देश इन दिनों एक साथ तीन किस्म के शिगूफों का सामना कर रहा है। एक सिमरनजीत सिंह मान ने शिगूफा दिया है कि खालिस्तान बनना चाहिए। दूसरा पटना पुलिस ने सिमी के इनर सर्कुलर के हवाले से देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की पीएफआई की कोशिश को उजागर किया है। और, तीसरा है हिन्दू राष्ट्र- जिस बारे में कोई ऐसा दिन नहीं होता जब बीजेपी के समर्थक आवाज़ बुलन्द नहीं करते।
खालिस्तान, इस्लामिक राष्ट्र या हिन्दू राष्ट्र को शिगूफा कहने के पीछे की सबसे बड़ी वजह यह है कि यह देश संविधान से चल रहा है। चुने गये सारे प्रतिनिधि या देश के ओहदेदार संविधान की शपथ लेते हैं। संविधान की शपथ लेते ही खालिस्तान, इस्लामिक राष्ट्र या हिन्दू राष्ट्र जैसी सोच हवा हो जाती है।
संविधान का यही महत्व है और इसी महत्व के कारण संविधान पर लगातार चोट करने की कोशिशें हो रही हैं। यहां तक कि बीजेपी का थिंक टैंक कहा जाने वाला एक धड़ा लगातार इसके लिए अभियान भी चला रहा है। पुराने कानूनों को बकवास बताने के नाम पर संविधान बदलने की बात की जा रही है।
क्यों नहीं होती पीएफआई पर कार्रवाई?
बीते कई वर्षों से देश में हर उस घटना के साथ प़ॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई को जोड़ दिया जाता है जिसमें मुसलमानों का विरोध नज़र आता है। इन घटनाओं में आतंकी गतिविधियां भी शामिल हैं और लोकतांत्रिक गतिविधियां भी। शाहीन बाग आंदोलन, दिल्ली दंगा, हिजाब प्रकरण, हाथरस कांड, किसान आंदोलन जैसी तारीखी घटनाएं भी पीएफआई की साजिश वाले एंगल से नहीं बच सकी हैं। सवाल वही है कि इतने सारे आरोपों के रहते हुए भी पीएफआई की गतिविधियों की व्यापक जांच और उनसे मिले सबूतों के आधार पर पीएफआई को प्रतिबंधित करने की पहल सरकार ने क्यों नहीं की?
देश में अस्थिरता फैलाने वाले तत्वों का खुलासा करने की कोशिश में पटना पुलिस के हाथ जो सबूत लगे हैं उसके मुताबिक पीएफआई देश में 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखे हुए है। इस लक्ष्य के हिसाब से उसकी गतिविधियां चल रही हैं। पटना पुलिस ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि यह तैयारी आरएसएस की तैयारी से काफी मिलती जुलती है। आरएसएस का खुला लक्ष्य भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना रहा है। पीएफआई की आरएसएस से तुलना को लेकर पुलिस को काफी सुनना भी पड़ रहा है और जवाब देना भी उसके लिए मुश्किल हो चला है।
खालिस्तान की माँग ख़तरनाक है ?
