कृषि क़ानून: संसद परिसर में विपक्षी दलों के सांसदों का प्रदर्शन
विपक्षी दलों के सांसदों ने गुरूवार को संसद परिसर में कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और सरकार से इन क़ानूनों को वापस लेने की मांग की। पूर्व केंद्रीय मंत्री और शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल के नेतृत्व में इकट्ठा हुए सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से किसानों की मन की बात सुनने की अपील की।
हरसिमरत कौर बादल ने एएनआई से कहा कि किसान 8 महीने से आंदोलन कर रहे हैं और 550 किसानों की जान जा चुकी है लेकिन सरकार इस मुद्दे पर चर्चा नहीं करना चाहती। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार किसान विरोधी है।
विपक्षी दलों के सांसदों ने हाथों में प्लेकार्ड लिए हुए थे। इनमें लिखा था- जो किसान की नहीं सुनेगा, देश उसकी नहीं सुनेगा। इस तरह के प्लेकार्ड को कई बार केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भी दिखाया जा चुका है। कृषि क़ानूनों और पेगासस जासूसी मामले को लेकर संसद में लगातार हंगामा हो रहा है और मानसून सत्र का ज़्यादातर वक़्त हंगामे की भेंट चढ़ गया है।
अकाली दल ने तोड़ा था गठबंधन
अकाली दल की ओर से जब से संसद सत्र शुरू हुआ है, लगातार कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया जा रहा है। अकाली दल ने कृषि क़ानूनों के मसले पर ही बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया था और हरसिमरत कौर ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था। उसके बाद राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल ने भी एनडीए से गठबंधन तोड़ दिया था।
कांग्रेस भी ख़ासी मुखर
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कांग्रेस भी ख़ासी मुखर है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कुछ दिन पहले ट्रैक्टर चलाकर संसद पहुंचे थे। उन्होंने कहा था कि सरकार को ये क़ानून वापस लेने ही पड़ेंगे। राहुल गांधी इस मसले पर पंजाब में ट्रैक्टर यात्रा निकालने से लेकर लगातार ट्वीट कर सरकार पर दबाव बढ़ाते रहे हैं।
किसान संसद का आयोजन
इसके अलावा संसद से कुछ ही दूरी पर स्थित जंतर-मंतर पर किसान अपनी संसद चला रहे हैं और इसके जरिये वे केंद्र सरकार पर तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए दबाव बना रहे हैं। किसानों के आंदोलन को 8 महीने पूरे हो चुके हैं और सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बड़ी संख्या में किसान धरने पर बैठे हुए हैं।
निर्णायक होंगे किसान
पंजाब में सात महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसान आंदोलन का चुनाव नतीजों में बेहद अहम रोल रहेगा। इसलिए कांग्रेस और अकाली दल इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। किसानों ने एलान किया है कि मिशन यूपी-उत्तराखंड में जुटेंगे और इसके जरिये हर घर तक पहुंचेंगे।
माना जा रहा है कि किसानों के आंदोलन से बीजेपी को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सियासी नुक़सान हो सकता है क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तराई वाले इलाक़े में इस आंदोलन का ख़ासा असर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 120 विधानसभा सीटें आती हैं जबकि 70 सीटों वाली उत्तराखंड की विधानसभा में से 20 सीटें तराई में पड़ती हैं।