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क्या अखिलेश का खेल बिगाड़ने में जुटे हैं ओवैसी? 

क्या अखिलेश का खेल बिगाड़ने में जुटे हैं ओवैसी? 

असदुद्दीन ओवैसी अपनी चुनावी सभाओं में मुसलमानों से अपनी क़यादत बनाने पर जोर देते हैं। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की ज़्यादा आबादी वाली सीटों पर क्या वह अखिलेश को नुक़सान पहुंचा सकते हैं?

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की बिसात पर सभी पार्टियों ने अपने मोहरे यानी उम्मीदवार उतारने शुरू कर दिए हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी पार्टी के 17 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। इससे कई सीटों पर अखिलेश यादव के गठबंधन की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं।  

अभी से ऐसा लगने लगा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में ओवैसी अखिलेश का खेल बिगाड़ सकते हैं। रविवार को असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी के 9 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की। इसमें सभी उम्मीदवार मुसलमान है। 

सोमवार को उन्होंने 8 और उम्मीदवरों का लिस्ट जारी कर दी। इसमें साहिबाबाद सीट से उम्मीदवार बनाए गए पंडित मनमोहन झा के अलावा बाकी सभी सात उम्मीदवार मुसलमान हैं। 

हालांकि ओवैसी यूपी में ‘वंचित समाज सम्मेलन’ कर रहे हैं। वो दावा तो मुसलमानों के साथ दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने का करते हैं लेकिन उनकी पार्टी ने अभी तक आरक्षित सीट पर एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा है।

मुसलिम उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर

ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवारों नाम सामने आने के बाद कई सीटों पर दिलचस्प मुकाबले के आसार दिख रहे हैं। जहां गाजियाबाद के लोनी विधानसभा सीट पर सपा, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी के मुसलिम उम्मीदवार आपस में टकराएंगे। वहीं हापुड़ ज़िले की धौलाना सीट पर सपा, बसपा और मजलिस के मुसलिम उम्मीदवार आपस में टकरा रहे हैं। 

गढ़मुक्तेश्वर में बसपा के मोहम्मद आरिफ़ को मजलिस के फुरकान चौधरी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। मेरठ की किठोर सीट पर मजलिस के उम्मीदवार तस्लीम अहमद ने सपा के शाहिद मंजूर की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। शाहिद मंजूर अखिलेश सरकार में मंत्री रहे हैं। 

सिवालखास पर मजलिस के रफत अली बसपा के मुकर्रम अली उर्फ नन्हे खान के रास्ते का रोड़ा बनते नज़र आ रहे हैं। इन सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन और बसपा की बढ़ती मुश्किलों से बीजेपी को बड़ी राहत मिलती दिख रही है।

कई सीटों पर पहले उतारे उम्मीदवार

सहारनपुर की बेहट पर अमजद अली और सहारनपुर नगर पर महबूब हसन को उतारकर ओवैसी ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। इन सीटों पर अभी न सपा-रालोद ने अपने उम्मीदवार दिया है और ना ही बसपा या कांग्रेस ने। इन सीटों पर मजलिस के उम्मीदवार पहले ही सामने आने के बाद इन दोनों के सामने उम्मीदवारों के चयन की चुनौती बढ़ गई है। दूसरी लिस्ट में ओवैसी ने बरेली ज़िले की बरेली और बिथरी चेनपुर, फर्रुखाबाद की भोजपुर, झांसी की बबीना, अयोध्या की रुदौली सीट पर अपने उम्मीदवार पहले ही उतार दिए हैं। 

इन सीटों पर सपा गठबंधन, बसपा और कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। 

बलरामपुर की उतरौला सीट से ओवैसी ने पीस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ. अब्दुल रहमान को उम्मीदवार बनाया है। यहां वे समीकरण बिगाड़ सकते हैं।

