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शारदा पीठ गलियारे की माँग से क्यों ख़ुश होगा पाकिस्तान?

शारदा पीठ गलियारे की माँग से क्यों ख़ुश होगा पाकिस्तान?

शारदा पीठ का रास्ता खोलने की माँग को स्वीकार कर पाकिस्तान भारत को कश्मीर पर उलझा सकता है। क्या दिल्ली उसके जाल में फँसने को तैयार है?

करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के बाद अब शारदा पीठ मंदिर तक का रास्ता खोलने की माँग शुरू हो गई है। यह पीठ पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में है और कुपवाड़ा से यह 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा है कि जिस तरह पाकिस्तानी पंजाब स्थित करतारपुर गुरुद्वारे तक के लिए गलियारा बन रहा है, शारदा पीठ के लिए भी वैसा ही इंतज़ाम किया जाए और इसके लिए इस्लामाबाद से बात की जाए। पीपल्स डेमोक्रेटिक फ़्रंट (पीडीपी) की प्रमुख ने इस साल अप्रैल में मोदी को चिट्ठी लिख कर यही माँग की थी।   

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महबूबा मुफ़्ती ने ख़त लिख कर दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क बढाने पर ज़ोर दिया।

करतारपुर साहिब गलियारे की नींव रखे जाते समय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि उनकी सरकार इस पर विचार कर रही है। बहुत संभव है कि पाक सरकार इसके लिए तैयार हो जाए। लेकिन यह मामला उतना सीधा नहीं है जितना करतारपुर का था और इसके साथ कई राजनयिक पेचीदगियाँ जुड़ी हुई हैं जिसके बारे में हम नीचे बात करेंगे। लेकिन पहले जान लें कि क्या है शारदा पीठ।

क्या है शारदा पीठ?

पाक-अधिकृत कश्मीर की नीलम घाटी में तक़रीबन दो हज़ार मीटर की ऊँचाई पर बसे शारदा गाँव में बना यह सरस्वती मंदिर है और यह कुपवाड़ा से 30 किलोमीटर और पीओके स्थित मुज़फ़्फ़राबाद से 150 किलोमीटर की दूरी पर है। इसका उल्लेख साल 632 में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन सांग के लेखों में मिलता है। समझा जाता है कि किसी समय यह मंदिर संस्कृत अध्ययन का बड़ा केंद्र था। इसका धार्मिक महत्व यह है कि यह हिन्दू धर्म के 18 शक्ति पीठों में एक है। मान्यता है कि यहाँ देवी का दायाँ हाथ गिरा था। बाद में यह उपेक्षित पड़ा रहा, इस पर हमले हुए, लूटपाट हुई, लोगों ने यहाँ जाना छोड़ दिया। यह खाली पड़ा रहा। साल 2007 में आए भूकंप से यह टूट-फूट गया। आज हाल यह है कि यह जीर्ण-शीर्ण पड़ा है, यहाँ कोई नहीं जाता है।

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साल 2007 के भूकंप में शारदा पीठ का मदिर बुरी तरह टूट-फूट गया।

वीज़ा का सवाल

शारदा पीठ के साथ सबसे बड़ा पेच यह है कि यह पाक-अधिकृत कश्मीर में है जिसे भारत अपना ‘अटूट हिस्सा’ मानता है। अब सवाल यह है कि जिस हिस्से को भारत अपना मानता है, वहाँ जाने के लिए किसी भारतीय को वीज़ा की ज़रूरत होगी या नहीं। इसी तरह एक प्रश्न पाकिस्तान के संदर्भ में भी उठता है जो न सिर्फ़ पीओके को अपना बताता है, बल्कि भारत के नियंत्रण वाले हिस्से पर भी अपना दावा करता है और उसे भी अपना ही इलाक़ा बताता है। अब यदि शारदा पीठ के लिए 30 किलोमीटर लंबा गलियारा बन गया और पाकिस्तान कश्मीरी पंडितों को अपने यहाँ स्वागत करने को तैयार हो गया तो पाकिस्तान कह सकता है कि आप तो पाकिस्तानी इलाक़े में ही रहते हैं, लिहाज़ा आपको वीज़ा की ज़रूरत नहीं है।

ऐसे में यदि भारत कश्मीरियों को बग़ैर वीज़ा पीओके जाने देता है तो इसका मतलब होगा कि वह पीओके को तो पाकिस्तान का हिस्सा मानता है ही, जम्मू-कश्मीर पर भी पाकिस्तान के दावे को सही समझता है।

