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कनाडा विवाद से फिर चर्चा में खालिस्तान, विदेशों में कौन भड़का रहा है?

कनाडा विवाद से फिर चर्चा में खालिस्तान, विदेशों में कौन भड़का रहा है?

कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और इसको लेकर कनाडा द्वारा भारत के एजेंटों पर आरोप लगाने के बाद खालिस्तान का मुद्दा फिर से उठा है। जानिए, आख़िर भारत के अलावा कनाडा, पाकिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों में कैसी गतिविधियाँ चल रही हैं।

खालिस्तान का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। खासकर कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद। यह जिन्न 2020 में भी 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 36वीं बरसी पर श्री अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बयान के बाद बाहर आया था। अकाल तख़्त सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था है। 

तब जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा था कि सभी सिख खालिस्तान चाहते हैं और अगर सरकार सिखों को खालिस्तान देती है तो वे इसे ख़ुशी से कबूल करेंगे। जब उनसे अकाल तख़्त में खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाने को लेकर पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। उस दौरान वहां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल भी मौजूद थे और उन्होंने खालिस्तान को लेकर सवाल पूछने पर कहा कि अगर कोई हमें देता है, तो हम ले लेंगे। 

खालिस्तान शब्द का मतलब है - खालसा के लिए स्थान। सिख धर्म की मान्यताओं का पालन करने वाले व्यक्ति को खालसा कहते हैं। खालसा शब्द खालिस से बना है और इसका मतलब होता है शुद्ध, खरा।

‘पंजाबी सूबा’ आंदोलन 

इसलिए, खालिस्तान का मतलब हुआ सिखों के लिए एक अलग राष्ट्र। खालिस्तान बनाने के इस आंदोलन ने सिख अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाला के नेतृत्व में 1980 में जोर पकड़ा था। लेकिन इससे पहले देश की आज़ादी के बाद ‘पंजाबी सूबा’ आंदोलन चला था और इसके बाद ही 1966 में पंजाब को अलग सूबा बनाया गया था। 

ऑपरेशन ब्लू स्टार 

भिंडरावाला ने जब खालिस्तान की मांग की थी तो पंजाब में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। कहते हैं कि पंजाब लाशों की मंडी बन चुका था। जब भिंडरावाला और उसके साथी स्वर्ण मंदिर में जाकर छिप गए तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना ने उन्हें स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए 6 जून, 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार किया था। इसमें स्वर्ण मंदिर को खासा नुकसान पहुंचा था और इसके बाद सरकारी नौकरी कर रहे कई सिखों ने इस्तीफ़ा दे दिया था। 

यहां पर इस बात का जिक्र इसलिए किया गया है क्योंकि तब से लेकर आज तक हर साल 6 जून को सिख कट्टरपंथी खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हुए स्वर्ण मंदिर पहुंचते हैं और इस बात को दिखाते हैं कि खालिस्तान की मांग का आंदोलन अभी जिंदा है। 

बीते कुछ समय से पंजाब को अशांत करने की नापाक कोशिशें तेज हुई हैं और इसके पीछे पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस यानी आईएसआई का हाथ बताया जाता है।

सिखों को भड़का रही आईएसआई

पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन खालिस्तान ज़िंदाबाद फ़ोर्स (केज़ेडएफ़) ने बीते साल सितंबर में पंजाब में ड्रोन से हथियार गिराए थे। पुलिस ने आठ ड्रोन से क़रीब 80 किलोग्राम हथियार गिराए जाने का दावा किया था। पंजाब के पुलिस प्रमुख दिनकर गुप्ता ने कहा था कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई केज़ेडएफ़ का समर्थन कर रही है। 

रेफ़रेंडम 2020

सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें 2020 में खालिस्तान के लिए रेफ़रेंडम यानी जनमत संग्रह कराने की बात कही गई है। ऐसा सिख आतंकवादी संगठनों के इशारे पर किया जा रहा है और वे आईएसआई के साथ मिलकर पंजाब के नौजवानों को खालिस्तान के नाम पर भड़काने में जुटे हैं। 

