भारत के ख़िलाफ़ रूस और पाकिस्तान की चतुराई 

09:51 am Apr 09, 2021 | डॉ. वेद प्रताप वैदिक - सत्य हिन्दी

रूसी विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कल इसलामाबाद में बड़ी चतुराई दिखाने की कोशिश की। दोनों ने दुनिया को यह बताने की कोशिश की कि रूस और पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए कटिबद्ध हैं। रूस ने वादा किया कि वह पाकिस्तान को ऐसे विशेष हथियार देगा, जो आतंकवादियों के सफाए में उसके बहुत काम आएंगे। 

यहां पहली बात यह कि वह कौन सा आतंकवाद है, जिसे रूस खत्म करना चाहता है? क्या तालिबान का? क्या कश्मीरियों का? क्या बलूचों का? क्या पठानों का? इनमें से किसी का भी नहीं। उसकी चिंता उसके चेचन्या-क्षेत्र में चल रहे मुसलिम आतंकवाद की हो सकती है लेकिन उसका कोई प्रभाव पाकिस्तान में नहीं है। उसकी जड़ों में तो व्लादीमीर पुतिन ने पहले ही से मट्ठा डाल रखा है। 

भारत की नाराज़गी का डर

सच्चाई तो यह है कि इधर रूस का फौजी उद्योग ज़रा ढीला पड़ गया है। उसके सबसे बड़े शस्त्र-खरीददार भारत ने अपनी खरीद एक-तिहाई घटा दी है। पूर्वी यूरोप के देश भी उसके हथियार कम खरीद रहे हैं। यदि ये हथियार पाकिस्तान को रूस अगर मुक्त रूप से बेचेगा तो भारत को इससे नाराज़गी हो सकती है। इसीलिए लावरोव ने आतंकवाद की ओट ले ली है। आतंकियों को मारने के लिए कौन सी मिसाइलों की जरुरत होती है? 

पाकिस्तान की फौज उन्हें चाहे तो बाएं हाथ से ढेर कर सकती है। जहां तक तालिबान का सवाल है, वे अभी भी अफगानिस्तान में लगभग रोज ही खून बहा रहे हैं। लेकिन रूस तो उन्हें पटाने में लगा हुआ है। वह उन्हें मास्को बुला-बुलाकर बिरयानी खिलाने में जुटा हुआ है। 

लावरोव को पता है कि रूस के हथियार सिर्फ भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल होंगे। फिर भी वह उन्हें पाकिस्तान को बेचने पर डटे हुए हैं। लावरोव की लौरी पर ताल ठोकते हुए पाक सेनापति कमर जावेद बाजवा ने भी डींग मार दी। उन्होंने कह दिया कि पाकिस्तान की किसी भी देश के साथ कोई दुश्मनी नहीं है। दक्षिण एशिया क्षेत्र में वह शांति और सहयोग का वातावरण बनाना चाहता है। उनसे कोई पूछे कि फिर कश्मीर को हथियाने की माला आप क्यों जपते रहते हैं? 

लावरोव ने आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक मामलों में पाकिस्तान को पूर्ण सहयोग का वादा किया है। शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य होने के नाते अब रूस चाहेगा कि पाकिस्तान को रूस और चीन की गलबहियों में लपेट लिया जाए और अफगानिस्तान और ईरान को भी। ईरान के साथ चीन का 25 वर्षीय समझौता हो ही चुका है। 

यह अघोषित गठबंधन दक्षिण एशिया में अमेरिकी रणनीति की काट करेगा। ‘एशियाई नाटो’ की टक्कर में अब ‘एशियाई वारसा-पेक्ट’ की नींव पड़ रही है। भारत से उम्मीद यही है कि वह इन दोनों अघोषित गठबंधनों से खुद को मुक्त रखेगा।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)