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सावरकर को न मानने वालों को जनता के बीच में पीटो: ठाकरे

सावरकर को न मानने वालों को जनता के बीच में पीटो: ठाकरे

ठाकरे ने कहा है कि ऐसे लोगों को इसलिए पीटा जाना चाहिए क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के संघर्ष और इसकी अहमियत का अंदाजा ही नहीं है। 

क्या सावरकर पर भरोसा न करने वालों को जनता के बीच में पीटा जाना चाहिए कम से कम शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे का तो यही मानना है। ठाकरे ने अपनी बात को जायज ठहराते हुए इसके पक्ष में तर्क भी दिये हैं। ठाकरे ने कहा है कि ऐसे लोगों को इसलिए पीटा जाना चाहिए क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के संघर्ष और इसकी अहमियत का अंदाजा ही नहीं है। 

बता दें कि सावरकर को लेकर इन दिनों फिर से विवाद खड़ा हो गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में आरएसएस से संबंद्ध छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र नेताओं ने हाल ही में विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और सावरकर की प्रतिमा लगा दी थी। लेकिन कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से जुड़े छात्र नेताओं ने सावरकर की प्रतिमा पर कालिख पोत दी थी और जूते की माला पहना दी थी। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ासा वायरल हो गया है। एनएसयूआई और वामपंथी छात्र संगठनों का कहना है कि सावरकर को कभी भी सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के समकक्ष नहीं माना जा सकता है। इसी को लेकर हुए विवाद पर शिवसेना प्रमुख ठाकरे ने ये बातें कहीं। ठाकरे ने कहा कि इससे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी भी सावरकर का अपमान कर चुके हैं।

फडणवीस भी उतरे समर्थन में

ठाकरे के बयान से एक दिन पहले महाराष्ट्र की बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि सावरकर के परिवार ने देश की आज़ादी के लिए जो त्याग किया था, उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती और उनकी गरिमा को बनाये रखा जाना चाहिए। फडणवीस ने कहा था कि सावरकर कई क्रांतिकारियों के गुरु थे और अगर कहीं सावरकर का अपमान होता है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा था कि किसी को भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे क़ानून व्यवस्था की स्थिति ख़राब हो।

सावरकर के बारे में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचार कांग्रेस और विपक्षी दलों के विचारों से पूरी तरह अलग हैं। सावरकर को लेकर इनके बीच लंबे समय से सिर-फुटव्वल चलती आ रही है।

बीजेपी और संघ जहाँ सावरकर को वीर, देशभक्त और क्रांतिकारी बताते हैं वहीं कांग्रेस और विपक्षी दल उन्हें यह कहकर प्रचारित करते हैं कि वह न तो वीर थे, न देशभक्त और न ही भारत माता के सच्चे बेटे। विपक्षी दलों का यह भी कहना है कि सावरकर ने अंग्रेजों से रिहाई की भीख माँगी थी और जेल से आज़ादी के बदले अंग्रेजों की ग़ुलामी स्वीकार की थी।

राजस्थान में हुआ था बवाल

सावरकर की जीवनी को लेकर राजस्थान में कुछ समय पहले जमकर बवाल हुआ था। वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने दसवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में एक पाठ शामिल किया था, जिसका नाम था - अंग्रेज सरकार का प्रतिकार और संघर्ष। इस पाठ में आज़ादी की जंग लड़ने वाले स्वंत्रतता सेनानियों की जीवनियाँ शामिल हैं और उनमें विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी भी है। 

लेकिन इसे लेकर तब बवाल खड़ा हो गया था जब पिछले साल दिसंबर में कांग्रेस के नेतृत्व वाली अशोक गहलोत सरकार की ओर से गठित पाठ्यक्रम समिति ने सावरकर की जीवनी में नए अंश जोड़ दिये थे। इसमें तीन बड़ी बातें हैं - पहली, सावरकर ने अंडमान सेलुलर जेल में कष्टों से परेशान होकर रिहाई के लिए चार बार ब्रिटिश हुकुमत के सामने दया याचिका दाख़िल की थी। 

दूसरी बात यह कि सावरकर जेल से छूटने के बाद हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम चलाई। दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार को सहयोग देने की घोषणा की और हिंदुओं की राजनीति का नारा बुलंद किया था। इसके अलावा हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण देकर युद्ध में सक्रिय रहने को कहा।तीसरी बात यह कि सावरकर ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। यह भी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया कि 1948 में सावरकर पर महात्मा गाँधी की हत्या का षड्यंत्र रचने और गोडसे का साथ देने के आरोप में मुक़दमा चला, लेकिन वह मुक़दमे में बरी हो गए।

आज़ादी के आंदोलन में सावरकर की भूमिका को लेकर लंबे समय से बहस चलती आ रही है और इसे लेकर अलग-अलग मत भी हैं। लेकिन शिवसेना प्रमुख का यह बयान कि सावरकर पर भरोसा न करने वालों को जनता के बीच में पीटा जाना चाहिए, यह दिखाता है कि शिवसेना दूसरे पक्ष को उसके विचार रखने की आज़ादी नहीं देना चाहती।

उद्धव ठाकरे कोई नये राजनीतिज्ञ नहीं हैं, वह कई सालों से सक्रिय राजनीति में हैं, जब वह ऐसा बयान दे सकते हैं तो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता तो इस मुद्दे पर क़ानून को हाथ में लेने से क़तई नहीं हिचकेंगे। इसका पता इससे भी चलता है कि सावरकर की प्रतिमा पर कालिख पोतने वाले एनएसयूआई की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अक्षय लाकड़ा ने पुलिस में शिकायत दी है कि इसके बाद से ही उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दी जा रही हैं। लाकड़ा ने पुलिस को ऐसे 11 मोबाइल नंबरों की भी सूची सौंपी है। 

शिवसेना और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने जिस तरह सावरकर के समर्थन में खुलकर बयान दिये हैं और पीटने की बात की है, इससे तो यही लगता है कि इन दलों की सरकारों वाले राज्यों में या देश में सावरकर पर जो ये कहेंगे, उसी को सत्य मानना होगा वरना खुलेआम पीटे जाने की धमकी तो ये दे ही चुके हैं।

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