मुज़फ्फरनगर: गठबंधन से नाराज़ मुसलमान

सपा-रालोद गठबंधन को उम्मीद थी कि उसे मुजफ्फरनगर समेत कई ज़िलों में जाट-मुसलिम एकता का फायदा मिलेगा। लेकिन खबरें आ रही है कि मुजफ्फरनगर के मुसलमान इस गठबंधन से नाराज हैं। नाराजगी की वजह यह है कि गठबंधन ने जिले की एक भी सीट पर मुसलिम प्रत्याशी नहीं दिया है। हालांकि दोनों ही पार्टियों में कई मज़बूत नेता टिकट के दावेदार थे। 

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मुजफ्फरनगर जिले की पांच सीटों पर गठबंधन के उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है। इनमें एक भी मुसलमान नहीं है। अकेली सीट मुजफ्फरनगर शहर बची हुई है। गठबंधन दोनों पार्टियों के अंदरूनी सूत्रों से ख़बर आ रही है कि इस पर भी उम्मीदवार नहीं होगा। इस पर समाजवादी पार्टी का कहना है कि वह धर्म जाति देखकर टिकट नहीं देती है। वहीं आरएलडी की तरफ से कहा जा रहा है कि शामली में वह दो मुसलिम उम्मीदवार उतार चुकी है। शामली पहले मुजफ्फरनगर का ही हिस्सा रहा है।

पसोपेश में नाराज़ मुसलिम नेता

मुज़फ्फरनगर जिले में ओवैसी सपा रालोद गठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं। ख़बरें आ रही है कि इन पार्टियों में टिकट पाने से चूक गए कई नेता ओवैसी की पार्टी के संपर्क में है। ओवैसी ने अगर उस जिले की कुछ सीटों पर मज़बूत मुसलिम उम्मीदवार उतार दिए तो सपा-रालोद गठबंधन की जीत की राह मुश्किल हो जाएगी। 

जिले में क़ादिर राणा, मुरसलीन राणा, लियाकत अली जैसे कई मज़बूत उम्मीदवार सपा-रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। क़ादिर राणा तो सांसद और विधायक भी रह चुके हैं। मुसलमानों को इन जैसे मज़बूत दावेदारों की अनदेखी खल रही है।

नाराज़ नेताओं पर ओवैसी की नज़र

इधर, अपना खाता खोलने के लिए मज़बूत उम्मीदवार तलाश रही आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ने इन हालात का फायदा उठाना शुरु कर दिया है। ओवैसी की पार्टी के नेता मुसलमानों को ताना मारते दिख रहे हैं कि वैसे तो सपा-रालोद मुसलमानों की बड़ी हमदर्द बनती हैं लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो हाथ खड़े कर देती हैं। ओवैसी अपनी हर रैली में यही आरोप लगाते रहे हैं।

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क्या है ओवैसी का पिछला रिकॉर्ड

पिछले चुनाव में भी ओवैसी के 38 उम्मीदवारों में से 37 मुसलमान थे। सिर्फ एक आरक्षित सीट पर उनकी पार्टी का दलित उम्मीदवार था। इससे पहले बिहार और पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी उनकी पार्टी के सभी उण्मीदवार मुसलमान थे। ओवैसी मुसलमानों को ही एकजुट करने की बात करते हैं। लिहाज़ा उत्तर प्रदेश के इस चुनाव में भी उनकी पार्टी का मक़सद सिर्फ मुसलिम उम्मीदवार उतारकर कर मुसलमानों के वोट हासिल करके मुसलिम समाज के बीच अपनी पार्टी की पैठ बनाकर उसका जनाधार बढ़ाना है। ओवैसी उन्हीं सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे जहां मुसलमान 30-45 प्रतिशत तक होंगे।

उधर, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा गठबंधन में कम मुसलिम उम्मीदवारों के नाम से मुसलमानों के बीच ये संदेश जा रहा है कि सपा-रालोद गठबंधन मुसलमानों के वोट तो चाहता है लेकिन उन्हें उम्मीदवार बनाने से हिचक रहा है। ओवैसी यही आरोप लगाते हैं। 

औवसी के आरोप सच होते देख मुसलमान अगर ‘अपनी क़यादत, अपनी सियासत’ के फॉर्मूले पर चल पड़ा तो वाक़ई ओवैसी अखिलेश का खेल बिगाड़ सकते हैं। 

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