राहुल को किसने हराया, मतदाताओं ने या कांग्रेस ने?
आठ सितंबर को राहुल गांधी अमेरिका में टेक्सस प्रांत के डलास शहर में उन बीस-पच्चीस युवाओं के दुख-दर्द सुन रहे थे जो नौकरी-रोज़गार की तलाश में बिना काग़ज़ातों के अपार तकलीफ़ें सहते हुए ‘डंकी’ रूट से अमेरिका पहुँचे थे। इस दुस्साहसपूर्ण काम में उन्हें कई देशों से गुजरना पड़ा था। राहुल की डलास यात्रा सिर्फ़ एक दिन की थी और कई कार्यक्रम भी थे पर उन्हें जब इन युवाओं के संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में पता चला तो अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद उनसे मिलने के लिए वक्त निकल लिया।
हरियाणा के युवाओं ने राहुल से अपने संघर्ष की कहानियाँ साझा की थीं और अपने गृह-राज्य में युवाओं की बेरोज़गारी की स्थिति से उन्हें अवगत कराया था। इन युवाओं से बातचीत ने राहुल को विचलित कर दिया था। भारत वापस लौटते ही वे सबसे पहले उस एक युवक के परिवार से मिलने सुबह-सुबह उसके घर करनाल पहुँच गए जो डलास में उन्हें मिला था। राहुल ने उसके परिवार के साथ काफ़ी समय बिताया और वीडियो कॉल के ज़रिए अपनी मौजूदगी में उसकी परिवार के लोगों से बात करवाई।
राहुल की डलास यात्रा और करनाल में परिवारजनों से हुई बातचीत का तेरह मिनट का ‘डंकी’ नाम का वीडियो हरियाणा में काफ़ी चर्चित हुआ। अपनी चुनावी सभाओं में भी राहुल ने युवाओं की बेरोज़गारी का ज़िक्र किया और बताया भाजपा सरकार की ग़लत नीतियों के चलते किस तरह युवाओं को अवैध तरीक़ों से विदेशों का रुख़ करना पड़ रहा है।’डंकी’ का जगह-जगह प्रदर्शन भी हुआ।
हरियाणा के मतदाताओं ने ‘डंकी’ देखी, अपने बेटों के कष्टों को समझा। देश ने भी देखी। इसके ज़रिए राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के मर्म को और गहराई से समझा। हरियाणा के वोटरों ने यह भी समझा कि उनके जवान बच्चे इसी तरह घर छोड़ते रहे तो राज्य में एक दिन सिर्फ़ बूढ़े और बंजर होते खेत ही बच जाएँगे जिन्हें अडानी जैसा कोई पूँजीपति ख़रीद लेगा और उन पर अनाज जमा करने के गोदाम या मॉल बना देगा।
राहुल की ‘डंकी’ को सबने देखा अगर कोई नहीं देख पाया तो वे हरियाणा कांग्रेस के महत्वाकांक्षी बूढ़े नेता और नेत्रियां थीं जिनके बेटे-बेटियाँ राजनीति के रोज़गार में ही फल-फूल रहे हैं, जिन्हें डंकी रास्तों से विदेश जाने की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
राहुल जब अपनी ‘डंकी’ में खोए हुए थे, ये नेता टिकटों के बँटवारे और मुख्यमंत्री का पद हथियाने के लिए कांग्रेस में डंकी रास्ते तलाश कर रहे थे। इनके पास राहुल की ‘डंकी’ को देखने के लिए वक्त नहीं था।
’एग्जिट पोल्स’ के फ़र्ज़ी आँकड़ों ने इनकी बूढ़ी महत्वाकांक्षाओं में जवानी के चार चाँद लगा दिए थे। राहुल सात सितंबर को डलास में हरियाणा के युवाओं की आँखों में उम्मीदों का काजल रोपने पहुँचे थे। आठ अक्टूबर को वही काजल पराजय का कालिख बनकर कांग्रेस के चेहरे पर फैल गया।
क्या कांग्रेस के नेता ही नहीं चाहते थे कि राहुल के ज़रिए हरियाणा का भाग्य बदल पाए या फिर हरियाणा के मतदाता नहीं चाहते थे कि ‘डंकी’ रास्तों से विदेशों में संघर्ष कर रहे उनके बेटे वापस लौटें और नए युवा अपने परिवारों को इस तरह से छोड़कर नहीं जाएँ?
कोई एक बात तो सच होना चाहिये! जवाब सिर्फ़ राहुल दे सकते हैं! मोदी चाहे चौथी बार दिल्ली की सत्ता में नहीं आ पाएँ, यही कांग्रेस बनी रही तो भाजपा हरियाणा में ज़रूर आ जाएगी!