नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली की यह दिल्ली-यात्रा हुई तो इसलिए है कि दोनों राष्ट्रों के संयुक्त आयोग की सालाना बैठक होनी थी लेकिन यह यात्रा बहुत सामयिक और सार्थक रही है। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने परस्पर सड़कें बनाने, रेल लाइन डालने, व्यापार बढ़ाने, कुछ नए निर्माण-कार्य करने आदि मसलों पर सहमति दी लेकिन इन निरापद मामलों के अलावा जो सबसे पेंचदार मामला दोनों देशों के बीच आजकल चल रहा है, उस पर भी दोनों विदेश मंत्रियों ने बात की है। नवंबर 2020 में शुरू हुए सीमांत-क्षेत्र के लिपुलेख-कालापानी-लिंपियाधुरा के सीमा-विवाद के कारण दोनों देशों के बीच काफ़ी कहा-सुनी हो गई थी।
भारतीय विदेश मंत्रालय इस मामले को इस वार्ता के दौरान शायद ज़्यादा तूल देना नहीं चाहता था। इसीलिए उसने अपनी विज्ञप्ति में इस पर हुई चर्चा का कोई संकेत नहीं दिया लेकिन नेपाली विदेश मंत्रालय ने उस चर्चा का साफ़-साफ़ ज़िक्र किया। इसका कारण यह भी हो सकता है कि नेपाल की आंतरिक राजनीति का यह बड़ा मुद्दा बन गया है। नेपाल की ओली-सरकार द्वारा संसद में रखे गए नेपाल के नए नक्शे पर सर्वसम्मति से मुहर लगाई गई है।
भारत के पड़ोसी देशों की राजनीति की यह मजबूरी है कि उनके नेता अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए प्रायः भारत-विरोधी तेवर अख्तियार कर लेते हैं। अब क्योंकि सत्तारुढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के दो टुकड़े हो गए हैं, संसद भंग कर दी गई है और ओली सरकार इस समय संकटग्रस्त है, इसलिए भारत से भी सहज संबंध दिखाई पड़ें, यह ज़रूरी है। इस काम को नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने काफ़ी दक्षतापूर्ण ढंग से संपन्न किया है। इस बीच यों भी भारत के सेनापति और विदेश सचिव की काठमांडो-यात्रा ने आपसी तनाव को थोड़ा कम किया है। इंडियन कौंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स में ग्यावली ने कई पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए इतनी सावधानी बरती कि भारत-विरोधी एक शब्द भी उनके मुँह से नहीं निकला।
कुछ टेढ़े सवालों का जवाब देते समय यदि वे चूक जाते तो उन्हें नेपाल में चीनी दखलंदाज़ी को स्वीकार करना पड़ता लेकिन उन्होंने कूटनीतिक चतुराई का परिचय देते हुए विशेषज्ञों और पत्रकारों पर यही प्रभाव छोड़ा कि भारत-नेपाल सीमा-विवाद का शांतिपूर्वक हल कर लिया जाएगा। उन्होंने 1950 की भारत-नेपाल संधि के नवीकरण की भी चर्चा की। उन्होंने भारत-नेपाल संबंध बराबरी के आधार पर संचालित करने पर जोर दिया और कोरोना-टीके देने के लिए भारत का आभार माना। भारत-नेपाल संबंधों की भावी दिशा क्या होगी, यह जानने के पहले नेपाली राजनीति की आंतरिक पहेली के हल होने का इंतज़ार हमें करना होगा। तात्कालिक भारत-नेपाल संवाद तो सार्थक ही रहा है।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं। डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)