सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर दुनिया के 7 अजूबों में भले ही शामिल न हों, लेकिन अपनी-अपनी विधाओं-क्रिकेट और संगीत- में ये नायाब हैं। किसी अजूबे से कम नहीं हैं। ये मराठी हैं, मुंबईकर भी। समान तरह के ट्वीट कर ये दोनों हस्तियाँ चर्चा में हैं। इनके साथ विराट कोहली और अक्षय कुमार भी ऐसे ही ट्वीट की वजह से चर्चा में हैं।
मगर, इन हस्तियों की ट्वीट की जाँच का फ़ैसला लेकर महाराष्ट्र सरकार और इसमें शामिल तमाम पार्टियाँ सवालों के घेरे में आ गयी हैं। बीजेपी ने सचिन-लता की लोकप्रियता को हथियार बनाकर महाराष्ट्र सरकार पर जिस तरह से हमला बोला है वह घातक साबित हो सकता है। उद्धव सरकार के लिए यह क़दम भारी भूल साबित हो सकती है।
महाविकास अघाड़ी सरकार के घटक दलों और उनके नेताओं का कहना है कि वे लता मंगेशकर या सचिन तेंदुलकर की न तो जाँच करा रहे हैं और न ही उनका कोई अपमान कर रहे हैं, बल्कि केवल यह पता लगा रहे हैं कि इन हस्तियों ने जो ट्वीट किये हैं, उनके एक जैसे होने के पीछे की वजह कहीं ये तो नहीं कि बीजेपी के लोगों ने ये कंटेंट इन हस्तियों तक पहुँचाए।
बीजेपी ने ट्वीट के कंटेंट दिए भी तो ग़लत क्या?
थोड़ी देर के लिए मान लिया कि जाँच का यह एंगल सही पाया जाता है। इन हस्तियों ने बीजेपी के कहने पर ही वे ट्वीट किए हों। तब भी ऐसी सूरत में क्या इन हस्तियों पर कोई क़ानूनी कार्रवाई बनती है? अगर यह सामने आ जाए कि इन हस्तियों पर बीजेपी ने दबाव डाला और इसलिए इन्होंने वे ट्वीट्स किए, तब ज़रूर इसमें अपराध का एंगल आता है। लेकिन, अगर ऐसा होता तो ये हस्तियाँ बीजेपी के दबाव की बात को ज़रूर सामने लेकर आते। कोई शिकायत की गयी होती। किसी शिकायत के बगैर ऐसी जाँच के क्या मायने हैं?
बीजेपी के कहने पर ट्वीट करना ‘भारत रत्न’ के लिए सामाजिक तौर पर अनैतिक बात हो सकती है लेकिन क़ानूनी रूप से इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।
सवाल यह है कि क्या महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार ने सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर के ट्वीट्स की जाँच का फ़ैसला लेकर बीजेपी की मुराद पूरी नहीं कर दी है?
दोनों हस्तियों की लोकप्रियता को सामने कर बीजेपी अब महाराष्ट्र की उद्धव सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बना रही है और वह इसमें कामयाब होती दिख रही है। राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्ष और ख़ासकर कांग्रेस की इससे मिट्टी पलीद ही होगी, कोई राजनीतिक फ़ायदा मिलने से रहा।
उद्धव सरकार का फ़ैसला बुनियादी रूप से ग़लत
उद्धव सरकार का फ़ैसला बुनियादी रूप से ग़लत है। इसे सैद्धांतिक आधार पर दो बिन्दुओं में बाँटा जा सकता है-
- ट्वीट करना अभिव्यक्ति की आज़ादी है। इसकी रक्षा की जानी चाहिए।
- रियाना (रिहाना), ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट्स के बचाव का आधार भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही है। ज़ाहिर है लता-सचिन पर भी यह अक्षरश: लागू होता है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे के यह कह देने भर से सचिन और लता दोषी नहीं हो जाते कि केंद्र सरकार ने इन हस्तियों का इस्तेमाल किया है। अगर इस तर्क को सही भी मान लें तो यह बात अजीब लगती है कि ‘भारत रत्न’ का दुरुपयोग केंद्र सरकार करे और जाँच भी उन्हीं ‘भारत रत्नों’ की हो।
बीजेपी क्यों साध रही है निशाना?
शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस ने भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर से दो-दो हाथ करने का फ़ैसला क्यों कर लिया और ऐसा करके उन्हें राजनीतिक रूप से क्या फ़ायदा होने वाला है, यह समझ से परे है। समझ से परे इसलिए भी है कि ट्वीट में जो कहा गया है उसे लेकर किसी को आपत्ति नहीं है। आपत्ति संदर्भ को लेकर है। भारत के किसान आंदोलन को लेकर देश से बाहर की हस्तियाँ जब प्रतिक्रिया दे रही हैं तो भारत की हस्तियाँ क्यों न उन्हें जवाब दें। इस क़िस्म की प्रतिक्रिया सराहनीय नहीं है।
अगर भारत सरकार अपने देश की हस्तियों से ट्वीट कराने की कोशिश चोरी-छिपे कर रही है तो भी यह सराहनीय क़दम नहीं हो सकता। मगर, इसके लिए अपने ही देश की हस्तियों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ना या उसकी जाँच कराना क्या कोई सकारात्मक नतीजे दे सकता है? क्या इससे शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस को कोई भी फ़ायदा पहुँच सकता है? निश्चित रूप से नहीं।
लता-तेंदुलकर ने क्या कहा?
बीजेपी को घेरा जा सकता था। राजनीतिक रूप से भी और क़ानूनी रूप से भी, अगर सचिन तेंदुलकर या लता मंगेशकर ख़ुद सामने आते और कहते कि उन पर दबाव डाले जा रहे हैं। ऐसा होने पर इन हस्तियों की लोकप्रियता के सहारे बीजेपी और बीजेपी सरकार पर हमला किया जा सकता था। लेकिन सचिन-लता की चुप्पी के बीच जिस तरीक़े से यह पूरा वाकया सामने आया है उससे लगता यह है कि विपक्ष के पास इन हस्तियों का इस्तेमाल करने की कुव्वत नहीं है। वहीं बीजेपी इन्हीं हस्तियों की लोकप्रियता के सहारे महाराष्ट्र सरकार पर हमलावर है।
यह बात सच है कि सचिन तेंदुलकर ने राज्यसभा सदस्य रहते हुए भी कभी किसानों, ग़रीबों, मज़दूरों, छात्र बेरोज़गारों की आवाज़ बुलंद नहीं की। मगर, इस बात के लिए अगर सचिन तेंदुलकर को निशाना बनाया जाएगा तो क्यों? क्या इससे पहले कभी ऐसे सांसद नहीं हुए जिन्होंने कभी मजलूमों की आवाज़ बुलंद न की हो?
91 साल की लता मंगेशकर ने ख़ुद से ट्वीट नहीं किया होगा, यह सच है। मगर, प्रश्न है कि जब दुनिया को पता चल चुका है कि ट्वीट में क्या था, तो क्या लता मंगेशकर को इसका पता नहीं होगा?
मालूमात के बाद भी अगर लता अपने ट्वीट्स पर चुप्पी बनाए रखती हैं तो इसका मतलब साफ़ है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ट्वीट करने के लिए उन्हें कितना प्रताड़ित किया जाने वाला है। वे तभी बोलेंगी जब उनका मन होगा।
महाराष्ट्र की सरकार और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के लिए अच्छा यही होगा कि बीजेपी से लड़ते हुए देश की नामचीन हस्तियों से ख़ुद को दूर न करें। ये हस्तियाँ देश की विरासत हैं। ये राजनीतिकरण करने वाले बहुत बड़ा गुनाह कर रहे हैं। कांग्रेस को अगर विपक्ष के तौर पर ख़ुद को मज़बूत करना हो तो ऐसे गुनाह से उसे दूर रहना होगा।