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झारखंड चुनाव प्रचार ‘रोटी-बेटी-माटी छीनने’ तक कैसे पहुँच गया?

झारखंड चुनाव प्रचार ‘रोटी-बेटी-माटी छीनने’ तक कैसे पहुँच गया?

प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड में ‘घुसपैठिये’ का मुद्दा उठाय और रोटी-बेटी-माटी को छीनने वालों का ज़िक्र किया। आख़िर बांग्लादेशी घुसपैठिए को लेकर सरकार के पास आँकड़े क्या हैं?

झारखंड में कितने अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं? पूरे देश में कितने हैं?

बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल है।

2020 में गृह राज्यमंत्री आदरणीय किशन रेड्डी ने फरमाया कि अगर भारत हर आने वाले बांग्लादेशी को नागरिकता दे दे तो आधा बांग्लादेश (जनसंख्या 17 करोड़) खाली हो जाएगा। निश्चय ही मंत्री जी ने कहा है तो बात सच ही रही होगी। आँकड़े भी बता देते तो क्या ही अच्छा होता। पर कहने में क्या जाता है जब यही शासन का दर्शन हो तो तथ्यों की क्या चिंता?

प्रतीक हजेला की याद है? असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के पूर्व समन्वयक आईएएस अधिकारी जिन्हें विवाद और धमकियों के चलते सर्वोच्च न्यायलय ने 2019 में मप्र स्थानांतरित कर दिया था। अब सेवामुक्ति ले चुके हैं। उन्होंने कहा था 2016 में असम में अवैध आप्रवासियों की संख्या "हज़ारों में" थी। 

उन्हीं दिनों पूर्व भाजपा नेता प्रोद्युत बोरा का बयान था, "बांग्लादेशियों के लिए असम में आप्रवास करने के बहुत कम कारण हैं क्योंकि बांग्लादेश में विकास के सभी संकेतक असम से बेहतर हैं।"

ये बयान सही हैं या गलत आप फैसला कीजिए। 

इसी साल 13 अगस्त को झारखंड उच्च न्यायालय ने हेमंत सोरेन सरकार को आदेश दिया कि प्रदेश के संथाल परगना इलाके में अवैध बांग्लादेशियों की संख्या की जाँच करा कर आँकड़े पेश करे। उसके बाद वहाँ धुँआधार चुनाव प्रचार कर रहे केंद्रीय गृहमंत्री शाह ने चुनाव सभा में घोषणा की कि भाजपा की सरकार बनने पर इस बारे में श्वेत पत्र जारी करेगी।

इस संथाल परगना के छह जिलों में नाटकीय रूप से बदलती जनसांख्यिकी (demography) के बारे में भाजपा दशकों से शोर मचा रही है। अब प्रधानमंत्री जी अचानक बेहद चिंतित हो उठे हैं। यहाँ की रोटी-बेटी-माटी की फिक्र में दुबले हो रहे हैं।

आइए तथ्य देखें। सन 2000 में बने प्रदेश में अब तक लगभग 13 साल भाजपा का शासन रहा है। जेएमएम के कुल शासन काल और आधे से कहीं ज्यादा। इतने सालों में उन बांग्लादेशियों की संख्या, उनके इन कथित गंभीर अपराधों पर कोई आयोग, कोई श्वेत पत्र जारी किया गया? नहीं। क्यों नहीं, इसका जवाब कौन देगा?

जिस रोटी-बेटी-माटी को छीनने वालों के खिलाफ आदरणीय लोग तमतमाए घूम रहे हैं उनकी सही-सही संख्या भी नहीं बता सके हैं 13 साल में। आज भी प्रधानमंत्री के पास कोई आँकड़े नहीं केवल भड़काऊ भाषण हैं।

यही हाल देश के स्तर पर है। पूरे देश में कितने अवैध बांग्लादेशी हैं इसका कोई आँकड़ा 'राष्ट्रवादी' सरकार ने जारी नहीं किया है। 2016 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू ने संसद में कहा भारत में लगभग दो करोड़ बांग्लादेशी 'घुसपैठिए' हैं। इसको आठ साल हो गए। आज तक कोई अद्यतित प्रामाणिक संख्या नहीं बताई गई है। इस दौरान कितने चुनावों में किस-किस भाजपाई ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए नहीं चुनाव बटोरे? लेकिन अपनी ही सरकार से ठोस आँकड़े माँगने की हिम्मत नहीं दिखाई।

उत्तर पूर्व के हमारे सीमा प्रांतों में बदलती जनसांख्यिकी निस्संदेह एक गंभीर मसला है। लेकिन उसे सिर्फ चुनावों में भुनाने से उसका समाधान नहीं होगा। उसका शर्मनाक सांप्रदायिक इस्तेमाल करके देश के सारे मुसलमानों को अराष्ट्रीय अपराधी के रूप में चित्रित करने से केवल भारतीय समाज और देश कमज़ोर होगा।

अब ज़रा तस्वीर का दूसरा रुख भी देखें। अकेले अमेरिका में 2021 में लगभग 7.25 लाख अवैध भारतीय रह रहे थे। हर साल 90,000 से ज़्यादा अवैध रास्तों से वहाँ पहुँचते हैं। वे अमेरिका के तीसरे सबसे बड़े अवैध निवासी हैं। पिछले सालों में उनकी संख्या दूसरे देशों से आने वाले अवैध आप्रवासियों की तुलना में सबसे ज्यादा, 70% बढ़ी है। इनमें सबसे बड़ी संख्या पंजाबियों और गुजरातियों की है। इन पर पूरी फिल्म ही बन गई, 'दुन्की'।

वही गुजरात जो देश के सबसे समृद्ध प्रदेशों में है, जो मोदी जी को आजीवन सम्राट मान चुका है, उसी गुजरात के लोग खूँटा छुड़ा कर, जान का जोखिम उठा कर वहाँ से भाग रहे हैं। अवश्य ही ये देशभक्त विश्वविजय अभियान के गुप्त हरकारे होंगे।

इनको भी षडयंत्रकारी, अपराधी  घुसपैठिया कहा जा सकता है क्या?

(राहुल देव के सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)

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