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मप्र संकट: बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़े की जांच करें स्पीकर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा

मप्र संकट: बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़े की जांच करें स्पीकर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफ़ा देने के बाद पैदा हुआ सियासी संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। 

मध्य प्रदेश की सत्ता को हासिल करने और उसे बचाये रखने में जुटी बीजेपी और कांग्रेस के अधिवक्ताओं के बीच बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जोरदार बहस हुई। कांग्रेस की ओर से दलील दी गई कि उसके विधायकों को बंधक बनाकर रखा गया है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफ़ा देने के बाद पैदा हुआ सियासी संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। अब इस मामले में कल फिर सुनवाई होगी। दूसरी ओर, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने उन्हें कांग्रेस के बाग़ी विधायकों से मिलने की अनुमति देने की मांग की थी। लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को रद्द कर दिया है। 

‘क्या यह लोकतंत्र है’ 

कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अदालत में दलील दी कि बीजेपी अपनी ताक़त का दुरुपयोग करके लोकतंत्र को ख़त्म करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने बीजेपी पर विधायकों का अपहरण करने और कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने की साज़िश रचने का आरोप लगाया। दवे ने कहा कि राज्यपाल लाल जी टंडन के द्वारा फ़्लोर टेस्ट बुलाये जाने के लिये कहना असंवैधानिक है। दवे ने कहा, ‘क्या यह लोकतंत्र है, जहां विधायकों का अपहरण कर लिया जाता है।’ दवे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के नारे का भी उल्लेख किया। 

बीजेपी का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस विश्वास मत को टालने की कोशिश कर रही है क्योंकि उसे इसमें जीत की उम्मीद नहीं है। रोहतगी ने कांग्रेस पर इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाया और कहा कि ऐसी पार्टी को सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। रोहतगी ने दलील दी कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक मुखिया हैं और उन पर संविधान के तहत सरकार चलाने की जिम्मेदारी है। 

दो जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ ने कहा कि विधायकों के इस्तीफ़े के मामले की जांच करना स्पीकर एन.पी.प्रजापति का दायित्व है। कांग्रेस ने अपनी याचिका में कहा है कि अदालत बेंगलुरू में कथित रूप से बंधक बनाये गये उसके विधायकों को छुड़ाने में मदद करे। कांग्रेस का कहना है कि जब तक सभी विधायक सदन में मौजूद नहीं होंगे, ढंग से बहुमत परीक्षण नहीं हो सकता। 

राज्यपाल लाल जी टंडन ने कमलनाथ सरकार से सोमवार को फ्लोर टेस्ट कराने के लिये कहा था। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण का हवाला देते हुए विधानसभा को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया था। इसके ख़िलाफ़ बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और मांग की थी कि 12 घंटे के अंदर विधानसभा के पटल पर शक्ति परीक्षण हो। 

चौहान ने कहा था कि कमलनाथ सरकार को सिर्फ 92 विधायकों का समर्थन हासिल है जो बहुमत से कम है। बीजेपी ने 106 विधायकों को राज्यपाल के सामने पेश किया था। कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान विधानसभा स्पीकर, राज्यपाल और राज्य सरकार को नोटिस भेजा था और मंगलवार को सुनवाई करने के लिये कहा था। 

बुधवार सुबह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बाग़ी विधायकों से मिलने बेंगलुरू पहुंच गए और जिस होटल में बाग़ी विधायक रुके हुए हैं, उसके बाहर धरने पर बैठ गये। इसके बाद बेंगलुरू पुलिस ने दिग्विजय सिंह समेत 13 कांग्रेस नेताओं को हिरासत में ले लिया। इस दौरान दिग्विजय सिंह के साथ कर्नाटक बेंगलुरू के अध्यक्ष डी.के.शिवकुमार भी मौजूद रहे। 

बाग़ी विधायकों ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा था कि उन पर किसी तरह का दबाव नहीं है। बाग़ी विधायकों ने एक सुर में कहा था कि वे बंधक नहीं हैं और स्वेच्छा से बेंगलुरू आये हैं। बीजेपी में शामिल होने के सवाल पर उन्होंने कहा था कि वे अभी बीजेपी में शामिल नहीं हुए हैं और इस बारे में विचार करेंगे।

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