प्रधानमंत्री के इर्द-गिर्द एक ऐसा तंत्र विकसित हो गया है जिसने देश की एक बड़ी आबादी को उनकी दैनंदिन की गतिविधियों और व्यक्तित्व के दबदबे के साथ चौबीसों घंटों के लिए एंगेज कर दिया है। प्रधानमंत्री की मौजूदगी हवा-पानी की तरह ही नागरिकों की ज़रूरतों में शामिल की जा रही है। पार्टी और तंत्र से परे प्रधानमंत्री की छवि ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी ‘ के ‘कल्ट’ के रूप में विकसित और स्थापित की जा रही है। नागरिकों को और कुछ भी सोचने का मौक़ा नहीं दिया जा रहा है। महंगाई तो बहुत दूर की बात है।
अलग-अलग कारणों से लगातार चर्चा में बने रहने वाले इंदौर शहर की एक ख़बर यह है कि एक मुसलिम किरायेदार ने अपने मुसलिम मकान मालिक के ख़िलाफ़ अधिकारियों से शिकायत की कि उसे मकान ख़ाली करने की धमकी इसलिए दी जा रही है कि उसने प्रधानमंत्री की तसवीर घर में लगा रखी है। जाँच के बाद बताया गया कि दोनों के बीच विवाद किराए के लेन-देन का है। किरायेदार को उम्मीद रही कि होगी कि मोदी की तसवीर उसके लिए सुरक्षा कवच का काम कर सकती है। किरायेदार अगर बहुसंख्यक समुदाय का होता तो स्थिति जाँच पूरी होने के पहले ही कोई अलग रूप ले सकती थी। सार यह है कि लोग प्रधानमंत्री की छवि का उपयोग स्वयं के डरने में भी कर रहे हैं और दूसरों को डराने में भी!
एक मीडिया प्लेटफ़ार्म की यूट्यूब चैनल बहस के दौरान एक पैनलिस्ट ने जब पहली बार कहा कि बीजेपी देश पर पचास साल तक राज करने वाली है तो उनके कहे को ‘पंद्रह लाख हरेक के खाते में जमा हो जाएँगे‘ जैसा ही कोई जुमला मानकर ख़ारिज कर दिया। पैनलिस्ट ने जब अपने दावे को ज़ोर देकर इस संशोधन के साथ दोहराया कि मोदी ही अगले पचास सालों तक राज करने वाले हैं तो उनकी बात पर नए सिरे से सोचना पड़ा। यहाँ जोड़ा जा सकता है कि पैनलिस्ट न तो मोदी के भक्त हैं और न ही बहुसंख्यक समुदाय से आते हैं। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कुछ तर्क भी पेश किए।
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की पूर्व संध्या पर 8 अगस्त 1942 के दिन बम्बई में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में गांधी जी ने जब घोषणा की होगी कि वे पूर्ण जीवन जीना चाहते हैं और उनके अनुसार पूर्ण जीवन का अर्थ एक सौ पच्चीस वर्ष होता है तो कई लोग आश्चर्यचकित रह गए होंगे। गांधी जी ने आगे यह भी जोड़ा कि तब तक सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया भी आज़ाद हो जाएगी। (गांधी जी की उम्र उस समय 73 वर्ष थी।)। गांधी जी दृढ़ इच्छा-शक्ति के व्यक्ति थे अतः उन्हें अपने आप पर पूरा विश्वास रहा होगा कि वे सवा सौ वर्ष तक जीवित भी रह सकते हैं और देश के लिए काम भी कर सकते हैं। उन्होंने डेढ़ सौ वर्ष जीवित रहने जैसी असम्भव-सी बात नहीं कही।
(हम सभी ने पिछले दिनों देखा कि किस तरह से सवा सौ वर्ष के स्वामी शिवानंद नंगे पैर चलते हुए पद्मश्री अलंकरण प्राप्त करने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में पहुँचे थे और बिना किसी सहारे के उन्होंने प्रधानमंत्री को साष्टांग प्रणाम किया था।)
चीन और रूस के राष्ट्रपतियों ने अपने देशवासियों को बता रखा है कि वे और कितने सालों तक अपने पदों पर बने रहकर उनकी सेवा करने वाले हैं।
चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीनी संविधान में संशोधन के ज़रिए राष्ट्रपतियों के दो बार से अधिक पद पर बने रहने की समय-सीमा को ख़त्म कर दिया गया है। यानी 2003 से राष्ट्रपति 68-वर्षीय शी जिनपिंग अब जब तक चाहेंगे सत्ता में बने रह सकेंगे। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को भी सत्ता की होड़ से बाहर कर दिया है।
