सरकार ने कृषि कानून हड़बड़ी में वापस ले लिए और राज्यसभा के 12 सदस्यों को वर्तमान सत्र के लिए मुअत्तिल भी कर दिया। इन दोनों मुद्दों को लेकर विपक्षी दल यदि संसद के वर्तमान सत्र का पूर्ण बहिष्कार कर दें तो आश्चर्य नहीं होगा, हालांकि कुछ विपक्षी सांसदों की राय है कि बहिष्कार नहीं किया जाना चाहिए।
मैं भी सोचता हूं कि संसद के दोनों सदनों का यदि विपक्ष बहिष्कार करेगा तो उसका तो कोई फायदा नहीं होगा बल्कि सत्तारुढ़ दलों को ज्यादा आसानी होगी। वे अपने पेश किए गए विधेयकों को बिना बहस के कानून बनवा लेंगे।
इस सरकार का जैसा रवैया है यानि इसने नौकरशाहों को पूरी छूट दे रखी है कि वे जैसे चाहें, वैसे विधेयक बनाकर पेश कर दें। नतीजा क्या होगा?
कुछ कानून तो शायद अच्छे बन जाएंगे लेकिन कुछ कानून कृषि कानूनों की तरह बड़े सिरदर्द भी बन सकते हैं। वर्तमान स्थिति में यदि ऐसा हुआ तो क्या इसका दोष विपक्ष के माथे नहीं आएगा?
राज्यसभा में हंगामा
विपक्षी सदस्यों ने पिछले सत्र में जो हंगामा राज्यसभा में मचाया था, वह काफी शर्मिंदगी पैदा करनेवाला था। कुछ विरोधी सदस्यों ने सुरक्षाकर्मियों के साथ धक्का-मुक्की और मारपीट भी की। उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू इतने परेशान हुए कि उनकी आंखों में आंसू भर आए।
पिछले 60 साल से मैं भी संसद को देख रहा हूं। ऐसा दृश्य मैंने पहले कभी नहीं देखा और इस बार तो उस दृश्य को टीवी चैनलों पर सारा देश देख रहा था। सत्तारुढ़ दल ने कोशिश भी की कि अनुशासन की कार्यवाही करने के पहले विरोधी दलों से परामर्श किया जाए लेकिन उसका भी उन्होंने बहिष्कार कर दिया। ऐसे में 12 हंगामी सदस्यों को मुअत्तिल कर दिया गया।
राज्यसभा के नियम 256 के मुताबिक ऐसी कार्रवाई सत्र के चालू रहते ही की जाती है, जो अब से पहले 13 बार की गई है लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि इस सत्र में किए गए दोष की सजा अगले सत्र में दी जाए। पिछले सत्र में हुए इस हंगामे के कारण इस सत्र को बेमजा कर देना ठीक नहीं है।
माफ़ी मांगें सांसद
हंगामेबाज सांसदों को चाहिए कि राज्यसभा-अध्यक्ष और उप राष्ट्रपति नायडू से वे लोग उन्हें दुखी करने के लिए क्षमा मांगें और भविष्य में मर्यादा-पालन का वायदा करें ताकि संसद के दोनों सदन इस बार सुचारु रूप से चल सकें।
यदि इन दोनों सदनों का विपक्षी दल बहिष्कार करेंगे तो वे देश में चल रही लोकतांत्रिक व्यवस्था को पहले से भी अधिक क्षीण करने के दोषी होंगे। मोदी सरकार की मोटर गाड़ी यूं भी बहुत तेज भागती रहती है। यदि विरोधी दल घर बैठ जाएंगे तो यह गाड़ी बिना ब्रेक की हो जाएगी।
इसके वैसा हो जाने में विरोधी दल अपना फायदा होता देख सकते हैं लेकिन यह देश के लिए बहुत घातक होगा। विरोधी दलों को चाहिए कि वे इस विकट स्थिति में अधिक मुखर हों और भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य की रक्षा करें।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)