इमरान ख़ान ने तालिबान को 'गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ने वाला' क्यों बताया?
जिस तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में चुनी हुई सरकार ध्वस्त कर दी, जिसके कारण महिलाएँ खौफ़ में हैं, आम लोगों में दहशत है, उसी तालिबान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने 'गुलामी की जंजीरें तोड़ने वाला' क़रार दिया है। इमरान ख़ान जिसकी तारीफ़ कर रहे हैं वह वही कट्टरपंथी सिस्टम है जिसने शिक्षा, नौकरी और शादी के मामले में कई वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं को नागरिक अधिकारों से वंचित कर दिया है।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में काम करने वाले कई पत्रकारों ने इमरान ख़ान के बयान की रिपोर्टिंग की है। ट्विटर पर इमरान ख़ान का वह वीडियो बयान शेयर किया जा रहा है।
“It is more difficult to free your mind from mental slavery, Afghans have broken the shackles of slavery”, PM Imran Khan pic.twitter.com/zpWr6YTYVh
— Alina Shigri (@alinashigri) August 16, 2021
शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी और बाद में संस्कृति के 'भ्रष्ट' होने के बारे में बात करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, 'आप दूसरी संस्कृति को अपनाते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से अधीन हो जाते हैं। जब ऐसा होता है तो कृपया याद रखें, यह वास्तविक गुलामी से भी बदतर है। सांस्कृतिक दासता की जंजीरों को बाहर फेंकना कठिन है। अफगानिस्तान में अब जो हो रहा है, उन्होंने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया है।'
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा 'तालिबान ख़ान' के तौर पर बुलाए जाने वाले इमरान ख़ान का यह बयान तब आया है जब रविवार को तालिबान के लड़ाकों ने बग़ैर लड़ाई लड़े ही काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया है। राष्ट्रपति अशरफ़ गनी, उप राष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह और उनके सहयोगी देश छोड़ कर भाग गए हैं। तालिबान लड़ाकों ने राष्ट्रपति भवन और दूसरे सरकारी दफ़्तरों पर नियंत्रण कर लिया है। उन्होंने प्रशासन अपने हाथ में ले लिया है और उनके लड़ाके जगह-जगह तैनात हो गए हैं।
इस बीच अफ़ग़ानिस्तान में अफरा-तफरी मची है। तालिबानी लड़ाकों ने काबुल में दाखिल होते ही महिलाओं को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। तालिबान ने काबुल में कई जगहों पर उन पोस्टरों पर कालिख पोत दी है या उन्हें हटा दिया है, जिन पर महिलाओं की तसवीरें लगी हुई थीं। ये पोस्टर सड़कों पर लगे हुए थे। तालिबान ने महिलाओं के इस्तेमाल में आने वाले उत्पादों के विज्ञापन में लगी महिलाओं की तसवीरें भी हटा दी हैं।
इसके अलावा तालिबान के लड़ाके बैंकों, निजी व सरकारी कार्यालयों में जाकर वहाँ काम कर रही महिलाओं से कह रहे हैं कि वे अपने घर लौट जाएँ और दुबारा यहाँ काम करने न आएँ। समाचार एजेन्सी 'रॉयटर्स' के अनुसार, तालिबान लड़ाकों ने कंधार स्थित अज़ीज़ी बैंक जाकर वहाँ काम कर रही नौ महिला कर्मचारियों से वहाँ से चले जाने को कहा। उन महिलाओं से यह भी कहा गया कि वे लौट कर यहाँ न आएं।
बंदूकदारी लड़ाके उन महिलाओं को उनके घर तक छोड़ आए। उनमें से तीन महिलाओं ने कहा कि उन्हें तालिबान लड़ाकों ने कहा कि वे चाहें तो अपनी जगह घर के किसी पुरुष को वही काम करने भेज सकती हैं।
इस बीच तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने अल ज़ज़ीरा से कहा कि 'महिलाओं को हिजाब पहनना होगा, इसके साथ वे चाहें तो घर के बाहर निकलें, दफ़्तरों में काम करें या स्कूल जाएं, हमें कोई गुरेज नहीं होगा।' एंकर के यह पूछे जाने पर कि 'क्या हिजाब का मतलब सिर्फ सिर ढंकने वाला हिजाब है या पूरे शरीर को ढकने वाला बुर्का' तो प्रवक्ता ने कहा कि 'सामान्य हिजाब ही पर्याप्त होगा।'
यह वही इमरान ख़ान हैं जिन को पाकिस्तान में उनके राजनीतिक विरोधी 'तालिबान खान' करार देते रहे थे। वर्षों से इमरान खान के बयानों से ऐसा नहीं लगता रहा है जिससे वे पाकिस्तान तालिबान से ख़ुद को अलग करते हुए दिखते हों।
इमरान खान ने पहली बार तब विवादास्पद बयान दिया था जब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के शीर्ष कमांडर वली-उर-रहमान को 2013 में अमेरिकी सेना द्वारा मारे जाने के बाद उसे 'शांति-समर्थक' क़रार दिया था। बाद में उसी साल सितंबर में इमरान ख़ान ने सुझाव दिया था कि तालिबान को पाकिस्तान में कहीं 'एक कार्यालय खोलने' की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने तर्क दिया था कि अगर अमेरिका कतर में अफगान तालिबान के लिए कार्यालय खोल सकता है तो पाकिस्तान तालिबान ऐसा क्यों नहीं कर सकता है?
2014 में तालिबान ने इमरान ख़ान को अपनी ओर से मध्यस्थता बातचीत के लिए प्रतिनिधि नियुक्त किया था। हालाँकि इमरान ख़ान ने प्रतिनिधि बनने से इनकार कर दिया था। 2018 में बीबीसी के एक इंटरव्यू में इमरान ख़ान ने तालिबान के 'न्याय के सिद्धांत' की तारीफ़ की थी।
इमरान ख़ान ने पिछले साल जून में ओसामा बिन लादेन को शहीद क़रार दिया था। उन्होंने संसद में कहा था, 'पूरी दुनिया में पाकिस्तानियों के लिए शर्मिंदगी की बात थी कि अमेरिकी आए और ओसामा बिन लादेन को ऐबटाबाद में मार दिया। उन्हें शहीद कर दिया। इसके बाद पूरी दुनिया ने हमें गाली देना शुरू कर दिया। आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमेरिकी युद्ध में 70 हजार पाकिस्तानी मारे गए।'
बहरहाल, अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद सबसे पहले जिन देशों ने तालिबान का समर्थन किया है उनमें चीन और पाकिस्तान शामिल हैं। दोनों देशों ने तालिबान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। इससे सवाल उठता है कि तालिबान को क्या इनसे शह मिलती रही है? आख़िर क़रीब 20 साल तक तालिबान ने ख़ुद को ज़िंदा कैसे रखा?