यूएनएचआरसी में भारत के ख़िलाफ़ पाक प्रस्ताव, दिल्ली की क्या है रणनीति?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बुरी तरह नाकाम होने के बाद पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ एक प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में मंगलवार को पेश कर सकता है। उसका ज़ोर इस बात पर होगा कि इस प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार ख़त्म करने के बाद वहाँ बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन हुए हैं। एक ओर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी जेनेवा पहुँचे हुए हैं तो भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरउद्दीन को जेनेवा भेज दिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ख़ुद वहाँ गए हुए हैं। दोनों ही देश अपनी-अपनी तैयारियों में लगे हैं। भारतीय समय के अनुसार मंगलवार शाम को इस मुद्दे पर गरमागम बहस शुरू हो जाएगी।
यूएनएचआरसी में भारत, पाकिस्तान और चीन समेत 47 सदस्य देश हैं। यदि पाकिस्तान भारत की निंदा करने वाला कोई प्रस्ताव पेश करता है तो उस पर बहस और उसके बाद वोटिंग होगी। यह भारतीय कूटनीति की ज़िम्मेदारी होगी कि वह यह सुनिश्चित करे कि यह प्रस्ताव हर हाल में गिर जाए।
भारत के साथ
लैटिन अमेरिका, एशिया प्रशांत और अफ़्रीका के कई देशों ने भारत को आश्वस्त किया है कि वे कश्मीर के मुद्दे पर उसके साथ हैं। पर भारत को यह देखना होगा कि वे वोटिंग के दौरान मौजूद रहें और प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट करें। यदि उन्होंने कोई बहाना बनाया और वोटिंग के दौरान ग़ैरहाज़िर रहे तो यह बात भारत के ख़िलाफ़ ही जाएगी।यह प्रस्ताव ऐसे समय आने वाला है जिसके एक दिन पहले ही यूएनएचआरसी की प्रमुख मिशेल बेकले ने एक बयान जारी कर कश्मीर की घटनाओं पर चिंता जताई और इस बहाने अपरोक्ष रूप से ही सही, भारत की निंदा की है। उन्होंने कहा :
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हाल के दिनों में भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का कश्मीरियों के मानवाधिकारों पर जो असर पड़ा है, मैं उससे काफ़ी चिंतित हूँ। इसमें इंटरनेट और लोगों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होने के अधिकार पर लगी रोक और स्थानीय रानजीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी भी शामिल है।
मिशेल बेकले, यूएनएचआरसी प्रमुख
हाल के दिनों में भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का कश्मीरियों के मानवाधिकारों पर जो असर पड़ा है, मैं उससे काफ़ी चिंतित हूँ। इसमें इंटरनेट और लोगों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होने के अधिकार पर लगी रोक और स्थानीय रानजीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी भी शामिल है।
बेकले ने इसके साथ ही यह भी कहा कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस की जाँच प्रक्रिया से लोगों को काफ़ी परेशानी हुई है।
यह निश्चित रूप से चिंता की बात है। यह चिंता की बात इसलिए है कि कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भारत और पाकिस्तान दोनों पर ही पहले भी लगते रहे हैं। लेकिन पहले उसे सीधे कश्मीर से जोड़ कर नहीं देखा जाता था, उसे सामान्य मानवाधिकार उल्लंघन ही माना जाता है।
मानवाधिकार उल्लंघन को इस बार सीधे कश्मीर से जोड़ा जा रहा है और कहा जा रहा है कि इलाक़े पर भारत ने एकतरफ़ा फ़ैसला ले लिया, वहाँ के लोगों को शांतिपूर्ण विरोध भी नहीं करने दे रहा है।
बलोचिस्तान का मामला
भारत के पास यह विकल्प बचता है कि वह इस बहस के दौरान पाकिस्तान पर ज़बरदस्त पलटवार करे और उसे ही बचाव की मुद्रा में पीछे धकेल दे। इसके लिए इसके पास दो बिल्कुल ताजा मामले हैं। दो दिन पहले ही बलोचिस्तान में पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन हुए हैं और वहाँ के लोगों ने स्थानीय सरकार पर उनकी आवाज़ को कुचलने का आरोप लगाया है। उन्होंने आज़ादी की माँग तो की ही है, जैसा पहले कई बार कर चुके हैं।
भारत यूएनएचआरसी में यह सवाल उठा सकता है कि बलोचिस्तान में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन हो रहा है, विरोध के किसी सुर के लिए कोई जगह नहीं बची है और विरोध करने वाला लोगों को गायब कर दिया जा रहा है।
पाकिस्तान के अल्पसंख्यक
लगभग ठीक इसी समय पाकिस्तान के सत्तारूढ़ दल का एक सिख नेता परिवार समेत भाग कर भारत आ गया है और यहाँ शरण की गुहार की है। प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ़ के पूर्व विधायक बलदेव सिंह ने कहा है कि उनके देश में अल्पसंख्यक पूरी तरह असुरक्षित हैं वह अब वहाँ नहीं रह सकते। पाकिस्तान पर इस तरह के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। उस पर यह आरोप भी कई बार लग चुका है कि ईसाई, हिन्दू, अहमदिया ही नहीं शिया मुसलमान तक भेदभाव के शिकार होते हैं।ईशनिंदा क़ानून
इसके अलावा भारत ईशनिंदा क़ानून के मुद्दे पर भी इसलामाबाद को घेर सकता है। इस क़ानून के मुताबिक़, पैगंबर मुहम्मद की बुराई करना या उनके ख़िलाफ़ कुछ कहना क़ानूनन अपराध है, जिसकी सज़ा मौत भी हो सकती है। इसके कई उदाहरण हैं। इसमें बदलाव करने की बात करने वाले सलमान तासीर की हत्या उनके सुरक्षा कर्मी ने ही कर दी थी। उसे मौत की सजा हुई है और उसके जनाजे में लाखों लोगों ने शिरकत की थी।पाक को चीन का समर्थन
यूएनएचआरसी में पाकिस्तान के प्रस्ताव का समर्थन चीन करेगा, यह लगभग तय है।
यह दिलचस्प बात है कि चीन के पश्चिम उत्तर प्रांत शिनजियाँग में अलग पूर्वी तुर्किस्तान देश की माँग करने वाले उइगुर मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव के मुद्दे पर भारत भी चुप रहा है।
भारत इस मुद्दे को उछाल कर चीन को रक्षात्मक मुद्दे में ला सकता है। पिछले हफ्ते ही चीन के विशेष स्वायत्त क्षेत्र हॉंग कॉंग में लाखों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए थे, उनके साथ हुई सख़्ती पर भी विश्व समुदाय ने चिंता जताई थी। भारत दूसरे देशों से पूछ सकता है कि अब उनका इस पर क्या कहना है। इस तरह वह बीजिंग को कटघरे में खड़ा कर सकता है।
मंगलवार की यह बैठक भारत के लिए इसलिए भी अहम है कि कुछ दिन बाद ही संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक भी होने वाली है, जिसमें इस बार भारत का प्रतिनिधित्व ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। वह 27 सितंबर को अपनी बात रखेंगे और उसी दिन उसके ठीक बाद या पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी वहाँ बोलेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों देश इसमें एक दूसरे के ख़िलाफ क्या-क्या बोलेंगे और एक दूसरे को घेरने के लिए क्या करेंगे।