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गाँधी जयंती: मृत्यु से 16 दिन पहले बापू ने देखा था ऐसे भारत का सपना

गाँधी जयंती: मृत्यु से 16 दिन पहले बापू ने देखा था ऐसे भारत का सपना

बूढ़े, दुबले-पतले 78 साल के गाँधी ने अपनी हत्या के 16 दिन पहले जो सपना भारत के लिए देखा था, उससे देश अभी भी बहुत दूर नजर आता है। 

भारत की स्वतंत्रता विभाजन की आपदा लेकर आई थी। मोहनदास करमचंद गाँधी उन दिनों नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा करते थे और वहां उपस्थित लोगों के सामने अपनी बात रखते थे। उन बातों को रिकॉर्ड कर ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित किया जाता था। गाँधी जी का यह भाषण क़रीब 15 मिनट का होता था। 

गाँधी ने 12 जनवरी 1948 को उपवास की घोषणा कर दी। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि वह 13 जनवरी से उपवास पर रहेंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने उपवास के दौरान सेवन की जाने वाली चीजों के बारे में भी बता दिया और कहा कि इस दौरान वह नमक, सोडा और खट्टे नींबू के साथ या इन चीजों के बग़ैर पानी पीने की छूट रखेंगे। उन्होंने यह भी घोषित किया कि उपवास सुबह खाने के बाद शुरू होगा। गाँधी अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठे थे। उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा कि जब उन्हें यकीन हो जाएगा कि सब कौमों के दिल मिल गए हैं और वह भी बाहर के दबाव के कारण नहीं, इसे अपना धर्म समझने के कारण, तभी उपवास टूटेगा। 

साथ ही उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि उपवास की बात सुनते ही सभी लोगों को मेरे पास दौड़कर आने की ज़रूरत नहीं है। जो लोग जहां पर हैं, वहीं वातावरण सुधारने का प्रयास करें, यही पर्याप्त है। 

गाँधी ने अपने उपवास की वजह बताते हुए कहा था, ‘यह फाका दरअसल आत्मशुद्धि के लिए है। सबको शुद्ध होना है। सब शुद्ध नहीं होते हैं तो मामला बिगड़ जाता है। मुसलमानों को भी शुद्ध होना है। ऐसा नहीं कि हिंदू, सिख शुद्ध हो जाएं और मुसलमान नहीं। मुसलमान भी शुद्ध और सच्चे नहीं बनेंगे तो मामला बिगड़ेगा। यहां के मुसलमान भी बेग़ुनाह नहीं हैं। सबको अपना ग़ुनाह कबूल कर लेना चाहिए। मैं मुसलमानों की ख़ुशामद करने के लिए फाका नहीं करता हूँ। मैं तो सिर्फ़ ईश्वर की ख़ुशामद करने वाला हूँ।’

उपवास पर बैठे गाँधी ने लोगों से साफ़ कहा कि शुरुआत से ही वह लोगों को जोड़ने और प्रेम से रहने के सपने देखते रहे हैं।

गाँधी ने उपवास में ही लोगों से बात करते हुए कहा, ‘जब मैं नौजवान था और पॉलिटिक्स के बारे में कुछ नहीं जानता था, तबसे मैं हिंदू-मुसलमान वग़ैरह के हृदयों के ऐक्य का सपना देखता आया हूँ। मेरे जीवन के संध्याकाल में अपने उस स्वप्न को सिद्ध होते देखकर मैं छोटे बच्चे की तरह नाचूंगा। तब पूरी जिंदगी तक, जिसे हमारे बुजुर्गों ने 125 साल कहा है, जीने की मेरी ख़्वाहिश फिर से जिंदा हो जाएगी।’

