मोदी की इस योगी तारीफ़ के पीछे क्या है?

01:47 pm Jul 17, 2021 | श्रवण गर्ग - सत्य हिन्दी

किसी राष्ट्र के प्रधानमंत्री होने के सुख और उसकी अनुभूति का शब्दों में बखान नहीं किया जा सकता। वह राष्ट्र अगर दुनिया के करीब दो सौ मुल्कों में सबसे ज़्यादा आबादी वाला लोकतांत्रिक देश भारत हो तो फिर उसके प्रधानमंत्री के मुंह से निकलने वाला प्रत्येक शब्द इतिहास बन जाता है। उन शब्दों की विश्वसनीयता को चुनौती देने का जोखिम भी मोल नहीं लिया जा सकता।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में थे। कोरोना काल की दूसरी लहर के दौरान भगीरथी गंगा द्वारा अपने कोमल शरीर पर बहती हुई लाशों की यंत्रणा बर्दाश्त कर लिए जाने के बाद की अपनी पहली यात्रा में प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश के कोरोना प्रबंधन को अभूतपूर्व घोषित करते हुए इतनी तारीफ़ की कि वहां उपस्थित मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी भी भौंचक्के रह गए होंगे। 

कुप्रबंधन के सर्वव्यापी आरोपों के बीच इस तरह के अविश्वसनीय प्रमाणपत्र के सार्वजनिक रूप से प्राप्त होने की कल्पना योगी ने भी नहीं की होगी। सरकार और पार्टी में अब इस तरह की चर्चाएँ टटोली जा सकती हैं कि प्रधानमंत्री जब भी किसी नेता की ‘लार्जर देन लाइफ साइज़’ तारीफ़ कर दें तो भविष्य की किन-किन आशंकाओं को कतई खारिज़ नहीं किया जाना चाहिए।

इस बात की खोज की जानी अभी बाकी है कि किसी समय प्रधानमंत्री द्वारा वाराणसी से चुनाव का नामांकन पत्र भरने के दौरान एक प्रस्तावक के रूप में अपना भी नाम शामिल करवा कर चर्चित होने वाले किराना और बनारस घराने के प्रतिनिधि कलाकार 85-वर्षीय पद्मविभूषण छन्नूलाल मिश्र मोदीजी के उद्बोधन के वक्त कहाँ व्यस्त थे और उनकी क्या प्रतिक्रिया थी! 

आरोप है कि पंडित मिश्र की बड़ी बेटी संगीता मिश्र की कोरोना इलाज में बरती गई लापरवाही के कारण 29 अप्रैल को मृत्यु हो गई थी। बाद में हो-हल्ला मचने पर बैठाई गई जांच में अस्पताल को क्लीन चिट देने के साथ ही इलाज में लापरवाही तथा ज्यादा वसूली के आरोपों को भी ख़ारिज कर दिया गया था।

योगी सरकार पर उठे सवाल

दुनिया भर के मुल्कों में उत्तर प्रदेश के कोरोना-प्रबंधन को लेकर उंगलियां उठाई गईं, गंगा में बहती लाशों के फोटो प्रकाशित किये गए, मौतों के सरकारी आंकड़ों को चुनौतियाँ दी गईं, इलाज के लिए तड़पते नागरिकों की व्यथाओं के चौंका देने वाले वर्णन लिखे गए और उन सब को एक झटके से खारिज़ करते हुए प्रधानमंत्री ने महामारी के श्रेष्ठ प्रबंधन का प्रमाणपत्र मंच से जारी कर दिया। बाद में अपने एक ट्वीट के जरिए देश की जनता को भी इसकी सूचना दे दी। 

बीजेपी-शासित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए इस ट्वीट को महत्वपूर्ण संकेत माना जा सकता है। देश के उन गैर-बीजेपी शासित राज्यों, जहाँ कोरोना का प्रबंधन तुलनात्मक दृष्टि से बेहतर हुआ होगा, के मुख्यमंत्रियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया आना अभी शेष है।

गंगवार ने उठाया था सवाल 

पूर्व केंद्रीय श्रम और रोज़गार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और बरेली से सांसद संतोष गंगवार अगर सात जुलाई को किए गए मंत्रिमंडलीय फेर-बदल में बर्खास्त किए गए कोई दर्ज़न भर लोगों में अपना भी नाम शामिल किए जाने के कारणों का पता लगाने में जुटे होंगे तो वे भी प्रधानमंत्री की बनारस यात्रा के बाद से निश्चिन्त हो गए होंगे। 

देखिए, इस विषय पर वीडियो- 

कोरोना प्रबंधन की अव्यवस्थाओं को लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री योगी को आठ मई को एक शिकायत भरा पत्र लिखने की जुर्रत की थी और वह वायरल भी हो गया था। गंगवार (केवल 2004 से 2009 की अवधि छोड़कर जब वे कुछ ही मतों से हार गए थे) 1989 से लोकसभा में बरेली का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और बीजेपी में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं।

लोकतंत्र को ख़तरा!

