अदालत की अवमानना क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका चंद्रचूड़-जोजफ़ की बेंच से बाहर
अदालत की अवमानना क़ानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका को जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस के. एम. जोजफ़ के खंडपीठ से हटा लिया गया है।
इस याचिका पर 10 अगस्त को सुनवाई होनी थी। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस जोजफ़ की बेंच में दर्ज थी। 'लाइव लॉ' ने यह ख़बर दी है।
The petition filed by N Ram @nramind @pbhushan1 and Arun Shourie challenging the constitutionality of Sec 2(c)(i) of Contempt Of Courts Act stands deleted from the bench of Justices D Y Chandrachud and KM Joseph.
— Live Law (@LiveLawIndia) August 8, 2020
The case was listed for August 10 as per the advance cause list. pic.twitter.com/rEfhpYMXB9
मशहूर पत्रकार एन. राम, वकील प्रशांत भूषण और पूर्व मंत्री अरुण शौरी ने यह याचिका दायर की थी। इस याचिका में अदालत की अवमानना क़ानून की धारा 2 (सी) (i) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
अदालत ने माँगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार की सुबह अधिकारियों से इस पर सफ़ाई माँगी कि यह याचिका जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच को क्यों दी गई। इसे उस बेंच को दिया जाना चाहिए था, जिसके पास इससे जुड़ा मामला पहले से ही है।
इसके पहले प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना के मामले पर जस्टिस अरुण मिश्र की अगुआई वाली बेंच ने सुनवाई पूरी कर फ़ैसला सुरक्षित रखा था।
प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अवमानना का नोटिस जारी होने के बाद ही अवमानना क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी।
प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ दो मामले
जस्टिस अरुण मिश्र की बेंच के पास अवमानना के दो मामले हैं। एक मामला है जिसमें इस मशहूर वकील ने 2009 में 'तहलका' पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि 16 में से आधे मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट हैं।
इस मामले में 4 अगस्त को सुनवाई पूरी कर ली गई। इस बेंच में जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी भी हैं।
दूसरा मामला है, जिसमें प्रशांत भूषण के दो हफ़्ते पहले के दो ट्वीट पर अदालत ने ख़ुद संज्ञान लेकर नोटिस जारी किया था।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 'अवमानना की अवधारणा की जड़ औपनिवेशिक सोच में है, जिसके लिए लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है।'
प्रशांत भूषण ने अवमानना क़ानून की धारा दो (सी) (i)को यह कह कर चुनौती दी है कि यह एकतरफ़ा, अस्पष्ट है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
अस्पष्ट
उन्होंने यह भी कहा कि इसकी व्याख्या बिल्कुल निजी स्तर पर की जा सकती है और अलग-अलग लोगों की अलग-अलग व्याख्या हो सकती है। यह इस तरह अस्पष्ट है कि अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।ब्रिटेन में 2013 में अदालत की अवमानना के क़ानून को ख़त्म कर दिया गया। यह कहा गया था कि यह क़ानून अस्पष्ट है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है।