इस्लामिक राष्ट्र या हिन्दू राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखना और खालिस्तान की मांग करना इस मायने में अलग-अलग हैं क्योंकि पहले दोनों लक्ष्य का संबंध हिन्दुस्तान से अलग कोई मांग नहीं है। जबकि, खालिस्तान की मांग हिन्दुस्तान को टुकड़े करने वाली मांग है। मगर, वास्तव में इस्लामिक राष्ट्र या हिन्दू राष्ट्र बनाने का मकसद पूरा होते ही देश की अखण्डता ही सबसे पहले ख़तरे में पड़ने वाली है।
हमारे देश में देशद्रोह का कोई कानून है नहीं। जो राजद्रोह या सेडिशन की धारा हैं उससे ही जरूरत पूरी कर ली जाती है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दो सरकारी कर्मचारियों-बलवंत सिंह और भूपेंदर सिंह- ने ‘खालिस्तान जिन्दाबाद’ और ‘राज करेगा खालसा’ के नारे लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने 124-ए के तहत इसे राजद्रोह मानने से इनकार कर दिया था। अदालत का कहना था कि जब तक नारे लगाने का कोई असर न दिखाई दे, उसे राजद्रोह नहीं कहा जा सकता।
हिन्दू राष्ट्र या इस्लामिक राष्ट्र का नारा भर लगाना राजद्रोह नहीं
स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ हिंदू राष्ट्र, इस्लामिक राष्ट्र या खालिस्तान का नारा भर लगा देने से या फिर ऐसा संकल्प ले लेने भर से कोई राजद्रोह का आरोपी नहीं हो जाता है। यही कारण है कि ये तीनों नारे बेधड़क इस्तेमाल हो रहे हैं। इतना अवश्य हुआ है कि हिन्दू राष्ट्र का नारा देने को देशभक्ति कहा जाने लगा है। इस्लामिक राष्ट्र या खालिस्तान के नारे को विघटनवाद के तौर पर देखा जाता है। इस धारणा को मीडिया ने अपने एकांगी विश्लेषण और प्रस्तुतिकरण से और मजबूत किया है।
पंजाब के संगरूर से नवनिर्वाचित सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने खालिस्तान के रूप में एक ऐसा बफर स्टेट बनाने की मांग रखी है जो तीन न्यूक्लियर पावर भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच हो। उन्होंने खालिस्तान की सोच को दक्षिण एशिया में शांति की पहल के तौर पर पेश किया है।
यह विचार चाहे जितना ख़तरनाक हो लेकिन भारतीय संविधान के हिसाब से राजद्रोह नहीं है। इसका कारण यह है कि यह महज विचार है। इस विचार को अमली जामा पहनाने के लिए ऐसी कोई पहल नहीं की गयी है जिससे हिंसा हो या फिर सामुदायिक वैमनस्यता पैदा हो। फिर, सिमरनजीत सिंह मान ने सांसद के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ लेते हुए भारतीय संविधान का पालन करने की भी शपथ ली है।
पीएफआई की समाजविरोधी गतिविधियां साबित करने की जरूरत
पीएफआई को आतंकी संगठन घोषित करने के लिए सिर्फ इतना काफी नहीं है कि उसका लक्ष्य भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है। साबित यह करना होगा कि इस लक्ष्य के लिए वह गलत हथकंडे अपना रहा है, समाज को तोड़ रहा है, समुदायों को लड़ा रहा है या फिर ऐसी मंशा के साथ सक्रिय है। अगर ऐसे सबूत मिलते हैं तो पीएफआई को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
हालांकि मांग यह भी उठनी तय है कि हिन्दू राष्ट्र की मांग करने वालों की भी ऐसी जांच हो कि उनकी गतिविधियां समाज को तोड़ने वाली नहीं है। अगर प्रशासन हिन्दू राष्ट्र की कामना करने वालों को पकड़ना शुरू करे तो मोहन भागवत से लेकर आरएसएस और बीजेपी के छोटे-बड़े नेता सभी इसकी जद में आ जाएंगे। यही कारण है कि पुलिस ऐसे मामलों में पड़ना नहीं चाहती क्योंकि ऐसा कर पाना वर्तमान में संभव नहीं है क्योंकि देश के ज्यादातर हिस्सों में आज बीजेपी के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार है।
इसमें संदेह नहीं कि चाहे मांग खालिस्तान की हो या फिर भारत को इस्लामिक राष्ट्र या हिन्दू राष्ट्र बनाने का लक्ष्य हो- सभी गलत हैं और देशतोड़क हैं। बावजूद इसके इन तत्वों पर कार्रवाई मुश्किल दिख रही है।
जो कार्रवाई दिख रही है वह सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ दिखती है। इसलिए मुसलमानों में यह भावना घर कर रही है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। अगर सरकार और प्रशासन को कार्रवाई करनी ही है तो वह एक साथ सब पर कार्रवाई करे। ऐसा करके ही संविधान की गरिमा को मजबूत कर सकते हैं।