कई वरिष्ठ सेवानिवृत नौकरशाहों और पुलिस अफसरों सहित समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले कोई दो सौ लोगों ने पिछले दिनों एक खुला पत्र जारी किया है।

 

‘कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट’ के बैनर तले जारी इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में शासन-व्यवस्था (गवर्नेंस) पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। क़ानून के राज का निर्ममता से उल्लंघन हो रहा है। अगर इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो लोकतंत्र पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। पत्र में योगी के नेतृत्व में बीजेपी के 2017 में सत्ता में आने के बाद से जारी ज्यादतियों का ज़िक्र किया गया है। प्रधानमंत्री ने गुरुवार को बनारस में यह भी स्पष्ट कह दिया कि उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से कानून का राज क़ायम है और नागरिक सुरक्षित हैं।

कोरोना की दोनों लहरों के दौरान चाहे देश भर में बाक़ी सारे काम ठप पड़ गए हों, लुटियंस की दिल्ली के अति-महत्वपूर्ण रायसीना हिल क्षेत्र में कोई बीस हज़ार करोड़ की अनुमानित लागत से निर्माणाधीन ‘सेंट्रल विस्टा' प्रोजेक्ट का काम धीमा नहीं पड़ा।

अनवरत जारी इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को लोकसभा चुनावों के साल 2024 तक किसी भी कीमत पर पूरा किया जाना है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत न सिर्फ नए और विशाल संसद भवनों का निर्माण होना है, प्रधानमंत्री का नया आवास भी आकार लेने वाला है। योगी आदित्यनाथ अच्छे से जानते हैं कि इस आवास में प्रवेश की आधारशिला रखने के लिए अगले साल के प्रारंभ में हो रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में बीजेपी की सरकार का भारी बहुमत के साथ फिर से सत्ता में काबिज होना निहायत ज़रूरी है और यह काम उनके नेतृत्व में ही संपन्न होना है। 

उत्तर प्रदेश की यह जीत ही 2024 में राज्य से लोकसभा की अस्सी सीटों का भविष्य भी तय करेगी। प्रधानमंत्री द्वारा की गई तारीफ़ ने अगर योगी की चिंताओं को बढ़ा दिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं व्यक्त किया जाना चाहिए।

बीजेपी जानती है कि बंगाल सहित अन्य राज्यों में पिछले साल के आखिर में हुए चुनावों में मुख्यमंत्री योगी को हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में पेश कर साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण करने के अपेक्षित परिणाम नहीं निकले हैं। उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनावों के नतीजे भी पार्टी के लिए निराशाजनक ही रहे हैं। हाल में ब्लॉक प्रमुखों के चयन और जिला परिषदों के गठन के दौरान हिंसा की घटनाओं ने भी पार्टी की चुनौतियों को बढ़ा दिया है। 

2024 की तैयारी 

इस सबके बावजूद अगर योगी के कट्टर हिंदुत्व में विश्वास व्यक्त किया गया है तो पार्टी और संघ के लिए कोई बड़ा कारण या बड़ी मजबूरी रही होगी ! उत्तर प्रदेश की बदलती हुई परिस्थितियों के चलते आरएसएस ने भी अपनी पूरी ताकत लखनऊ में झोंक दी है। उत्तर प्रदेश को लेकर हाल ही में चित्रकूट में संपन्न संघ की पांच-दिनी बैठक इसका प्रमाण है।

बीजेपी अब उत्तर प्रदेश में वह सब कुछ कर सकती है जो चुनाव जीतने के लिए ज़रूरी माना जा सकता है। प्रधानमंत्री की यात्रा को इन्हीं सन्दर्भों में पढ़ा जा सकता है कि बीजेपी ने देश में लोकसभा चुनावों की तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं और मोदी बनारस में पार्टी और प्रधानमंत्री पद का भविष्य योगी के हाथों में सौंपने पहुंचे होंगे।