उदाहरण अरुणाचल का

इसे अरुणाचल प्रदेश के उदाहरण से समझा जा सकता है। चीन इस पर अपना दावा करता है। कुछ दिन पहले तक चीन अरुणाचल प्रदेश के लोगों को यह कर वीज़ा नहीं देता था कि आप तो चीनी इलाक़े में रहते हैं, आपकी इसकी ज़रूरत नहीं, यूँ ही चले आइए। कई बार चीन में होने वाले खेलों में अरुणाचल के खिलाड़ी भाग नहीं ले पाए क्योंकि सरकार ने उन्हें जाने की अनुमति नहीं दी। एक बार भारतीय सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल बीजिंग गया तो उसमें शामिल अरुणाचल के सदस्य नहीं गए। फ़िलहाल चीन यहाँ के लोगों को ‘स्टेपल’ किया हुआ वीज़ा देता है। उसका कहना है कि अरुणाचल विवादित क्षेत्र है।

पाकिस्तानी चाल?

यह सवाल उठना लाज़िमी है क्या शारदा पीठ तक का रास्ता खोलने की भारतीय माँग को स्वीकार कर पाकिस्तान भारत को कश्मीर मुद्दे पर उलझान में नहीं डाल देगा? उसकी तो यह नीति हो सकती है कि दिल्ली अपने ही जाल में फँस जाए। भारत के नागरिक बग़ैर वीज़ा के यहाँ आएँ और वह दिल्ली से कहे कि ख़ुद आपने इस हिस्से को पाकिस्तान का हिस्सा माना है।

इस्लामाबाद संयुक्त राष्ट्र में यह कह सकता है कि ख़ुद भारत ने पीओके पर उसका दावा मान लिया है और अपने नागरिकों को बग़ैर वीज़ा वहां जाने दिया है। उसका पक्ष मजबूत होगा और भविष्य में किसी दोतरफा बातचीत में दिल्ली को घेर सकेगा।

यदि भारत इसके लिए तैयार न हो तो वह कह सके कि उसका पड़ोसी रिश्ते सुधारना नहीं चाहता, वह तो दो कद़म आगे बढ़ कर गलियारा बनवाने को तैयार है। करतापुर गलियारा इसी रणनीति का एक हिस्सा है। अलग-थलग पड़ा इस्लामाबाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कह सकता है कि हम तो रिश्ते सुधारने और बातचीत करने को तैयार हैं, भारत ही आगे नहीं आ रहा है। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि नींव रखने के कार्यक्रम में ख़ालिस्तान आंदोलन से जुड़े गोपाल चावला को भी बुलाया गया था और उन्हें भारतीय पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिदधू से मिलवा भी दिया गया। सिद्धू विवादों में फँस गए। इमरान ख़ान ने बातचीत का न्योता दे दिया, जिसे अगले ही दिन भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ख़ारिज कर दिया।

लेकिन इस सबके पीछे पाकिस्तान के असली इरादे क्या हैं, यह बात पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी  के 'गुगली' वाले बयान से बिलकुल साफ़ हो जाती है। यही नहीं, करतारपुर के बहाने ख़ालिस्तान समर्थको की आवभगत करके भी पाकिस्तान ने बता दिया कि करतारपुर की आड़ में उसकी मंशा क्या है। इसलिए पाकिस्तान की तरफ़ से होने वाली किसी भी 'पेशकश' पर फ़ैसला भारत को हमेशा फूँक-फूँक कर ही करना पड़ेगा। और देखना पड़ेगा कि इसके पीछे कोई 'छिपा अजेंडा' तो नहीं है!

पिछले चुनाव के प्रचार के ‘पाकिस्तान को सबक सिखाने का दम भरने वाले' नरेंद्र मोदी अगले आम चुनाव के पहले पाकिस्तान के प्रति नरम रुख दिखाने का जोख़िम नहीं उठा सकते। वे फ़िलहाल पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाएँगे। इसलिए शारदा पीठ पर कोई ठोस काम बहुत जल्दी शुरू हो, इसकी संभावना बेहद कम है। और यदि कोई शुरुआत हुई भी तो भारत के लिए बहुत मुश्किल होगा यह तय करना कि वह वीज़ा के मामले में क्या करे।

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