समाजवादियों की लाल टोपी विवादों में है। अब देश में टोपी पहनने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता बहुत कम बचे हैं जिसमें समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता हैं। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता लाल टोपी पहनते हैं। जब वे विधानसभा या विरोध प्रदर्शन में जाते हैं तो लाल टोपी पहनते हैं। संभवतः इसी पर तंज करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा, लाल हरी पीली टोपी की नई परिपाटी अब शुरू हो गई है। उन्होंने आगे कहा, टोपी वाला गुंडा अब आम धारणा है।
हालाँकि योगी ने यह टिप्पणी किसी एक सभा में विरोध करने वाले लोगों को लेकर एक बच्चे की प्रतिक्रिया के आधार पर की थी। पर लगता है टोपी का इतिहास, ख़ासकर लाल टोपी का इतिहास वे भी ठीक से नहीं जानते हैं।
इस लाल टोपी को भारत में सबसे पहले जयप्रकाश नारायण ने पहना था। वर्ष 1948 में जब समाजवादी कांग्रेस से अलग हो गये तब दो बातें हुईं। समाजवादियों ने गांधी की सफ़ेद टोपी को पहनना छोड़ दिया। जयप्रकाश नारायण जब रूस से लौट कर देश आए तो नारा चलता था, हिंद के लेनिन जयप्रकाश। वह दौर था जब जेपी का देश में बहुत ज़्यादा प्रभाव था। वैसे भी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी उस समय काफ़ी आक्रामक थी।
जेपी ने लाल झंडा भले नहीं अपनाया पर लाल टोपी पहन ली। लोहिया ने तो कांग्रेस से अलग होने पर फ़ैसला कर लिया था कि अब वे कोई टोपी नहीं लगाएँगे। समाजवादियों ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में गांधी की हत्या को लेकर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल को निशाने पर लिया था। जेपी ने उन्हें लापरवाही के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था। इसी के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनी। आचार्य नरेंद्र देव, जेपी, लोहिया और अशोक मेहता आदि अलग हो गए। यह अलग बात है कि आगे चल कर समाजवादी फिर विभाजित हुए।
ख़ैर बाद में जेपी ने विनोबा भावे के प्रभाव में लाल टोपी पहनना छोड़ दिया था। पर समाजवादियों में उस लाल टोपी को मुलायम सिंह ने याद रखा। जब समाजवादी पार्टी बनी तो समाजवादियों की टोपी लाल हो गई।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, 'मुख्यमंत्री शायद भूल गए हैं कि वे भी टोपी पहनते थे'। दूसरी तरफ़ विपक्ष के नेता रामगोविंद चौधरी ने कहा, ‘लाल नीली टोपी से इनकी रूह काँपने लगती है।’ खांटी समाजवादी सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा, ‘लाल टोपी का जो इतिहास नहीं जानते उन्हें समझना चाहिए इसकी शुरुआत जेपी ने किस दौर में की थी।’