आशुतोष की टिप्पणी: केजरीवाल के जिगरी सिसोदिया का ऐसा हाल क्यों?

05:31 pm Feb 28, 2023 | आशुतोष

मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी आप के लिये इतिहास के एक चक्र के पूरा होने जैसा है। सिसोदिया न केवल सरकार में नंबर दो के मंत्री हैं बल्कि वो पार्टी में भी नंबर दो की हैसियत रखते हैं। लेकिन उनका महत्व सरकार और पार्टी से अधिक इस बात से है कि अन्ना और केजरीवाल के बाद वो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। मनमोहन सरकार ने जब अन्ना और केजरीवाल को तिहाड़ जेल भेजा था तो सिसोदिया भी जेल गये थे। केजरीवाल के साथ उनकी दोस्ती मिथकीय है। वो तक़रीबन बीस साल से एक-दूसरे के जिगरी हैं। दोनों ने मिलकर अन्ना आंदोलन की रूपरेखा और रणनीति बनाई थी। चेहरे के तौर पर अन्ना का चुनाव भी दोनों ने मिलकर ही किया था। ये कह सकते हैं कि अन्ना आंदोलन के नायक अगर केजरीवाल थे तो सिसोदिया की भूमिका भी किसी नायक से कम नहीं थी। ऐसे में भ्रष्टाचार विरोधी नायक का भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना त्रासद है, दुखद है और विरोधाभासी भी।

मनीष सिसोदिया आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी बनाने में भी प्रमुख रणनीतिकार थे। ये अलग बात है कि पार्टी में बाद में केजरीवाल काफ़ी आगे निकल गये और सिसोदिया की भूमिका सीमित होती गई है। केजरीवाल के इर्द-गिर्द पूरी पार्टी घूमने लगी, सब कुछ उनके हिसाब से होने लगा और मनीष बाक़ी साथियों की तरह बॉस के मातहत हो गये। ये भूमिका मनीष की इसलिये बनी कि वो केजरीवाल के सामने कभी असर्ट नहीं कर पाये। कभी उनसे अलग राय रखने की हिम्मत नहीं दिखा पाये। उन्हें ये मलाल भी रहा कि अगर वो ऐसा कर पाते तो शायद पार्टी वो सारी ग़लतियाँ नहीं करती जो वो करती चली गई। ऐसा नहीं था कि उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि केजरीवाल के फ़ैसले पार्टी को नुक़सान पहुँचा रहे हैं, पार्टी अपने रास्ते से भटक रही है, पार्टी चुनाव जीतने के लिये वो सब कुछ कर रही है जिसका विरोध करने के लिये आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था। पर शायद उनके विचारों पर दोस्त के प्रति निष्ठा भारी पड़ गई। और अब उनको इसी दोस्ती की क़ीमत चुकानी पड़ रही है।

आप सरकार की शराब नीति पहले दिन से ही विवादों में थी। शराब के ठेकों को निजी हाथों में देने के सरकार के फ़ैसले पर सवाल पहले दिन से उठे थे। मेरे लिये यह कहना बहुत मुश्किल है कि शराब नीति में घोटाला हुआ या नहीं। वो जाँच का विषय है। लेकिन जिस तरह से नये उपराज्यपाल सक्सेना के आने के बाद सीबीआई जाँच के आदेश दिये गये, उसके फ़ौरन बाद मनीष सिसोदिया का प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर नीति के लिये पुराने उपराज्यपाल अनिल बैजल को ज़िम्मेदार ठहराना और पूरी शराब नीति को बदल देना, इसने शक को पुख़्ता करने में बड़ी भूमिका निभाई कि कहीं कुछ न कुछ गड़बड़ है। 

इस शक की दीवार और बड़ी हो जाती है जब गोवा और पंजाब में आप ने चुनाव के दौरान पैसा पानी की तरह बहाया। लोग सवाल पूछने लगे थे और यही वो पल था जब सरकारी एजेंसियों को आप पर हाथ डालने का मौक़ा मिला। इन आरोपों में कितना दम है और इसमें मनीष का क्या रोल है ये तो अदालत में साबित होगा लेकिन इस एक क़दम ने सिसोदिया के माथे पर दाग तो लगा ही दिया है। इससे बड़ी बात ये है कि आप नाम का विचार भी पहली बार बेहद गंभीर संकट में फँस गया है। लोगों के लिये ये मानना थोड़ा कठिन होगा कि सिसोदिया जैसे नेता पर केंद्र सरकार ने यूँ ही हाथ डाल दिया होगा।

आप 2010 के दशक में एक ऐसे विचार के तौर पर उभरी थी जिसे सत्ता और राजनीति के अश्लील और घृणित गठजोड़ के खिलाफ विद्रोह कहा जा सकता है। जिसने भ्रष्टाचार के विरोध में देश में ऐसी हवा बनाई कि मनमोहन सिंह की सरकार उड़ गई, कांग्रेस अस्तित्ववादी संकट में घिर गई और मोदी नाम का विचार देश पर छा गया। 

आप दरअसल विचारधारा के संकट से जूझते विश्व में एक विकल्प की तलाश थी। उदारवादी वैचारिकी में आई कमजोरियों का प्रतिकार थी। उससे ये उम्मीद थी कि वो देश दुनिया को नई विश्व दृष्टि देगी लेकिन वो भी दूसरों जैसी निकली।

