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सिसोदिया की गिरफ़्तारी से क्या 2024 के लिए विपक्ष एकजुट हो जाएगा?

सिसोदिया की गिरफ़्तारी से क्या 2024 के लिए विपक्ष एकजुट हो जाएगा?

लगातार विपक्षी एकता की बात करने वाले विपक्षी दलों के नेता क्या कभी एकजुट हो पाएँगे? क्या मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी के बाद इसके संकेत मिल रहे हैं? क्या विपक्ष साथ मिलकर दूर-दूर तक बीजेपी से लड़ता दिख रहा है? 

विपक्षी एकता के लिए बार-बार प्रयास के बाद भी अब तक उनको इसमें ठोस सफलता नहीं मिली है। विपक्षी एकता का प्रयास होता हुआ दिखता भी है कि फिर उसमें फूट पड़ जाती है। लेकिन क्या अब इसमें कुछ बदलाव आने की संभावना है? दिल्ली के कथित शराब घोटाले में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद क्या सभी विपक्षी दलों के सुर एक हो रहे हैं? क्या 2024 के चुनाव से पहले ऐसा हो सकता है?

जब से सीबीआई ने सिसोदिया को गिरफ़्तार किया है तब से अधिकतर प्रमुख विपक्षी दल अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का समर्थन करते दिखे हैं। इन दलों ने सरकार पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई करने का भी आरोप लगाया। ऐसा करने वालों में तृणमूल कांग्रेस से लेकर उद्धव ठाकरे खेमे की शिवसेना, नीतीश का जेडीयू, तेलंगाना की सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति, तेजस्वी यादव का राष्ट्रीय जनता दल, अखिलेश की सपा और कांग्रेस की सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा भी शामिल हैं। इन सबने सिसोदिया की गिरफ्तारी की निंदा की है।

हालाँकि, इन सबसे अलग विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पहले केजरीवाल की पार्टी का समर्थन नहीं किया था और एक तरह से विरोध ही किया था। लेकिन बाद में कांग्रेस के रूख में भी बदलाव आता दिख रहा है।

शुरुआत में कांग्रेस की दिल्ली इकाई के नेताओं ने सिसोदिया की गिरफ्तारी का समर्थन किया और यह भी घोषित किया था कि अरविंद केजरीवाल को कतार में अगला होना चाहिए। लेकिन सोमवार शाम को कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने एक ट्वीट पोस्ट किया, जिससे संकेत मिलता है कि कांग्रेस भी मजबूती से विपक्ष के पक्ष में खड़ा है। हालाँकि उन्होंने आप का समर्थन जैसा कुछ ज़िक्र नहीं किया।

जयराम रमेश ने कहा, 'कांग्रेस ने हमेशा माना है कि ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग जैसे संस्थान मोदी सरकार के तहत राजनीतिक प्रतिशोध और उत्पीड़न के उपकरण बन गए हैं। इन संस्थानों ने पेशेवराना रवैया त्याग दिया है। विपक्षी नेताओं को उनकी प्रतिष्ठा को ख़त्म करने के लिए चुनिंदा तौर पर निशाना बनाया जाता है।'

तृणमूल के डेरेक ओब्रायन ने कहा कि अगर सिसोदिया ने खुद के लिए बीजेपी ब्रांड की वाशिंग मशीन बनवा ली होती, तो उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया जाता। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले मनीष सिसोदिया जी को गिरफ्तार कर बीजेपी ने साबित कर दिया है कि वह न केवल शिक्षा के खिलाफ है बल्कि दिल्ली के बच्चों के भविष्य के भी खिलाफ है। संजय राउत ने कहा कि जिस तरह से भाजपा विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर रही है, मुझे डर है कि भविष्य में भाजपा नेताओं का क्या होगा जब वे सत्ता से बाहर होंगे। सीपीएम ने एक बयान जारी कर कहा कि सिसोदिया की गिरफ्तारी विपक्षी दल के नेताओं को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों को हथियार बनाने की मोदी सरकार की परियोजना का हिस्सा है।

जब से बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई है, विपक्ष उस पर केंद्रीय एजेंसियों के ज़रिए उन्हें निशाना बनाने का आरोप लगा रहा है। पिछले साल जुलाई में जब एक हफ़्ते में तीन बड़े नेताओं पर कार्रवाई हुई थी तब भी विपक्ष की प्रतिक्रया साथ आने वाली नहीं दिखी थी।

तब पहले सोनिया गांधी की ईडी के सामने पेशी हुई थी। फिर मनीष सिसोदिया के ख़िलाफ़ सीबीआई की जाँच और पार्थ चटर्जी की गिरफ़्तारी हुई थी। तीन अलग-अलग दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसियों का शिकंजा कसा था। लेकिन उन्होंने साथ मिलकर मोर्चा नहीं खोला। सभी दलों ने अलग-अलग प्रदर्शन ज़रूर किए। बल्कि वे समय समय पर आपस में लड़ते भी दिखे हैं। 

विपक्षी दलों के बीच ऐसा झगड़ा राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान भी दिखा था। वे कोई आपसी सहमति से उम्मीदवार भी नहीं उतार पाए थे। टीएमसी ने प्रयास किया और एक चेहरा उतारा भी था, लेकिन बाद में ममता ही पलट गई थीं। ममता ने बाद में कहा था कि अगर उन्हें पता होता कि द्रौपदी मुर्मू सरकार की तरफ़ से उम्मीदवार होने वाली हैं तो वो कभी भी सिन्हा का नाम आगे नहीं बढ़ातीं। उपराष्ट्रपति के नाम पर मार्ग्रेट अल्वा का नाम इसलिये पसंद नहीं है कि उनसे इस बारे में कोई सलाह नहीं ली गई।

इसके बाद भी विपक्षी एकता लाने के प्रयास होते रहे। पिछले साल ही सितंबर में सोनिया गांधी, नीतीश कुमार और लालू यादव की मुलाक़ात हुई थी। लेकिन इसपर कितना आगे बढ़ा गया, यह अब तक कुछ भी साफ़ नहीं है। 

नीतीश कुमार कह रहे हैं कि उनका काम विपक्षी दलों को एकजुट करना है और अगर 2024 में विपक्ष एकजुट हुआ तो नतीजे अच्छे आएंगे। वह यह भी कह चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एकजुट करने की तमाम कोशिशें हुई थीं लेकिन ये कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकी थीं। 

तब तेलुगू देशम पार्टी के मुखिया और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोशिश की थी कि विपक्षी दलों को एकजुट किया जाए लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी ऐसा नहीं हो सका था। 

 - Satya Hindi

नीतीश ने हाल में कहा है कि अगर विपक्ष एकजुट हो जाए तो बीजेपी 100 सीटों से नीचे आ जाएगी। लेकिन इसके लिए कांग्रेस का साथ चाहिए। इसके बाद कांग्रेस की ओर से बयान आया था कि मजबूत कांग्रेस के बिना मजबूत विपक्षी एकता नामुमकिन है। इस तरह कांग्रेस ने गैर बीजेपी खेमे का संकेत दिया है। 

रायपुर में कांग्रेस के पूर्ण अधिवेशन में भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी एकता की बात कही। उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वो विपक्षी एकता में शामिल होने और कुर्बानी देने के लिए तैयार है। तो सवाल वही है कि इन सब बयानों के बाद क्या सच में विपक्षी एकता हो पाएगी या फिर ये दल आपस में लड़ते ही रहेंगे?

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