ऑक्सीजन की मांग पर हंगामा, मौत पर खामोशी क्यों?
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक समेत देश के कई हिस्सों में ऑक्सीजन की कमी से मौत की घटनाएँ अप्रैल-मई में हुईं और पूरी दुनिया इस पर चिंतित हुई। हिन्दुस्तान की अदालतें भी चिंतित हुईं। रोजाना सुनवाई, केंद्र-राज्य सरकार से जवाब-तलब, एक्शन सब कुछ दिखा। स्पेशल टास्क फोर्स बनी ताकि ऑक्सीजन की सप्लाई में कोई बाधा ना हो और मौत की घटनाएँ रोकी जाएँ। मगर, ऑक्सीजन ऑडिट सब कमेटी की लीक हुई कथित अंतरिम रिपोर्ट से जो बातें चर्चा में हैं वो ऑक्सीजन की ज़रूरत से ज़्यादा मांग न कि ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत! देश में ऑक्सीजन की मांग पर हंगामा तो बरपा है लेकिन मौत पर खामोशी है। ऐसा क्यों?
गुलेरिया के बयान से ‘विवाद’ को ऑक्सीजन!
हंगामे में भी ट्विस्ट आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित ऑक्सीजन ऑडिट सब कमेटी के प्रमुख डॉ. रणदीप गुलेरिया के ताज़ा बयान ने दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच सियासत को नये सिरे से ऑक्सीजन दे दी है। अब गुलेरिया कह रहे हैं कि ऐसा मतलब निकालना सही नहीं है कि दिल्ली सरकार ने चार गुणा ज़्यादा ऑक्सीजन की मांग की। लोगों को विस्तृत रिपोर्ट का इंतज़ार करना चाहिए।
डॉ. रणदीप गुलेरिया के नेतृत्व वाली ऑक्सीजन ऑडिट सब कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट के बाद से दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार सवालों के घेरे में है। बीजेपी और केंद्र सरकार के मंत्री लगातार दिल्ली की सरकार और आम आदमी पार्टी के नेताओं पर हमला बोल रहे हैं। इस दौरान डॉ. गुलेरिया लगातार चुप रहे। ऐसा क्यों?
अगर दिल्ली की सरकार ने ऑक्सीजन की ज़रूरत को चार गुणा बढ़ाकर नहीं बताया या ऐसा मतलब निकालना ग़लत है तब तो बात ही ख़त्म हो गयी! ऐसे में क्या डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का दावा सही है कि ऐसी कोई अंतरिम रिपोर्ट आयी ही नहीं है और बीजेपी की ओर से मनगढ़ंत रिपोर्ट मीडिया में प्रसारित कर दी गयी है? हालाँकि डॉ. गुलेरिया के बयान से ऐसा नहीं लगता कि इस सवाल का उत्तर ‘हां’ है।
ऑक्सीजन पर अंतरिम रिपोर्ट पर विवाद क्यों?
विषय को समझने के लिए यह याद दिलाना ज़रूरी है कि ऑक्सीजन की ज़रूरत, आपूर्ति और वितरण को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को 12 सदस्यों वाली नेशनल टास्क फोर्स का गठन किया था। इसी एनटीएफ़ ने ऑक्सीजन की ऑडिट के लिए एक सब कमेटी बनायी थी। डॉ. रणदीप गुलेरिया इस सब कमेटी के प्रमुख हैं।
अंतरिम रिपोर्ट में कथित रूप से उल्लिखित इस बात से हंगामा बरपा कि दिल्ली सरकार ने आवश्यकता से चार गुणा ज़्यादा ऑक्सीजन की मांग की और इस वजह से 10-11 राज्यों को ऑक्सीजन की आपूर्ति में बाधा पहुँची।
अधिक सप्लाई थी तो क्यों हुई मौत?
अंतरिम रिपोर्ट के हवाले से जो रिपोर्ट अख़बारों में छपी उसके मुताबिक़ 289 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आवश्यकता दिल्ली को थी और उसने 1140 मीट्रिक टन की मांग रखी। यहाँ दो बातें महत्वपूर्ण हैं-
- एक, क्या दिल्ली को उसकी न्यूनतम आवश्यकता 289 मीट्रिक टन से भी कम ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही थी? क्या कम सप्लाई की वजह से अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी हुई? और इसका नतीजा कोविड मरीजों को जान से हाथ धो कर चुकाना पड़ा?
- दूसरा, क्या दिल्ली को उसकी ओर से बढ़ाकर पेश की गयी मांग के अनुरूप ऑक्सीजन की सप्लाई हुई? अगर हाँ, तो क्या दिल्ली अधिक ऑक्सीजन की सप्लाई का उपयोग नहीं कर पाया?
तथ्य को समझने के लिए उस दौर को याद करना ज़रूरी है जब दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी का संकट और मौत की घटनाएँ घटीं। दिल्ली में अप्रैल के तीसरे हफ्ते से ऑक्सीजन की कमी महसूस की जाने लगी थी। अस्पताल ऑक्सीजन की कमी की जानकारी सार्वजनिक करने लगे थे। मरीजों को ख़ुद ऑक्सीजन की व्यवस्था करने को कहा जाने लगा था। एलएनजेपी समेत कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी की वजह से अस्पतालों में कोविड बेड भी घटा दिए गये थे।
20 अप्रैल को मनीष सिसोदिया ने बजाया था अलार्म
20 अप्रैल को दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली के ज़्यादातर अस्पतालों में 8 से 12 घंटे की ऑक्सीजन बची है। हम बीते एक हफ्ते से ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने की मांग करते रहे हैं जिस पर केंद्र सरकार को फ़ैसला करना है।
In most hospitals in Delhi, oxygen is available for the next 8 to 12 hours only. We have been demanding for one week to increase the oxygen supply quota to Delhi, which the central government has to do: Delhi Deputy CM Manish Sisodia pic.twitter.com/KKfTbzZaEe
— ANI (@ANI) April 20, 2021
हाईकोर्ट ने पूछा था- 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन कब पहुंचेगी?
