सरकार क्या फिर बदल रही है वैक्सीन नीति? 

07:19 am Jun 21, 2021 | हरजिंदर - सत्य हिन्दी

बहुत पुरानी बात नहीं है जब दिल्ली में काले रंग के कुछ पोस्टर लगाए गए थे जिन पर लिखा था- ‘मोदी जी हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दिया‘। पोस्टर लगते ही पुलिस सक्रिय हुई और कई लोगों को गिरफ्तार करके उन पर मुक़दमा चला दिया गया। यह उस समय की बात है जब अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर कोविड-19 वैक्सीन की भारी किल्लत हो गई थी। और यह भी सच है कि उस समय तक सरकार ने वैक्सीन का निर्यात पूरी तरह रोक दिया था।

लेकिन अब कई तरह के दबावों के बीच ऐसा लग रहा है कि भारत से वैक्सीन निर्यात का सिलसिला फिर से शुरू हो सकता है। नीति आयोग में स्वास्थ्य मामलों को देख रहे वी के पॉल का बयान तो कम से कम यही संकेत दे रहा है। शनिवार को उन्होंने न्यूज़ एजेंसी एसोशिएट प्रेस से कहा कि कोविड वैक्सीन का निर्यात पूरी तरह से हमारे राडार पर है। 

यह सही है कि वैक्सीन निर्यात के मुद्दे पर सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बुरी तरह से फँस गई है। इसे लेकर पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की आलोचना की। अब इस आलोचना का दायरा और बढ़ता जा रहा है।

भारत ने कोविड-19 वैक्सीन का निर्यात उस समय शुरू किया था जब यहाँ महामारी की पहली लहर लगभग ख़त्म हो गई थी और उसे मात देने के लिए सरकार अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही थी। यह वह समय था जब वैक्सीन सिर्फ़ स्वास्थ्य कर्मियों को ही लगाई जा रही थी और इस टीकाकरण की रफ्तार काफ़ी धीमी थी। कई जगह से वैक्सीन बर्बाद होने की ख़बरें भी आ रही थीं। यह भी कहा जा रहा था कि भारत की वैक्सीन उत्पादन क्षमता उसकी टीकाकरण की क्षमता से ज़्यादा है इसलिए उसे बची हुई वैक्सीन के इस्तेमाल का कोई तरीक़ा खोजना होगा। तभी सरकार ने वैक्सीन निर्यात का फ़ैसला किया और तीसरी दुनिया के चुनिंदा 91 देशों को वैक्सीन भेजी। कई टिप्पणीकारों ने इसे वैक्सीन डिप्लोमेसी कहा और इसके लिए सरकार की तारीफ़ों के पुल भी बांधे गए।

लेकिन जैसे ही स्वास्थ्य कर्मियों का टीकाकरण ख़त्म हुआ और आम लोगों के टीकाकरण की शुरुआत हुई तो वैक्सीनेशन सेंटर के बाहर लोगों की लाइनें लगने लग गईं। तब पता पड़ा कि वैक्सीन की देश में जितनी ज़रूरत है उसके मुक़ाबले आपूर्ति काफ़ी कम है। इसी बीच कोरोना संक्रमण की दूसरी और भयानक लहर आई जिसे लेकर भारत में वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार को भी ज़िम्मेदार ठहराया गया। इसी अफरा-तफरी के बीच सरकार ने वैक्सीन का निर्यात पूरी तरह बंद कर दिया। 

जब देश में कोरोना संकट की समस्या इतनी गंभीर हो तो निर्यात का जोखिम कोई भी सरकार नहीं ले सकती। अभी तक जो निर्यात किया गया था उसी को लेकर सवाल उठने लग गए थे। दिल्ली में लगे उस पोस्टर को हमें इसी संदर्भ में देखना होगा।

लेकिन इसे लेकर दुनिया भर में जो समस्या पैदा हुई वह दूसरे तरह की थी। भारत ने जिन देशों को वैक्सीन निर्यात की उन सभी ने अपने लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक दे दी। जब दूसरी खुराक का वक़्त आया तो भारत ने निर्यात बंद कर दिया था और वे अधर में लटक गए। भारत ने एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन दोनों का ही निर्यात किया। कोवैक्सीन को अभी तक न तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हरी झंडी दी है और न ही इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही मान्यता मिली है, फिर भी कुछ उन देशों ने इसे स्वीकार किया जिनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था क्योंकि कोविड की वैक्सीन दुनिया में मिल ही नहीं रही थी।

जिन देशों को कोविशील्ड का निर्यात किया गया उनके लिए तो फिर भी एक उम्मीद बची थी कि वे इसे किसी और जगह से खरीदने की कोशिश कर सकते थे लेकिन जिन्हें कोवैक्सीन दी गई उनके सामने तो यह विकल्प भी नहीं था। इसे लेकर सबसे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की आलोचना की और फिर कई और संगठनों की आलोचना भी सामने आई।

आलोचना इसलिए भी हो रही थी कि कोविशील्ड के उत्पादन के लिए भारत के सीरम इंस्टीट्यूट से ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीनेशन यानी ‘गावी’ का जो अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ था उसमें एक शर्त यह भी थी कि उत्पादन का एक हिस्सा तीसरी दुनिया के देशों को भेजने के लिए ‘गावी’ को दिया जाएगा। अब निर्यात पर पूरी तरह पाबंदी के बाद इस समझौते का पालन भी नहीं हो पा रहा।

इस बीच सरकार यह कोशिश कर रही है कि देश में वैक्सीन का उत्पादन काफ़ी तेज़ी से बढ़ाया जाए। भारत का वैक्सीन उत्पादन कच्चे माल के लिए बहुत हद तक आयात पर निर्भर है। उत्पादन तभी बढ़ सकता है जब कच्चे माल की आपूर्ति भी तेज़ी से बढ़े। इसके लिए जब दुनिया भर के बाज़ारों में राजनयिक स्तर पर कोशिश हो रही है तो यह भी सुनने को मिल रहा है कि भारत कच्चे माल का आयात तो करना चाहता है लेकिन वैक्सीन का निर्यात नहीं करना चाहता। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल के बयान से लगता है कि सरकार अब इसी छवि को बदलना चाहती है। लेकिन महामारी की दूसरी लहर के जो बुरे अनुभव लोगों को हुए हैं उसके चलते सरकार के लिए यह बहुत आसान नहीं होगा।