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राज्यसभा हंगामे पर जांच पैनल का गठन डराकर चुप कराने की कोशिश: विपक्ष 

राज्यसभा हंगामे पर जांच पैनल का गठन डराकर चुप कराने की कोशिश: विपक्ष 

संसद के मानसून सत्र के अंतिम दिन राज्यसभा में हंगामे को लेकर जाँच कमेटी गठित करने के प्रस्ताव पर विपक्ष ने कहा है कि लगता है कि यह सांसदों को डराकर चुप कराने के लिए है। 

विपक्ष ने राज्यसभा में हंगामे पर जाँच पैनल गठित करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि लगता है कि कमेटी का गठन सांसदों को डराकर चुप कराने के लिए है। रिपोर्ट है कि विपक्ष के दूसरे दलों ने भी जाँच कमेटी गठन का विरोध किया है।

कमेटी गठन का यह प्रस्ताव उस मामले में है जिसमें संसद के मानसून सत्र के अंतिम दिन राज्यसभा में हंगामा हुआ था और अमर्यादित व्यवहार की रिपोर्टें आई थी। यह घटना उस वक़्त हुई थी, जब जनरल इंश्योरेंस बिजनेस (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधयेक, 2021 पास किया जा रहा था। उस दौरान विपक्षी दलों के सांसद नारेबाज़ी कर रहे थे और उन्होंने कुछ कागज़ों को भी फाड़ दिया था। कुछ महिला सांसदों ने आरोप लगाया था कि राज्यसभा में उनके साथ पुरुष मार्शलों ने बदसलूकी की। 

उस घटना के बाद विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि विधेयक के पारित होने के दौरान महिला सदस्यों सहित सांसदों को हटाने के लिए ऊपरी सदन में 'बाहरी' लोगों को लाया गया था। उन्होंने कहा था कि ये 'बाहरी' लोग 'संसद की सुरक्षा' में लगे मार्शल नहीं थे। विपक्ष ने कहा था कि सदन में जो हुआ था वह 'अभूतपूर्व' था।

एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने कहा था कि उन्होंने अपने 55 साल के संसदीय जीवन में राज्यसभा में पहले कभी भी महिला सांसदों पर हमला होते नहीं देखा। पवार ने कहा कि 40 से ज़्यादा महिलाओं को बाहर से सदन के भीतर लाया गया। उन्होंने कहा था कि यह घटना बेहद दुखद है और लोकतंत्र पर हमला है। टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा था कि राज्यसभा में सांसदों से ज़्यादा सुरक्षा गार्ड थे।

सरकार की ओर से कहा गया था कि सासंदों ने मार्शलों को धक्का दिया और उन पर हमला किया। केंद्र सरकार ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर कहा था कि विपक्ष ने कामकाज में बाधा डाली। प्रेस कॉन्फ्रेन्स में मोदी सरकार के सात मंत्री- अनुराग ठाकुर, प्रहलाद जोशी, मुख्तार अब्बास नक़वी, पीयूष गोयल, अर्जुन राम मेघवाल, भूपेंद्र यादव, वी. मुरलीधरन मौजूद थे। 

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि विपक्षी दलों के सांसदों ने भद्दे व्यवहार की सीमा को भी पार कर दिया। उन्होंने रूल बुक को आसन की ओर फेंके जाने की आलोचना की और कहा था कि माफ़ी मांगने के बजाय विपक्षी सांसद रौब दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू से इस मामले में कार्रवाई करने की मांग की गई है।

रिपोर्ट है कि इस मामले को लेकर राज्यसभा के सभापति ने मल्लिकार्जुन खड़गे को जाँच कमेटी गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जिस पर खड़गे सहमत नहीं हुए।

द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि वेंकैया नायडू ने खड़गे से इसी हफ़्ते जाँच कमेटी गठन में एक कांग्रेस सांसद का नाम भेजने को कहा था। इसकी प्रतिक्रिया में खड़गे ने नायडू को पत्र लिखा कि 'विपक्षी दल सत्र के दौरान सार्वजनिक महत्व के सभी मामलों पर चर्चा करने के इच्छुक और इसके लिए उत्सुक थे। लेकिन सरकार ने विपक्षी दलों की चर्चाओं की मांगों को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि उन महत्वपूर्ण विधेयकों और नीतियों के माध्यम से आगे बढ़ी जो संभावित रूप से देश पर प्रतिकूल और गंभीर प्रभाव डालते।'

 - Satya Hindi

खड़गे ने यह भी याद दिलाया कि जब विपक्ष में बीजेपी थी तो इसने संसद में इसी तरह का विरोध प्रदर्शन किया था। उन्होंने कहा, 'वर्तमान सत्तारूढ़ दल के कई लोगों ने अतीत में यह माना है कि इस तरह से असंतोष व्यक्त करना संसदीय लोकतंत्र में स्वीकार्य है।'

उन्होंने पत्र में आगे लिखा है, 'इसे देखते हुए, 11 अगस्त की घटना पर एक जाँच समिति का गठन… लगता है कि सांसदों को चुप कराने के लिए और डराने-धमकाने के लिए तैयार किया गया है। यह न केवल जनप्रतिनिधियों की आवाज़ को दबाएगा बल्कि जानबूझकर उन सभी को दरकिनार कर देगा जो सरकार से असहज हैं। इसलिए, मैं स्पष्ट रूप से जाँच समिति के गठन के ख़िलाफ़ हूँ और हमारी पार्टी द्वारा इस समिति के लिए एक सदस्य का नाम प्रस्तावित करने का सवाल ही नहीं उठता है।' 

खड़गे ने सुझाव दिया कि अगले सत्र से पहले एक सर्वदलीय बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा करना बेहतर होगा।

इनके अलावा दूसरे विपक्षी दल भी जाँच कमेटी के गठन के ख़िलाफ़ हैं। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, राजद, शिवसेना, एनसीपी और आम आदमी पार्टी ने भी ऐसा ही फ़ैसला किया है।

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