24 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था, ‘आपने (केंद्र ने) हमें (21अप्रैल को) आश्वस्त किया था कि दिल्ली में प्रतिदिन 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन पहुँचेगी। हमें बताएँ कि यह कब आएगी?’
21-30 अप्रैल के बीच औसत सप्लाई 353.4 मीट्रिक टन
डिप्टी सीएम के बयान और दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी से साफ़ है कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी थी और दिल्ली को उसका दैनिक कोटा 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी। दिल्ली सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक़ 21 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच राजधानी में कुल 3,534 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई रही। मतलब यह कि औसतन 353.4 मीट्रिक टन सप्लाई प्रति दिन हुई।
30 अप्रैल को बत्रा अस्पताल कांड
30 अप्रैल को खासतौर से आपूर्ति कम रही और दिल्ली को केवल 312 मीट्रिक टन की सप्लाई हुई। नतीजा तुरंत दिखा। दिल्ली के बत्रा अस्पताल में 1 मई को ऑक्सीजन की कमी से 8 मरीजों की मौत हो गयी जो संख्या बाद में बढ़कर 12 हो गयी। दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन की आपूर्ति पर दैनिक सुनवाई के दौरान इस घटना पर कहा, ‘हमारे सामने 8 लोगों की जान चली गई और लोगों की मौत पर हम आंख नहीं मूंद सकते।’ अदालत ने आगे कहा कि आज किसी भी सूरत में 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई होनी चाहिए।
HC directs Centre to ensure that Delhi receives its 490 MT oxygen supply today by whatever means.
— ANI (@ANI) May 1, 2021
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस घटना पर दुख जताते हुए 30 अप्रैल को केवल 312 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई होने की बात कही। उन्होंने 976 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की ज़रूरत बतायी।
ये खबर बहुत ही ज़्यादा पीड़ादायी है। इनकी जान बच सकती थी -समय पर ऑक्सिजन देकर
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) May 1, 2021
दिल्ली को उसके कोटे की ऑक्सिजन दी जाए। अपने लोगों की इस तरह होती मौतें अब और नहीं देखी जाती। दिल्ली को 976 टन ऑक्सिजन चाहिए और कल केवल 312 टन ऑक्सिजन दी गयी। इतनी कम ऑक्सिजन में दिल्ली कैसे साँस ले? https://t.co/h7C5bcFtD6
केंद्र सरकार ने दिल्ली का कोटा बढ़ाया
ध्यान देने की बात यह है कि केंद्र सरकार ने 1 मई को ही दिल्ली के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति 480 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 590 मीट्रिक टन कर दी।
जब दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली को कोटे के अनुरूप ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं होने पर केंद्र सरकार को लताड़ लगायी और अवमानना की कार्रवाई के लिए चेताया, तो केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गयी। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद दिल्ली को 6 मई के दिन ऑक्सीजन की 730 मीट्रिक सप्लाई हुई। इससे अधिक ऑक्सीजन की सप्लाई न पहले और न बाद में कभी हुई।
हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट क्यों थे चिंतित?
ऑक्सीजन की कमी के बीच मरीजों की हो रही मौत, दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई, सुनवाई के दौरान दिल्ली को उसके कोटे की ऑक्सीजन नहीं मिलने पर चिंता और केंद्र सरकार को लताड़ और केंद्र की ओर से दिल्ली के लिए ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाए जाने की सिलसिलेवार घटनाएँ बताती हैं कि दिल्ली में ऑक्सीजन का संकट था। जो ऑक्सीजन का कोटा था वह नहीं मिल पा रहा था। यहाँ तक कि यह कोटा भी पर्याप्त नहीं था जिस वजह से इसे बढ़ाना पड़ रहा था।
इन तथ्यों के आलोक में जब ऑक्सीजन ऑडिट सब कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट देखें तो दिल्ली के लिए ऑक्सीजन का कोटा 289 मीट्रिक टन बताया जाना हास्यास्पद लगता है। जब औसतन साढ़े तीन सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई के बावजूद बत्रा हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत हुई हो तो 289 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का कोटा निश्चित रूप से विसंगतिपूर्ण है।
17 अप्रैल-2 मई तक ऑक्सीजन कम
दिल्ली में कोविड संक्रमण के नये मामलों की स्थिति पर ग़ौर करें तो 17 अप्रैल से 2 मई तक दैनिक संक्रमण 20 हजार से ज़्यादा बना हुआ था। यही वह दौर है जब ऑक्सीजन की कमी और इस वजह से मरीजों की मौत की घटनाएँ हुईं। दिल्ली के लिए ऑक्सीजन का कोटा 490 और 590 होने के बावजूद ये घटनाएँ घटीं। 3 मई से 8 मई के बीच 17 से 20 हजार के बीच दैनिक संक्रमण का स्तर आया। फिर यह घटता चला गया। 14 मई को दिल्ली के डिप्टी सीएम ने कहा कि दिल्ली को अब ऑक्सीजन की पहले जैसी ज़रूरत नहीं रही। इसे ज़रूरतमंद राज्यों को दे दिया जाए।
ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से 1140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग करने की बात का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता। अगर ऐसी मांग कभी की भी गयी हो तो इसका महत्व तभी है जब इस मांग के अनुरूप ऑक्सीजन की सप्लाई हुई हो। ऐसे में 10 से 11 राज्यों को ऑक्सीजन की सप्लाई पर असर पड़ने की बात भी सवालों के घेरे में आ जाती है।