पाकिस्तान और ईरान मिसाइल हमला, नूरा कुश्ती है?
15 जनवरी को ईरान ने उत्तरी इराक के एरबिल में इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के जासूसी अड्डे और सीरिया में ईरान-विरोधी आतंकवादी समूहों को निशाना बनाते हुए मिसाइलें दागीं। सैन्य दृष्टि से कमजोर माने जानेवाले इन दोनों देशों ने जवाबी कार्रवाई नहीं की।
16 जनवरी को सुबह ईरानी विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने विश्व आर्थिक मंच, दावोस, स्विट्जरलैंड में पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवर उल हक से मुलाक़ात की और तेहरान-इस्लामाबाद संबंधों को गहरा और सदियों पुराना बताया। उन्होंने द्विपक्षीय व्यापार को मौजूदा 2.5 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 5 बिलियन डॉलर करने के प्रयासों पर प्रकाश डाला जिसमें ईरानी तेल, गैस और बिजली और विस्तारित सीमा बाजार शामिल हैं। लेकिन दुनिया को आश्चर्यचकित करते हुए इसी दिन शाम को ईरान ने पाकिस्तान स्थित तेहरान-विरोधी हनीफी सुन्नी आतंकवादी समूह जैश-अल-अदल के ठिकानों पर बलूचिस्तान में दो स्थानों पर मिसाइल हमला किया जिसमें दो लड़कियों की मौत हो गई।
18 जनवरी को पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के अंदर सात मिसाइल हमले किये जिसमें सात लोग मारे गए और कई घायल हो गए। पाकिस्तानी मिसाइल हमले का लाइव फुटेज दिखाया गया।
बलूची बहुल क्षेत्र सदियों से ईरान, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान तीन देशों के बीच बंटा हुआ है। पाकिस्तान और ईरान में सैन्य अभियानों का सामना कर रहे बलूची अब इन तीनों देशों से अलग अपनी स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं। ईरान अमेरिका पर और पाकिस्तान भारत पर इस इलाके में बलूची आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते रहे हैं। दोनों देश बलूचियों को अलग-अलग कारणों से एक साझा अलगाववादी दुश्मन मानते हैं पर दोनों पक्षों के लिए एक दूसरे की धरती पर आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला करना बेहद असामान्य है।
मिसाइल लक्ष्य का प्रोफ़ाइल और ग्राउंड ज़ीरो प्रभाव
ईरान और पाकिस्तान दोनों देशों ने मिसाइल हमलों के बाद सहानुभूतिपूर्वक समान स्पष्टीकरण दिया। दोनों पुराने दोस्त हैं, अपनी संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हैं और बलूची आतंकवादियों द्वारा अपने देशों में आश्रय लेने के बारे में इनपुट का आदान-प्रदान करते रहे हैं। उन्होंने किसी भी नागरिक या सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना नहीं बनाया है, बल्कि बलूच आतंकवादियों के बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया है। दोनों देशों ने कोई विमान नहीं उड़ाया, न ही मिसाइल इंटरसेप्टर लॉन्च किए। चीन और तालिबान द्वारा दोनों देशों से तनाव कम करने का आग्रह करने के बाद सबकुछ शांत दिख रहा है। अब साफ़ होता जा रहा है कि सीमा के दोनों ओर हुए मिसाइल हमलों में ईरान और पाकिस्तान दोनों ने अलग-अलग कारणों से सिर्फ बलूची लोगों को ही निशाना बनाया है।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम अरब दुनिया और इज़राइल के लिए सुरक्षा ख़तरे का कारण रहा है और साथ ही साथ 2018 से उन पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों का कारण भी। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के आवास से बरामद गोपनीय दस्तावेजों की सूची में ईरान के बुनियादी परमाणु ढांचे के विनाश पर एक वर्गीकृत योजनावाला दस्तावेज भी था।
फ़िलहाल इज़राइल-हमास संघर्ष में ईरान परोक्ष रूप से इज़राइल के खिलाफ हेजबुल्लाह और हुतियों की मदद कर अमेरिका को चुनौती भी दे रहा है।
3 जनवरी 2024 को ईरानी शहर केरमान में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर के दिवंगत जनरल कासिम सुलेमानी की कब्र के पास आतंकवादियों के हमले में 100 से अधिक ईरानियों की मौत के बाद ईरान अपनी सैन्य क्षमताओं की विश्वसनीयता को बचाने के लिए रास्ता तलाश रहा था जो अभी तक ईरान के पकड़ से दूर है। ईरान अपने देश में रहने वाले बलूचियों को अमेरिका और इज़राइल को सक्रिय समर्थन देने का आरोप भी लगाता रहा है। ऐसे में ईरानी ख़ुफ़िया एजेंसियों का ध्यान हनफी सुन्नी संगठन जैश-अल-अदल (इंसाफ़ की सेना) पर गया होगा। यह बलूची अलगाववादी संगठन मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्वी ईरान में सक्रिय है, जहां सुन्नी बलूचियों की पर्याप्त संख्या है और पाकिस्तान के साथ एक खुली सीमा का फैलाया उठाकर पाकिस्तान में किसी भी आतंकवादी घटना को अंजाम देकर उसकी पकड़ से दूर हो जाते रहे हैं। पाकिस्तान में उनकी पहचान मुश्किल हो जाती हैं। जैश-अल-अदल समूह शिया बहुल ईरान पर बलूचियों पर अत्याचार का आरोप लगा रहा है। ईरान के अंदर गाँवों को पाकिस्तान ने यह दावा करते हुए निशाना बनाया कि बलूच नेशनल आर्मी (बीएनए) के कार्यकर्ता वहाँ छिपे हुए हैं।
पाकिस्तान में 1947 की आज़ादी के बाद से विशेष रूप से कलात प्रांत में रहने वाले बलूचों ने अपने नेता बुगती के नेतृत्व में विद्रोह छेड़ रखा था। वे स्वतंत्र राज्य चाहते थे। अलगाववादियों की मांग को दबाने में पाकिस्तानी सेना क्रूर रही है। बुगती की हत्या के लिए जनरल परवेज़ मुशर्रफ को अदालती मुक़दमे का सामना करना पड़ा। जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने अपनी जीवनी 'इन द लाइन ऑफ़ फ़ायर और अन्य साक्षात्कारों में भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ पर पाकिस्तान में आतंकवाद को सहायता करने का आरोप भी लगाया था। ईरान के मिसाइल हमले में पाकिस्तान के बलूची गाँवों को निशाना बनाया गया जहां उसे जैश-अल-अदल के आतंकवादियों के छिपे होने की आशंका थी।
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि 16 जनवरी को ईरानी विदेश मंत्री ने अपने व्यापार की मात्रा को दोगुना कर पांच अरब डॉलर करने के बदले में मिसाइल हमले की मंजूरी ले ली है और पाकिस्तान ने अपनी ओर से ईरान में छिपे संदिग्ध बलूची आतंकवादियों की लक्ष्य सूची दी होगी। इस प्रकार मिसाइल हमले का यह आदान-प्रदान दोनों के लिए पारस्परिक रूप से फायदेमंद रहा है। पाकिस्तान ने खुद को ईरान के हाथों बेच दिया है और इस प्रक्रिया में जवाबी मिसाइल हमले के ज़रिए अपनी छवि बचाने की कोशिश की है।