जाएंगी?

क्या पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों का बढ़ना जारी रहेगा और जल्द ही यह पूरे देश में 100 रुपए प्रति लीटर से ज़्यादा हो जाएगा और उसे ही सामान्य औसत मान लिया जाएगा? क्या केंद्र सरकार इसे रोकने में सक्षम है या वह इसे रोकना ही नहीं चाहती?

क्या पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों का बढ़ना जारी रहेगा और जल्द ही यह पूरे देश में 100 रुपए प्रति लीटर से ज़्यादा हो जाएगा और उसे ही सामान्य औसत मान लिया जाएगा? क्या केंद्र सरकार इसे रोकने में सक्षम है या वह इसे रोकना ही नहीं चाहती?

ये सवाल उठने लाज़िमी इसलिए हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल हो चुकी है। मध्य-पूर्व में यदि तनाव कम नहीं हुआ और सऊदी अरब के तेल ठिकानों पर हूति विद्रोहियों के हमले फिर हो गए तो ये सवाल अधिक महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाएंगे कि उस स्थिति में तेल की कीमतों को संभालना अधिक मुश्किल हो जाएगा। 

क्या है मामला?

सऊदी अरब सरकार ने कहा है कि फ़ारस की खाड़ी स्थित रास टनूरा तेल निर्यात टर्मिनल पर रविवार को मिसाइल हमला हुआ, जिसकी चपेट में धरन शहर भी आया, मिसाइल के कुछ टुकड़े वहाँ भी गिरे। अमेरिकी मदद से बनी सऊदी अरब की सरकारी कंपनी अरेमको का मुख्यालय धरन शहर में ही है। रास टनूरा का तेल टर्मिनल दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यात टर्मिनल माना जाता है, जिसकी क्षमता 65 लाख बैरल प्रतिदिन है। 

इस हमले से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने के आसार एक बार फिर बन रहे हैं। भारत अपनी ज़रूरतों का लगभ 85 प्रतिशत पेट्रोल-डीजल आयात करता है। साफ है कि उसे बढी कीमतों पर कच्चा तेल ही नहीं, पेट्रोल-डीजल और दूसरे उत्पाद भी खरीदने होंगे। 

 - Satya Hindi

भारत में पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कीमत बढ़ने से तो बढ़ती हैं ही, उस पर लगने वाले केंद्रीय व राज्य सरकार के टैक्स भी बढ़ते रहते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कीमतें गिरने पर भी भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें नहीं गिरती हैं।

मध्य-पूर्व में तनाव

अब जबकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, भारत में क्या होगा, यह समझा जा सकता है। 

इसके पहले सऊदी अरब के तेल ठिकानों पर हमला 2019 में हुआ था, जब अरेमको की तेल रिफ़ाइनरी को निशाना बनाया गया था। उस समय कच्चे तेल की कीमत औसतन 36 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थी। हमले के तुरन्त बाद वह बढ़ी और जल्द ही 50 डॉलर की सीमा को पार कर गई। बाद में उसमें कमी आई। 

बढ़ी हुई तेल कीमत के बीच तेल निर्यात करने वाले देश या ओपेक के सदस्य उत्पादन नहीं बढ़ाएंगे, यह लगभग तय है।

इसका ज़्यादा असर भारत पर इसलिए पड़ेगा कि उसने अमेरिकी दबाव में इरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है। डोनल्ड ट्रंप प्रशासन ने इरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया था, मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने उसे अब तक नहीं हटाया है।

कैसे कम हों कीमतें?

इन प्रतिबंधों के तुरन्त हटने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वह इरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है और तेहरान ने उस पर कोई नरमी नहीं दिखाई है।

भारत तेल ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा सऊदी अरब से खरीदता रहेगा और वहाँ की स्थिति तनावपूर्ण बनी रहेगी तो कीमत में कमी का कोई आसार नहीं है। 

ऐसे में पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों पर अंकुश लगाने का एक ही रास्ता बचता है और वह है इस पर लगने वाले केंद्रीय और राज्य टैक्सों में कटौती।

सरकारें राजनीतिक रूप से कुछ भी कहें, पर वे अपने टैक्स में कटौती नहीं करेंगी क्योंकि उनके राजस्व का वह बड़ा स्रोत बना हुआ है। केंद्रीय लोकलुभावन स्कीमें ही नहीं, राज्य सरकार की योजनाओं के लिए भी पैसे का बड़ा हिस्सा वहीं से आता है।

यदि देश में पेट्रोल उत्पादों पर लगने वाले टैक्सों में कमी नहीं होगी या पर्याप्त कटौती नहीं होगी और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती रहीं तो भारत में उनकी कीमतें रोकने का कोई रास्ता नहीं बचता है। यदि कोई राज्य सरकार कटौती करने का साहस दिखाए भी तो वह अंतरराष्ट्रीय बढ़ोतरी को शायद पाट न सके। ऐसे में कीमतें निश्चित तौर पर बढ़ेंगी। मामला सिर्फ इतना है कि यह बढ़तोरी कब होती है। 

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