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ट्विटर पर तंज- 'मोदी जी RSS की डीपी में तिरंगा लगवाकर दिखाएँ'

ट्विटर पर तंज- 'मोदी जी RSS की डीपी में तिरंगा लगवाकर दिखाएँ'

प्रधानमंत्री मोदी के 'हर घर तिरंगा' अभियान से सोशल मीडिया पर आरएसएस और इसके पदाधिकारी क्यों निशाने पर आ गए हैं? जानिए लोग प्रधानमंत्री को तिरंगा लगवाने की चुनौती क्यों दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने 'हर घर तिरंगा' अभियान शुरू किया है। उन्होंने कहा है कि अमृत महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा का आयोजन किया जा रहा है। इसी के तहत उन्होंने मंगलवार को अपने सोशल मीडिया खातों की डीपी यानी डिस्प्ले पिक्चर बदल दी और उसकी जगह तिरंगा लगा दिया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने फ़ेसबुक, ट्विटर जैसे अपने खातों पर लिखा, 'आज 2 अगस्त का दिन विशेष है। ऐसे समय में जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, हमारा देश हर घर तिरंगा जैसे सामूहिक आंदोलन के लिए तैयार है। मैंने अपने सोशल मीडिया पेजों पर डीपी बदल दी है और आप सभी से भी ऐसा करने का आग्रह करता हूँ।' 

तो सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी के इस आग्रह का क्या परिणाम निकला? क्या लोगों ने उनकी बात सुनी? उनके आग्रह के बाद गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जैसे मंत्रिमंडल के सदस्यों ने तो डीपी बदल दी, लेकिन बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस के ट्विटर हैंडल में ऐसा बदलाव नहीं दिखा। विरोधियों ने इसी को लेकर निशाना साधा। प्रधानमंत्री पर तंज कसे और उन्हें इसकी चुनौती तक दे डाली कि वे आरएसएस और उनके पदाधिकारियों की डीपी बदलवाएँ व तिरंगा लगवाकर दिखाएँ।

लोगों ने यह चुनौती ऐसे ही नहीं दी है। आरएसएस तिरंगा पर अपनी राय को लेकर सुर्खियों में रहा है। दरअसल, आरोप लगता रहा है कि आरएसएस कुछ साल पहले तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा झंडा भी नहीं फहराता था। और सोशल मीडिया पर जो तंज कसे गए हैं वे इसी को लेकर हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया है, 'हम हाथ में तिरंगा लिए अपने नेता नेहरू की DP लगा रहे हैं। लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री का संदेश उनके परिवार तक ही नहीं पहुंचा। जिन्होंने 52 सालों तक नागपुर में अपने हेड क्वार्टर में झंडा नहीं फहराया, वे क्या प्रधानमंत्री की बात मानेंगे?'

कांग्रेस के एक अन्य नेता श्रीनिवास बीवी ने आरएसएस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल का स्क्रीनशॉट साझा किया है जिसमें तिरंगा नहीं दिखता है, बल्कि आरएसएस और उसका भगवा झंडा दिखता है। 

जिग्नेश मेवानी ने लिखा है, 'यदि सच में मोदी जी 56 इंच का सीना रखते हैं तो वो आरएसएस और उनके पदाधिकारियों की डीपी में तिरंगा लगवाकर दिखाएँ।'

दिलीप मंडल ने प्रधानमंत्री मोदी और मोहन भागवत को टैग करते हुए ट्वीट किया है कि प्रधानमंत्री मोदी भागवत की डीपी बदलवाकर तिरंगा लगवाएँ।'

ट्राइबल आर्मी के हंसराज मीणा ने ट्वीट किया है, "'हर घर तिरंगा' के बाद 'हर शाखा तिरंगा' अभियान चलना चाहिए। क्या आरएसएस इस चैलेंज को स्वीकार करेगा?"

सोशल मीडिया पर ये टिप्पणियाँ इसलिए आ रही हैं क्योंकि आरएसएस मुख्यालय पर ही 2002 से पहले तिरंगा झंडा नहीं फहराया जाता था। कुछ लोगों ने जब गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहरा दिया था तो उनपर मुक़दमा चला था। अगस्त 2013 को नागपुर की एक निचली अदालत ने वर्ष 2001 के एक मामले में दोषी तीन आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया था। इन तीनों आरोपियों बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी का जुर्म कथित रूप से सिर्फ़ इतना था कि वे 26 जनवरी 2001 को नागपुर के रेशमीबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय में घुसकर गणतंत्र दिवस पर तिरंगा झंडा फहराने के प्रयास में शामिल थे।

इसी को लेकर सवाल पूछा जाता है कि क्या 2002 के पहले तिरंगा भारत का राष्ट्रध्वज नहीं था या फिर आरएसएस खुद अपनी आज की कसौटी पर कहें तो देशभक्त नहीं था?

आरएसएस मामलों के जानकार शमसुल इसलाम ने लिखा है कि दिसम्बर 1929 में कांग्रेस के अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज को राष्ट्रीय ध्येय घोषित करते हुए लोगों का आह्वान किया था कि 26 जनवरी 1930 को तिरंगा झंडा फहराएँ और स्वतंत्रता दिवस मनाएँ। इसके जवाब में आरएसएस के तत्कालीन सरसंचालक डॉ. हेडगेवार ने एक आदेश पत्र जारी करके तमाम शाखाओं को भगवा झंडा राष्ट्रीय झंडे के तौर पर पूजने के निर्देश दिये थे।

शमसुल इसलाम के अनुसार, स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर जब दिल्ली के लाल किले से तिरंगे झण्डे को लहराने की तैयारी चल रही थी आरएसएस ने अपने अंग्रेज़ी मुखपत्र (ऑर्गनाइज़र) के 14 अगस्त, 1947 वाले अंक में राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर तिरंगे के चयन की खुल कर भर्त्सना की थी। आरएसएस के अंग्रेजी अखबार, 'ऑर्गनाइज़र' ने अपने 14 अगस्त, 1947 के अंक में लिखा था- "भाग्य की वजह से सत्ता में आने वाले लोग हमारे हाथों में तिरंगा दे रहे हैं, लेकिन हिन्दू कभी भी इसे स्वीकार नहीं करेंगे। तिरंगा हिंदुओं का सम्मान नहीं करता।" संघ के मुखपत्र ने लिखा था- 'तिरंगे के तीन रंग अपने आप में एक बुराई है, और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित रूप से बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा। यह देश के लिए हानिकारक है।' 

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