राम के नाम पर टुकड़े-टुकड़े गैंग! तो अखंड भारत कैसे बनेगा?
रामनवमी के दिन दस राज्यों में दंगे हुए। ये दृश्य अच्छे नहीं हैं। इससे पहले रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान सिर्फ़ धर्म-संस्कृति का ही प्रदर्शन किया जाता था। अब ऐसी शोभायात्राओं में तलवारें नचाई जाती हैं। धार्मिक विद्वेष फैलाया जाता है।
सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि 15 वर्षों में अखंड हिंदू राष्ट्र बनेगा। क्या यह इसकी शुरुआत है?
महाराष्ट्र में जहां मसजिदों पर भोंगे (लाउडस्पीक) को लेकर तो वहीं देश के अन्य हिस्सों में रामनवमी के दंगों की राजनीति शुरू हो गई है। धर्मांधता की आग को हवा देकर और शांति को खाक करके यदि कोई चुनाव जीतना चाहता होगा, तो वे अपने हाथों से देश के दूसरे विभाजन के बीज बोते दिख रहे हैं। ‘देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाएं तो भी चलेगा, लेकिन धार्मिक विद्वेष फैलाकर चुनाव जीतने हैं’ ऐसी नीति बीजेपी जैसी पार्टी ने खुलेआम अपनाई है।
राम के नाम पर तलवारें!
देश में रामनवमी का त्योहार सालों साल से मनाया जा रहा है। राम जन्म का उत्सव एक आस्था है ही, परंतु अब पहली बार रामनवमी के अवसर पर देश में कई जगहों पर हाथों में तलवार और शस्त्र लेकर विशाल जुलूस निकाले गए। उत्सव में शामिल लोगों ने मसजिद के सामने रुककर हंगामा किया और इससे कई राज्यों में दंगे की चिंगारी भड़की। मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी के अवसर पर जो कुछ हुआ, उसे देखकर श्रीराम परेशान हो गए होंगे। अयोध्या में राम मंदिर की लड़ाई से जो भाग निकले वो अब राम के नाम पर तलवारें निकाल रहे हैं। इसे हिंदुत्व नहीं कहा जा सकता।
रामनवमी के दिन दस राज्यों में दंगे हुए। इन राज्यों में जल्द ही विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं। इनमें झारखंड, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं। रामनवमी के उपलक्ष्य में शोभा यात्रा निकाली गई और उस पर दूसरे समूहों द्वारा पथराव किया गया। मुंबई के मानखुर्द इलाक़े में भी इस दौरान स्थिति तनावपूर्ण हो गई। हैरानी की बात यह है कि रामनवमी से पहले मुंबई और महाराष्ट्र में हिंदू नव वर्ष गुढी पाडवा धूमधाम से मनाया गया। मुंबई, पुणे, ठाणे, डोंबिवली, नासिक, नागपुर में भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। गाजे-बाजों के साथ कई जुलूस मुसलिम मोहल्लों में निकले, लेकिन जुलूसों पर किसी ने पथराव या हमला नहीं किया। फिर यह सब रामनवमी के दिन ही क्यों होना चाहिए?
गुजरात के साबरकांठा जिले में विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित रामनवमी यात्रा पर एक अन्य समूह के लोगों ने पथराव किया। गुजरात राज्य में, जो मोदी और शाह का राज्य है और आज जिसे हिंदुत्व का गढ़ माना जाता है, उस राज्य में मुसलमान रामनवमी यात्रा पर पत्थर फेंकेंगे? ये कोई मानेगा क्या? पश्चिम बंगाल के हावड़ा-शिवपुर इलाक़े में भी धार्मिक तनाव का निर्माण हुआ। विश्व हिंदू परिषद ने रामनवमी पर जुलूस निकाला। उसमें भड़काऊ भाषण दिए गए। उससे आग भड़की।
रामनवमी पर भड़काऊ भाषणों की परंपरा कब शुरू हुई? जब तक अशोक सिंघल, विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख थे तब तक ऐसी प्रथा-परंपरा नहीं थी, तो अब यह सब कौन करवा रहा है?
