भारत रत्न को लेकर इतनी हड़बड़ी क्यों?

04:57 pm Feb 09, 2024 | सुदीप ठाकुर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह और पी वी नरसिंह राव के साथ ही कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न अलंकरण दिए जाने की घोषणा की है, जिससे किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए। सबसे पहली बात कि इन तीनों हस्तियों के योगदान को सचमुच भुलाया नहीं जा सकता। न ही भारत रत्न अलंकरण की गरिमा को। मगर सवाल यह है कि ठीक यही समय क्यों चुना गया है? भारत रत्न की यह महीने भर से कम समय में तीसरी किस्त है। इन तीन विभूतियों से पहले समाजवादी चिंतक नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई थी। उसके बाद अयोध्या और राम मंदिर आंदोलन को भाजपा के लिए सत्ता की सीढ़ी बनाने वाले पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से अलंकृत किए जाने की घोषणा की गई।

ये घोषणाएं आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर क्या मायने रखती हैं, इसे समझने के लिए राजनीति विज्ञान के किसी प्राध्यापक या राजनीतिक विश्लेषक के पास जाने की जरूरत नहीं है। फिर भी, प्रधानमंत्री मोदी और दस साल से केंद्र में राज कर रही भाजपा इतनी हड़बड़ी में क्यों है? आखिर यह समय क्यों चुना गया, जब आम चुनाव को सौ दिन भी नहीं रह गए हैं?

कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि इस लोकसभा चुनाव में भाजपा अभूतपूर्व 370 सीटें जीतेगी और एनडीए 400 से ऊपर! जो सरकार और सत्तारूढ़ दल अपनी बंपर जीत को लेकर इतना आश्वस्त नजर आ रहा है, उसे ठीक इसी समय विभिन्न राजनीतिक दलों और विचारधाराओं से जुड़े राजनेताओं को भारत रत्न से नवाजे जाने की क्यों सूझी है। इसमें किसी को संदेह नहीं है कि 2014 से भाजपा की चुनावी जीत के वास्तुकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए 2024 के आम चुनाव खास मायने रखते हैं, क्योंकि इसके ठीक एक साल बाद यानी 2025 में आरएसएस अपनी जन्म शताब्दी मनाएगा। इससे संबंधित आयोजनों को राम मंदिर आंदोलन के भव्य सरकारी आयोजन से कम नहीं आंका जाना चाहिए।

यह उस नए कथानक की अगली कड़ी है, जिसकी बुनियाद मई, 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा को मिली जीत के साथ रखी गई थी। इसे 15 अगस्त, 1947 के उस राष्ट्रीय आंदोलन की हमारी सामूहिक स्मृति से विस्मृत करने के प्रयास के तौर पर भी देखा जा सकता है, जिसकी बुनियाद पर भारत का धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी विचार बनता है। यह अलग विषय है कि हमारी सामूहिक चर्चा से धर्मनिरपेक्षता शब्द कहां चला गया है? यह भी कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हिंदुत्व की बुनियाद पर जिस भारत के विचार की कल्पना करते हैं, उसमें देश 18-20 फीसदी अल्पसंख्यकों की जगह कहां है?

आप पूछ सकते हैं कि इन सवालों से भारत रत्न का क्या संबंध है? जी हां, है। यही जान लेना काफी होगा कि आज जिन तीन हस्तियों को भारत रत्न से अलंकृत किए जाने की घोषणा की गई है, उनमें चरण सिंह भी हैं, जिन्होंने जनता पार्टी के गठन के समय आरएसएस की भूमिका को लेकर सवाल किए थे।

जेपी की अगुआई में 8 जुलाई, 1976 में जब दिल्ली में चार विपक्षी दलों की बैठक हुई थी तब चरण सिंह ने कहा था कि उनका स्पष्ट मानना है कि आरएसएस का कोई भी कार्यकर्ता नई पार्टी का सदस्य नहीं हो सकता और न ही नई पार्टी का कोई सदस्य आरएसएस से जुड़ सकता है।

उनका मानना था कि यह दोहरी सदस्यता का मामला है और जिसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है और नई पार्टी में गोपनीयता और छलपूर्वक काम करने की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।

यह समकालीन भारतीय राजनीति का खुला सच है कि मोरारजी देसाई की अगुआई वाली जनता पार्टी की सरकार के गिरने की सबसे बड़ी वजह दोहरी सदस्यता का ही मुद्दा था। यह अलग बात है कि उस सरकार के गिरने के बाद चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन तो गए, लेकिन महज 23 दिनों बाद कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस ले लिया। मुझे पता नहीं कि कांग्रेस के भीतर कभी इस पर मंथन हुआ या नहीं कि कांग्रेस ने गठबंधन की राजनीति में उसी वक्त अपनी विश्वसनीयता खो दी थी।

वास्तव में कांग्रेस के सामने आज उससे बड़ा सवाल है कि वह मोदी और भाजपा की ओर से वैचारिक विरासत पर, भले ही वह चुनावी जीत के लिए हो, हो रहे हमले से कैसे निपटती है। आखिर जिन हस्तियों को आज भारत रत्न देने की घोषणा की गई है, उनमें पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव भी हैं, जिन्हें कांग्रेस ने हाशिये पर डाल दिया था!

हम इस आलेख के मूल सवाल पर आते हैं कि आखिर भारत रत्न की किस्तों में क्यों घोषणा की जा रही है? यह घोषणाएं चुनावी राहत पैकेज की तरह लग रही हैं। थोड़े दिन पहले एक इलेक्ट्रिक बल्ब का विज्ञापन आता था उसी तर्ज पर, कि पूरे घर के बदल डालूंगा!

इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि भाजपा और आरएसएस हिंदुत्व के अपने कोर मुद्दों पर एक-एक कर आगे बढ़ रहे हैं और उसी के समानांतर उन हस्तियों को भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिनसे कभी उनका वैचारिक साम्य नहीं रहा। जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया कि 15 अगस्त, 1947 से जुड़ी हमारी स्मृतियां उस राष्ट्रीय आंदोलन की स्मृतियां हैं, जिनसे गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाष चंद्र बोस, बी आर आंबेडकर जैसी न जाने कितनी विभूतियां जुड़ी रही हैं। और इसके साथ ही एक अंतरधारा कांग्रेस से भी जुड़ी रही है। आज वह कांग्रेस नहीं है, लेकिन क्या कोई इसे झूठला सकता है कि स्वतंत्रता आंदोलन की धुरी कांग्रेस ही थी।

यह जो कुछ घट रहा है, वह उस धुरी को बदलने की कोशिश जैसा लगता है। इसके मायने संसद में कांग्रेस की उपस्थिति से भी अधिक रखते हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि जब कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया गया था, तो वह उससे जुड़ी स्मृतियों से मुक्त होने की मंशा से दिया गया था।

इधर, ओडिशा से बीजू पटनायक को भी भारत रत्न दिए जाने की मांग उठी है। संभव है कि उन्हें भी इससे नवाजा जाए। इस क्रम में मेरी उत्सुकता यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी अब एक्स पर पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्गज वामपंथी नेता ज्योति बसु को भी भारत रत्न से नवाजे जाने की घोषणा करेंगे!