अपने लिए बनाए गए क़ानून के अनुसार 69-वर्षीय रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी अब 2036 तक सत्ता में रह सकेंगे। वे तब 83 वर्ष के हो जाएँगे। पुतिन 1999 से सत्ता में हैं। 1999 से 2008 तक वे देश के प्रधानमंत्री थे। बाद में राष्ट्रपति बन गए। चीन और रूस दोनों में आने वाले कई वर्षों तक इस बात की कोई चर्चा नहीं होने वाली है कि जिनपिंग के बाद कौन? या ‘हू आफ़्टर पुतिन?’ नेहरू के जमाने से भारत की राजनीति में चर्चा होती रही है कि ‘हू आफ़्टर नेहरू? इंदिरा? या वाजपेयी? वाजपेयी जी के मामले में तो मानकर चला जाता था कि आडवाणी ही उनके उत्तराधिकारी होंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने जनता और बीजेपी दोनों को ही इतने ज़बरदस्त तरीक़े से 24 घंटे एंगेज कर रखा है कि ‘हू आफ़्टर मोदी?’ का विचार भी कोई अपने मन में नहीं ला सकता।
भारत में प्रधानमंत्रियों के पद पर बने रहने की वैसे भी कोई संवैधानिक सीमा नहीं है। मोदी ने अपनी ओर से भी मन की बात कभी ज़ाहिर नहीं की कि वे कब तक पद पर बने रहना चाहते हैं। उनकी नज़र में निश्चित ही ऐसे कई बड़े काम अभी बाक़ी होंगे जिन्हें उनके ही द्वारा पूरा किया जाना है। वर्तमान ज़िम्मेदारियों के साथ मोदी ने अपने आपको इतना एकाकार कर लिया है कि इकहत्तर वर्ष की आयु में भी वे ज़बरदस्त तरीक़े से काम करते हुए नज़र आते हैं। कहा जाता है कि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी जब सुबह उठकर आँखें ही मल रहे होते हैं मोदी ज़रूरत पड़ने पर कैबिनेट की मीटिंग भी बुला लेते हैं। प्रधानमंत्री की असीमित ऊर्जा में यह भी शामिल है कि वे प्रशंसकों के साथ-साथ विरोधियों को भी पूरे समय एंगेज किए रहते हैं। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी उस क्षण से कमजोर होने लगेंगे जिस क्षण से विपक्षी उनके बारे में सोचना और उनपर हमले करना बंद कर देंगे।
मोदी की दिनचर्या को लेकर एक पुरानी जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री सिर्फ़ साढ़े तीन घंटे की ही नींद लेते हैं। मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘उनके डॉक्टर मित्र उन्हें लगातार सलाह देते रहते हैं कि कम से कम पाँच घंटे की नींद लेनी चाहिए पर मैं सिर्फ़ साढ़े तीन घंटे ही सो पाता हूँ।’ मोदी का यह इंटरव्यू ग्यारह साल पहले (2011) का है जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, प्रधानमंत्री नहीं बने थे। उनकी नींद को लेकर महाराष्ट्र बीजेपी के प्रमुख चंद्रकांत पाटील ने पिछले दिनों कहा कि : ‘पीएम सिर्फ़ दो घंटे सोते हैं और बाईस घंटे काम करते हैं। वे प्रयोग कर रहे हैं कि सोने की ज़रूरत ही नहीं पड़े। वे हरेक मिनट देश के लिए काम करते हैं।’ अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा देर रात तक काम करते थे पर पाँच घंटे की नींद लेते थे।
आलेख का सार यह है कि वे तमाम विपक्षी दल जिनका एकमात्र उद्देश मोदी को सत्ता से हटाना है उन्हें अपनी नींद के घंटे कम करने पड़ेंगे और जनता के साथ एंगेजमेंट बढ़ाना होगा। अपनी बात हमने एक पैनलिस्ट के इस दावे से प्रारम्भ की थी कि मोदी और पचास साल हुकूमत में रहने वाले हैं। सवा सौ साल तक सक्रिय रहने का फ़ॉर्मूला स्वामी शिवानंद से प्राप्त किया जा सकता है। विपक्षी दलों द्वारा आरोप लगाया जा सकता है कि मोदी को लेकर मैं उन्हें डरा रहा हूँ।