ये महज़ इत्तिफ़ाक़ नहीं कि जब मोदी का अश्वमेघ का घोड़ा दनदनाता फिर रहा था तब प्रधानमंत्री के शहर दिल्ली में वो 70 में से 67 सीटें जीत जाती है। 2020 में भी वो 62 सीटें अपनी जेब में डाल लेती है। पंजाब में 117 में से 92 सीटों पर क़ब्ज़ा कर लेती है। और तमाम दिग्गज जो पंजाब की राजनीति के पर्याय माने जाते हैं वो धूल फाँकते नज़र आते हैं। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह की हार मामूली घटना नहीं थी। लेकिन ये हुआ। ऐसा इसलिये हुआ कि लोगों को आप में भविष्य दिखता था। वो परंपरागत राजनीति से बेहद ख़फ़ा थे। वो राजनीति की मूल्यहीनता को सबक़ सिखाना चाहते थे। जनता के नाम पर जनता को धोखा देने वालों से बदल लेना चाहते थे। लेकिन अगर वही लोग ये महसूस करने लगे कि आप भी उसी रास्ते पर चल निकली है तो फिर मोहभंग होना स्वाभाविक होगा। मनीष की गिरफ़्तारी इस प्रक्रिया को आगे बढ़ायेगी। और इसका नुक़सान आप को होगा।

ऐसा इसलिये भी होगा क्योंकि आप बीजेपी की तरह कोई संगठित ताक़त नहीं है। वो भारतीय राजनीति में एक लहर की तरह है। आप को इस लहर को संगठित और अनुशासित करने के लिये संगठन बनाना चाहिये था, संघ की तरह काडर खड़ा करना चाहिये था। वो किया नहीं। वो बहुत जल्दी ही चुनाव लड़ने की मशीन बन गई। और चुनाव जीतने के लिये वो सारे हथकंडे अपनाने लगी जो दूसरी पार्टियाँ कर रही हैं। उसे लगा कि हिंदुत्व के कारण पार्टी जीत रही है तो वो धर्म का सहारा लेने लगी। उसे लगा कि पैसों के बगैर चुनाव नहीं जीता जाता तो वो फंड इकट्ठा करने में जुट गई और अच्छे और बुरे का ख्याल भूल गई। जिन चीजों का विरोध कर वो सत्ता में आये थे वो वही करते दिखने लगे। यानी उनकी जो पहचान थी उसी को गँवाने लगे। 

नैतिक पूँजी उनकी सबसे बड़ी ताक़त थी, उसी का क्षरण होने लगा। ऐसे में सिसोदिया की गिरफ़्तारी इस नैतिक पूँजी का और क्षरण करेगी। एक बार नैतिक पूँजी गई तो फिर आप के पतन को कोई नहीं रोक सकता। राजनीति में गिरते आधार को पुल बैक करने के लिये जिस विचारधारा और विरासत की ज़रूरत होती है और जो कांग्रेस और बीजेपी के पास है, उसकी कमी आप में है। लिहाज़ा आप एक बार फिसली तो उसके लिये वापस खोई ज़मीन पाना बहुत मुश्किल होगा। ऐसे में जो लोग ये उम्मीद लगाये बैठे हैं कि आप कांग्रेस का विकल्प हो सकती है, उन्हें निराशा हाथ लग सकती है। 

अल्पकाल में आप कांग्रेस को नुक़सान पहुंचा सकती है लेकिन दीर्घकाल में वो कांग्रेस का विकल्प होगी, मुझे इसमें संदेह है।

जहाँ तक 2024 में मोदी को चुनौती देने का प्रश्न है तो ये ख्याल जितनी जल्दी भुला दिया जाये उतना बेहतर है। मोदी और केजरीवाल में तुलना ठीक नहीं है। मोदी को चुनौती देने के पहले केजरीवाल को दिल्ली में लोकसभा चुनाव जीतना होगा। आप बड़ी-बड़ी बातें करती है लेकिन अभी तक वो अपने सबसे बड़े गढ़ दिल्ली में एक भी लोकसभा की सीट नहीं जीत पायी है। 2014 और 2019 दोनों में वो सातों सीट हारी। 2019 में लोकसभा चुनाव में वो तीसरे नंबर की पार्टी थी। कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी। सात में से तीन सीटों पर आप ज़मानत नहीं बचा पायी। पंजाब में वो विधानसभा चुनाव में भयंकर जीत के बाद मुख्यमंत्री की संगरूर सीट हार गई। आज की तारीख़ में उसके पास लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है। हाँ, विधानसभा चुनावों में वो ज़रूर कहीं-कहीं कांग्रेस को डैमेज करेगी लेकिन बीजेपी का मुक़ाबला करने की स्थिति में अभी वो नहीं है।

सिसोदिया की गिरफ़्तारी पर आप माहौल बनाने की कोशिश करेगी, कितनी कामयाब होगी, कहना मुश्किल है। लेकिन अगर सियोदिया को अदालत से जल्दी ज़मानत नहीं मिली तो आप को दिक्कत आयेगी। सरकार चलाने में भी और छवि के खेल में भी। मनीष के पास 18 विभाग हैं और उनपर केजरीवाल आँख मूँदकर भरोसा करते हैं। सत्येंद्र जैन के जेल जाने के बाद अब मनीष की गिरफ़्तारी पूरी सरकार को पँगु कर देगी। केजरीवाल के लिये उनका विकल्प खोजना आसान नहीं होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये घटना आप को बड़ा झटका है। और मोदी सरकार की अदावत उन्हें आगे भी इस झटके से उबरने नहीं देगी। केजरीवाल का कौशल और धैर्य की ये असली परीक्षा है।

(साभार - हिंदुस्तान)