चल रहे भारतीय किसान आंदोलन की तुलना क्या चीनी ‘लांन्ग मार्च’ से की जा सकती है? उसी की तरह, यह कई बाधाओं का सामना करेगा, कई मोड़ आएँगे, और यहाँ तक कि कभी-कभी पीछे हटने और विभाजित होने की भी सम्भावना होगी, लेकिन अंततः किसान विजयी अवश्य होंगे, जिसके परिणामस्वरूप एक राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होगा जिसके तहत भारत तेज़ी से औद्योगिकीकरण की ओर आगे बढ़ेगा और लोग बेहतर और खुशहाल जीवन पाएँगेI
मेरे ऐसा कहने के निम्नलिखित कारण हैं:
मैं पहले भी कह चुका हूँ कि यह दुनिया वास्तव में दो भागों में विभाजित है, विकसित देशों की दुनिया (उत्तरी अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया, चीन) और अविकसित देशों की दुनिया (भारत सहित)। अविकसित देशों को ख़ुद को विकसित देशों में बदलना होगा, अन्यथा वे बड़े पैमाने पर ग़रीबी, बेरोज़गारी, भूख, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी आदि से सदा ग्रस्त रहेंगे।
अविकसित देश से एक विकसित देश बनने के लिए एक ऐतिहासिक परिवर्तन की आवश्यकता है जो एकजुट जनसंघर्ष के बिना संभव नहीं है, क्योंकि विकसित देश अपने निहित स्वार्थ के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर इसका विरोध करेंगे।
भारत इस प्रक्रिया में सभी अविकसित देशों को नेतृत्व देगा, क्योंकि यह अविकसित देशों में सबसे विकसित है। इसमें वह सब है जो एक उच्च विकसित देश बनने के लिए आवश्यक है- तकनीकी प्रतिभा का एक विशाल समुदाय (हज़ारों उज्ज्वल इंजीनियरों, तकनीशियनों, वैज्ञानिकों, आदि के रूप में) और अपार प्राकृतिक संसाधन।
लेकिन इसमें अब तक दो बाधाएँ रही हैं-
- हमारे लोगों के बीच एकता का अभाव
- आधुनिक मानसिकता के राजनीतिक नेतृत्व का अभाव
चल रहे किसान आंदोलन ने पहली बाधा (हम में धर्म और जाति के आधार पर विभाजन) को तोड़ दिया है। भारतीय लोग अब तक जाति और धर्म के आधार पर विभाजित थे, और अक्सर एक-दूसरे से लड़ रहे थे, इस प्रकार अपनी ऊर्जा और संसाधनों को बर्बाद कर रहे थे।
अब इस किसान आंदोलन ने इन सामंती ताक़तों से ऊपर उठकर समाज को एकजुट किया है, जो अपने आप में एक वास्तविक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
लेकिन इस आंदोलन के नेताओं के पास कोई आधुनिक राजनीतिक दृष्टि या समझ नहीं है। उनकी एकमात्र माँग आर्थिक है न कि राजनीतिक (किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य)। इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक ऐतिहासिक प्रक्रिया शुरू हो गई है, लेकिन बाद में उसे आधुनिक दिमाग वाले देशभक्त नेताओं द्वारा आगे बढ़ाना होगा, जिन्हें ऐतिहासिक ताक़तों की समझ है, और तभी देश को अपने लॉन्ग मार्च की ओर आगे ले जाया जा सकता है।
चीनी लॉन्ग मार्च लगभग 2 साल (1934-36) तक चला। हमारा लॉन्ग मार्च संभवत: 15-20 साल तक चलेगा, जिसमें कई मोड़ और फेर आएँगे। संघर्ष के इस दौर में महान बलिदान देने होंगे।
इतिहास से पता चला है कि अधिकांश ऐतिहासिक परिवर्तनों में लगभग 10% जनसंख्या का सफ़ाया हो जाता है। उदाहरण के लिए, 1949 में चीनी क्रांति के विजयी होने के बाद, एक गणना की गई, और यह पाया गया कि तत्कालीन कुल 50 करोड़ चीनी आबादी में से लगभग 5 करोड़ चीनी क्रांति के दौरान मारे गए थे। इसी तरह, लगभग 4 करोड़ आबादी वाले वियतनाम में 30-40 लाख वियतनामी युद्ध में पहले फ्रांसीसी और फिर अमेरिकियों के ख़िलाफ़ युद्ध करते समय मारे गए थेI
वीडियो चर्चा में देखिए, अब किसानों का क्या होगा?
कोई भी यही कामना करेगा कि भारत का ऐतिहासिक परिवर्तन (एक अविकसित देश से अति विकसित देश की ओर) केवल शांति और सुगमता से हो, लेकिन इतिहास इस तरह से नहीं चलता।
भारत का लॉन्ग मार्च अब शुरू हो चुका है। यह लंबा, कठिन और दर्दनाक होगा, और कई लोग रास्ते में गिर जाएँगे, लेकिन अंततः इसका परिणाम होगा आधुनिक, समृद्ध देश और हमारे लोगों का सभ्य और खुशहाल जीवन।