प्रियंका के महिला कार्ड से ध्वस्त होगा बीजेपी के हिंदुत्व का एजेंडा?

07:13 am Oct 20, 2021 | विनोद अग्निहोत्री

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की ओर से चालीस फ़ीसदी सीटों पर महिलाओं को टिकट देने की प्रियंका गांधी की घोषणा ने न सिर्फ़ विधानसभा चुनावों बल्कि 2024 तक होने वाले सभी विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के लिए भी कांग्रेस का सियासी एजेंडा तय कर दिया है। प्रियंका की इस घोषणा से तीन बातें साफ़ हैं।

पहली ये कि जब विधानसभा चुनाव में महिला सशक्तिकरण कांग्रेस का मुख्य मुद्दा होगा तो पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा भी कोई महिला ही हो सकती है, क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती खुद को महिला मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश करेंगी और ऐसा होने पर कांग्रेस के सामने किसी महिला को आगे करने की सियासी मजबूरी होगी। क्योंकि प्रियंका गांधी से बड़ा कोई दूसरा नाम कांग्रेस में नहीं है, इसलिए इसकी संभावना भी है कि अगर यह मुद्दा महिलाओं में आकर्षण पैदा करने में कामयाब हुआ तो देर-सवेर प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की घोषणा पार्टी कर सकती है या फिर उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ाकर यह संदेश दे सकती है।

प्रियंका की आज की घोषणा का दूसरा संकेत यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जहाँ बीजेपी सपा और बसपा का फोकस सामाजिक समीकरण साधने पर है, वहीं प्रियंका की अगुआई में कांग्रेस ने महिला कार्ड चलकर चुनाव का फोकस बदल दिया है और कांग्रेस का सारा जोर प्रदेश की आधी आबादी को अपने साथ जोड़कर देश के सबसे बड़े सूबे में अपने लिए नई संभावनाएँ तलाशने पर होगा। इस तरह कांग्रेस बीजेपी के हिंदू ध्रुवीकरण और सपा बसपा के जातीय ध्रुवीकरण के कार्ड को महिला सशक्तिकरण के दांव से तोड़ेगी।

तीसरी बात ये कि अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को इस मुद्दे का फायदा मिला तो न सिर्फ़ 2022 और 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस महिला सशक्तिकरण और महिला सुरक्षा के मुद्दे को प्रमुख चुनावी मुद्दा बना सकती है। मुमकिन है इसके लिए कांग्रेस यूपीए सरकार द्वारा राज्यसभा में पारित किए गए महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में लाकर पारित कराने के लिए भी दबाव बनाकर उसे मुद्दा बनाए।

जीत में महिलाओं का योगदान

किसी भी चुनाव में किसी भी दल की जीत में सबसे ज़्यादा योगदान महिलाओं के समर्थन का होता है। इंदिरा गांधी के जमाने में कांग्रेस को देश में महिलाओं का एकमुश्त समर्थन हासिल था, जो बाद में धीरे-धीरे घटता चला गया। 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में भी कांग्रेस को महिलाओं का खासा समर्थन मिला था, जो 2009 तक जारी रहा। 

गुजरात में नरेंद्र मोदी और बिहार में नीतीश कुमार की जीत के पीछे महिलाओं का समर्थन बड़ी वजह माना गया। उड़ीसा में नवीन पटनायक, तेलंगाना में टीआरएस की जीत का भी बड़ा आधार उन्हें महिलाओं का समर्थन मिलना रहा।

कभी आंध्र प्रदेश में एनटीआर और बाद में चंद्रबाबू नायडू को भी महिलाओं का भरपूर समर्थन मिला। प. बंगाल में जब तक महिलाओं का समर्थन वाममोर्चे के साथ रहा उसकी जीत सुनिश्चित रही। लेकिन बाद में ममता बनर्जी ने महिलाओं के बीच अपनी अलग जगह बनाई और महिलाओं की ताक़त की बदौलत ममता और तृणमूल इसी साल हुए विधानसभा चुनावों तक अजेय बनी हुई हैं।

भारतीय राजनीति के इस यथार्थ को प्रियंका गांधी ने समझ लिया है। इसीलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश में लगातार महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण का सवाल उठाया और उन्नाव, हाथरस, लखीमपुर जहाँ भी महिला उत्पीड़न का कोई मामला सामने आया प्रियंका ने उसे हर तरह से उठाया। अब कांग्रेस की तरफ़ से चालीस फ़ीसदी विधानसभा सीटों पर महिला प्रत्याशी उतारने की घोषणा से प्रियंका गांधी ने महिला सशक्तिकरण के मुद्दे को नई धार दे दी है। कांग्रेस के इस दाँव के दबाव में बीजेपी, सपा और बसपा को भी कुछ इसी तरह के क़दम उठाने होंगे। अगर वह ऐसा क़दम उठाते हैं तो इसका श्रेय प्रियंका गांधी को मिलेगा और अगर वह नहीं उठाते हैं तो कांग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान उन दलों और उनके नेताओं को महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर घेरेगी।

कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि प्रियंका के चेहरे के साथ कांग्रेस जब विधानसभा चुनावों में चालीस फ़ीसदी महिला उम्मीदवारों के साथ मैदान में उतरेगी, तो निश्चित रूप से जाति, धर्म और वर्ग की सीमाओं से उठकर महिलाओं का समर्थन उसे मिल सकता है।

अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस की सीटें भी बढ़ेंगी और मत प्रतिशत भी। इससे न सिर्फ़ राज्य में कांग्रेस अपनी खोई ज़मीन वापस पाने की ओर बढ़ेगी बल्कि लोकसभा चुनावों के लिए भी आधार तैयार होगा। इसके साथ ही अन्य राज्यों में पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि भी चुनावों में कांग्रेस महिलाओं की भागदीरी का यह दांव खेलेगी। साथ ही महिला आरक्षण के लंबित विधेयक को पारित कराने के लिए मोदी सरकार पर दबाव भी बनाएगी। कांग्रेस इस मुद्दे को लोकसभा चुनावों तक ज़िंदा रखेगी और 2024 के चुनावों में महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा को एक बड़े राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में उठाकर मैदान में उतरेगी। इस तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की अगुआई में कांग्रेस अब नए सामाजिक एजेंडे की ओर बढ़ रही है जो जाति धर्म से अलग हटकर लैंगिक समानता और हिस्सेदारी का एजेंडा होगा।

(अमर उजाला से साभार)