क़रीब 100 साल से ज़्यादा तक चले अंग्रेजों के विरोध और 1885 में कांग्रेस की स्थापना के बाद अंग्रेजों से रियायतों की मांग से शुरू होकर 1929 में पूर्ण स्वराज की मांग के रास्ते चलते देश के स्वतंत्र होने पर गाँधी का सपना पूरे होने का वक्त था। गाँधी उस समय एक-दूसरे को लड़ते-मरते-कटते और महिलाओं को उठा ले जाते, उन्हें जबरन बंधक बनाकर रखने का दौर देख रहे थे, जब लड़कियों को बंधक बनाए लोग उन्हें छोड़ने के एवज में पैसे मांग रहे थे। 

स्वाभाविक है कि कम से कम गाँधी ने ऐसी स्वतंत्रता की परिकल्पना नहीं की थी। उन्होंने 14 जनवरी को हत्या के ठीक 16 दिन पहले देश की जनता के सामने अपने सपनों को सार्वजनिक करते हुए कहा था, ‘मेरा सपना है कि भारत में न कोई ग़रीब होगा, न भिखारी। न कोई ऊंचा होगा, न नीचा। न कोई करोड़पति मालिक होगा, न आधा भूखा नौकर। न शराब होगी, न कोई दूसरी नशीली चीज। सब अपने आप ख़ुशी से और गर्व से अपनी रोटी कमाने के लिए मेहनत-मजदूरी करेंगे।’

उन दिनों तमाम लड़कियों पर पाकिस्तान में कब्जा कर लिया गया था और भारत छोड़कर भाग रहे मुसलमानों की तमाम लड़कियों व महिलाओं को हिंदुओं व सिखों ने बंधक बना रखा था। गाँधी ने कहा, ‘हमारी बहुत सी सिख और हिंदू लड़कियों को पाकिस्तान में भगाकर ले गए हैं। उन्हें वापस लाने की कोशिश हो रही है। जिन्हें जबरन बिगाड़ा गया है, मेरी नजर में न उनका धर्म बिगड़ा है, न कर्म। धर्मपलटा तो जबरन हो ही नहीं सकता।’ 

गाँधी की राय स्पष्ट थी कि जो महिलाएं पीड़ित हैं, लूटी गई हैं, उन्हें किसी तरह से ख़ुद को दोषी समझने की ज़रूरत नहीं है और समाज को भी इस धारणा को निकाल देना चाहिए कि वह महिलाएं कहीं से अपवित्र हो गई हैं।

गाँधी ने उपवास के दौरान अपना सपना बताते हुए कहा, ‘मेरे सपनों के देश में औरतों की भी वही इज्जत होगी, जो मर्दों की। और औरतों व मर्दों की अस्मत और पवित्रता की रक्षा की जाएगी। अपनी पत्नी के सिवा हरेक औरत को उसकी उम्र के हिसाब से हर एक धर्म के पुरुष मां, बहन और बेटी समझेंगे। वहां अस्पृश्यता नहीं होगी और सब धर्मों के प्रति समान आदर रखा जाएगा। मैं आशा रखता हूँ कि जो यह सब सुनेंगे या पढ़ेंगे, वे मुझे क्षमा करेंगे कि जीवन देने वाले सूर्य देवता की धूप में पड़े-पड़े मैं किस काल्पनिक आनंद की लहर में बह गया।’

बूढ़े, दुबले-पतले 78 साल के गाँधी ने अपनी हत्या से 16 दिन पहले जो सपना भारत के लिए देखा था, उससे देश अभी भी बहुत दूर नजर आता है। अब तक न तो जातीय असमानता दूर हो सकी है और न लैंगिक असमानता दूर हुई है। हिंदू-मुसलिम को लेकर घृणा तो संभवतः पिछले कई दशकों की तुलना में इस समय चरम पर पहुंच चुकी है। सत्ता से जुड़े लोग मुसलिम धर्म को ही आतंकी बताने और कठघरे में खड़ा करने में मशगूल हैं। अभी गाँधी के सपनों के भारत से हम कोसों दूर हैं। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। 

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