भारत के अलावा पाकिस्तान, कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों में रहने वाले सिखों के बीच भी सिखों के लिए अलग देश के नाम पर उन्हें भड़काया जा रहा है।

पाकिस्तान का नापाक चेहरा 

खालिस्तान आंदोलन को पाकिस्तान की पूरी शह है। पाकिस्तान के इन नापाक इरादों का पता 2019 के नवंबर में करतारपुर स्थित गुरुद्वारे के उद्घाटन के दौरान भी चला था। तब पाकिस्तान की सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जारी किए गए थीम सांग में तीन खालिस्तानी आतंकवादियों का पोस्टर भी दिखाया गया था और इसमें रेफ़रेंडम 2020 लिखा था। 

इस पोस्टर में खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाला, अमरीक सिंह खालसा और मेजर जनरल शबेग सिंह को दिखाया गया है। ये सभी खालिस्तानी अलगाववादी नेता जून, 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए थे।

खालिस्तान समर्थक गोपाल चावला पाकिस्तान के रेल मंत्री शेख रशीद के साथ कई बार दिखाई दिया है। चावला आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी है और उसका कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने में भी हाथ रहा है।

 - Satya Hindi

पाकिस्तान के रेल मंत्री शेख रशीद के साथ खालिस्तानी आतंकवादी गोपाल चावला।

आरएसएस के बढ़ते प्रभाव से विवाद

2019 के अक्टूबर महीने में अकाल तख़्त ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर जोरदार हमला बोला था। जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा था कि संघ पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उन्होंने कहा था, ‘मेरा मानना है कि संघ जो कर रहा है उससे देश में विभाजन पैदा होगा। संघ के नेताओं की ओर से जो बयान दिये जा रहे हैं, वे देश के हित में नहीं हैं।’ उन्होंने कहा था कि संघ को आज़ादी से काम करने की अनुमति देने से देश का बंटवारा होगा। उनका यह बयान उन दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भारत के ‘हिंदू राष्ट्र’ होने के बयान को लेकर आया था। 

संघ जिस तरह मुसलमानों के बीच राष्ट्रीय मुसलिम मंच की शाखा के बैनर पर काम करता है, उसी तरह सिखों को संघ से जोड़ने के लिए उसके राष्ट्रीय सिख संगत नामक संगठन बनाया हुआ है और इसके जरिए पंजाब में संघ की विचारधारा का प्रचार किया जा रहा है लेकिन कट्टरपंथी सिख संगठन इसे सिख विरोधी बताते हैं और इसका पुरजोर विरोध करते हैं।

आरएसएस के नेता सिख धर्म को हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा बताते हैं जबकि कट्टरपंथी सिख संगठन इससे पूरी तरह इनकार करते हैं।

राष्ट्रीय सिख संगत और खालिस्तानी संगठनों के बीच कई बार टकराव भी हो चुका है। इसी टकराव के बीच आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा ने 2009 में राष्ट्रीय सिख संगत के तत्कालीन अध्यक्ष रुलदा सिंह की पटियाला में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद भी पंजाब में संघ के कई नेताओं की हत्या हुई और इसके लिए कट्टरपंथी खालिस्तानी उग्रवादियों को जिम्मेदार माना गया। 

संघ के नेताओं की हत्या 

अगस्त, 2016 में आरएसएस की पंजाब इकाई के उप प्रमुख जगदीश गगनेजा की जालंधर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई थी। अक्टूबर, 2017 में संघ की शाखा से लौट रहे रवींद्र गोसाईं की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा भी संघ के कई नेताओं पर हमले हो चुके हैं। 

एनआईए इस बात को कह चुकी है कि पंजाब में 6 हिंदू नेताओं की हत्या के पीछे पाकिस्तान का खालिस्तान एजेंडा है। 

2020 में आए ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बयान को भारत सरकार को बहुत गंभीरता से लेना होगा। लेकिन सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह और गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने खुलेआम खालिस्तान का समर्थन किया और उसके बाद भी केंद्रीय गृह मंत्रालय और ख़ुफ़िया एजेंसियाँ इस पर चुप रहीं। अब कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में इनकी गतिविधियाँ बढ़ी हैं। 

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