मुंबई में शिवसेना हिंदुत्व का जुलूस निकालती है, तो उस पर ऐसा कोई हमला वगैरह नहीं होगा, लेकिन अगर बीजेपी या उसकी ‘बी’ टीम इस तरह के जुलूस का आयोजन करती है, तो गड़बड़ी अवश्य होगी, ऐसी व्यवस्था कर रखी गई है, ऐसा नज़र आता है। रामनवमी के दिन हुई हिंसा यही कह रही है।
और जेएनयू में…
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रामनवमी के दिन ‘शाकाहार-मांसाहार’ विवाद को लेकर दंगा भड़काया गया। इसमें दस छात्रों के सिर फूट गए। वे सभी छात्र हिंदू ही थे। राम के जन्मदिन पर मांस का सेवन नहीं करना है, इस पर शुरू हुआ विवाद, ‘रामनवमी’ उत्सव का विरोध किया इसलिए राडा हुआ, इस मुद्दे पर आकर खत्म हुआ। देशभर में हिंदू-मुसलमानों में आग लगाना, दंगा भड़काना, उसी आग पर चुनावी रोटी सेंकने का ये सियासी खेल देश को जला देगा।
मनसे प्रमुख राज ठाकरे प्रारंभ में ‘मराठी माणूस और अस्मिता के मुद्दे’ के साथ खड़े हुए। जब यह मुद्दा शिवसेना के सामने नहीं टिका तो अब हिंदुत्व की ओर मुड़ गए और मसजिदों पर लगे भोंगे बंद नहीं हुए, तो अब मसजिदों के सामने ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करेंगे, ऐसी चेतावनी देकर मुक्त हो गए। भारतीय जनता पार्टी को जो चाहिए वही एजेंडा श्री राज ठाकरे लागू कर रहे हैं। मुंबई-ठाणे महानगरपालिका चुनाव की ये तैयारी है और हनुमान के नाम पर दंगे हो गए तो महाराष्ट्र में क़ानून-सुव्यवस्था के मुद्दे पर राष्ट्रपति शासन, ‘गुणरत्नी’ खेल चल रहा है।
देश रहेगा क्या?
आज देश में 22 करोड़ मुसलमान हैं और वे देश के नागरिक हैं। मुसलमानों की संख्या बढ़ती जा रही है। यदि यह किसी के लिए चिंता का विषय है, तो अनिवार्य परिवार नियोजन, समान नागरिक क़ानून, जनसंख्या नियंत्रण जैसे क़ानूनों को लागू करना इसका इलाज है। रामनवमी के दंगे और मांसाहार को लेकर खूनखराबा इसका समाधान नहीं है। कल तक मुसलमानों के मामले में ‘आतंकवादी’ शब्द पूरी दुनिया में आम हो गया था। हिंदुओं के मामले में दुनिया में ऐसा कोई दुष्प्रचार नहीं होना चाहिए। इसमें हिंदू धर्म की बदनामी होगी।
उत्तर प्रदेश का एक भगवा वस्त्रधारी साधु मुसलिम महिलाओं के साथ बलात्कार करने की बात करता है। उस बयान पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, लेकिन जब वाशिंगटन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में हिंदुस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर सवाल उठाया जाता है, तब अगले ही दिन बजरंग मुनि के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसका अर्थ ये है कि हिंदुस्तान की ऐसी घटनाओं पर पूरी दुनिया की नज़र है। कल तक धर्मांध मुसलमान आतंकियों जैसा बर्ताव करते थे। क्या हिंदुओं का ऐसा व्यवहार मंजूर है? यही वास्तविक सवाल है। राजस्थान के करौली में रामनवमी की शोभायात्रा के मौक़े पर हिंसा भड़क उठी। ओवैसी महाशय जयपुर पहुंचे और उन्होंने कांग्रेस से पूछा, ‘कांग्रेस सरकार ने रामनवमी के जुलूस की अनुमति दी ही कैसे?’
हिंदुस्तान में रामनवमी के जुलूस पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। कांग्रेसी राज्यों में ऐसी यात्राओं पर पाबंदी लगाई जाती है तो बीजेपी और उसके दूसरे संगठन भी यही चाहते हैं। राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसे देखें तो रामनवमी के दंगों का गूढ़ समझा जा सकता है। राम के नाम पर नफरत का जहर फैलाना राम की अवधारणा का ही अपमान है। ऐसा करना बेशर्मी की निशानी है, वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले का ऐसा कहना सत्य है। हरिद्वार में एक हिंदू सम्मेलन में सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि अगले 15 वर्षों में एक अखंड हिंदू राष्ट्र का निर्माण होगा। हाथ में लाठी लेकर अहिंसा के मार्ग से अखंड हिंदू राष्ट्र का निर्माण करेंगे, यह संकल्पना अच्छी ही है, लेकिन राम के नाम पर इस तरह की हिंसा का तांडव करके देश को अस्थिरता और तनाव की खाई में धकेला जा रहा है। इससे नए बंटवारे के बीज बोये जाएंगे और अखंड हिंदुस्तान बनाते समय धार्मिक विद्वेष से निर्माण हुए हमारे ही देश के टुकड़े समेटने पड़ेंगे। एक विभाजन से सिरफिरा गोडसे तैयार हुआ। गांधी को उसने मार डाला। मरते समय गांधी ने कहा ‘हे राम’! आज वही राम देश को अहंकार, धर्मांधता की आग में जलते देख रहे हैं!
अगर राम के नाम पर टुकड़े-टुकड़े गैंग बननेवाला होगा, तो एक अखंड हिंदू राष्ट्र कैसे बनेगा?
राम के नाम पर चुनाव जीतेंगे, लेकिन देश रहेगा क्या?
(शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' से साभार।)