गत चार महीनों से पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में भारत और चीनी सेनाओं के बीच चल रही सैन्य तनातनी अब धमकियों और चेतावनियों के स्तर तक पहुंच गई है। चीनी सरकारी मुखपत्रों में भारत को तबाह कर देने की धमकियां उसी तरह जारी की जाने लगी हैं जैसा कि जून, 2017 में भूटान के डोकलाम इलाके में भारतीय सेना द्वारा चीनी सेना को सड़क बनाने से रोके जाने के बाद पैदा हुई सैन्य तनातनी के दौरान जारी की गई थीं।
तब भारतीय और चीनी सैनिक एक-दूसरे से सौ मीटर की दूरी पर आमने-सामने की स्थिति में 73 दिन तक तैनात रहे थे। लेकिन तब भी दोनों सेनाओं के बीच गोलियां नहीं चली थीं। 1975 के बाद जहां पहली बार किसी संघर्ष में गलवान घाटी में गत 15 जून को भारतीय और चीनी सैनिकों की मौतें हुईं, वहीं 1975 के बाद पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे के इलाके में पहली बार सारी परम्पराओं, सहमतियों और समझौतों को तोड़ते हुए गोलियां भी चल गईं।
इस बारे में जहां चीनी सेना ने सोमवार रात को ही बयान जारी कर भारतीय सेना को जिम्मेदार ठहराया वहीं, भारतीय सेना ने जवाबी बयान जारी कर चीनी सेना को झूठा ठहराया।
यह बयानबाजी तब हुई है जब दो दिन पहले ही पांच सितम्बर को मॉस्को में भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की गहन बातचीत हुई है और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को भड़काने वाली कोई कार्रवाई नहीं करने का संकल्प लेते हुए संवाद का रास्ता खुला रखने की बात कही थी। गौरतलब यह है कि दस सितम्बर को मॉस्को में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की भी मुलाकात तय हो चुकी है।
लेकिन चीनी सेना में इन उच्चस्तरीय वार्ताओं के नतीजों की प्रतीक्षा करने का धैर्य नहीं दिख रहा है। चीनी सैन्य आयोग के अध्यक्ष और चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग तिलमिलाए हुए हैं।
भारत ने जिस तरह पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है, उससे चीनी सेना बौखलाई हुई है और किसी भी तरह वहां की काला टॉप, हेलमेट टॉप और मगर टॉप जैसी अहम चोटियों से भारतीय सेना को बेदख़ल करने को तिलमिला रही है।
चीनी सेना ने बातचीत का रास्ता इसलिये खुला रखा हुआ है क्योंकि वह चाहती है कि भारतीय सेना को धमका कर चीन की शर्तें मानने को मजबूर किया जाए। लेकिन भारतीय सेना ने साफ कहा है कि चीनी सेना पांच मई से पहले की स्थिति पर लौट जाए।
युद्ध की कगार पर दोनों देश
न तो चीन भारत की बात मानने को तैयार है और न ही भारत चीन की शर्तें मानने को तैयार है। तो क्या इसका मतलब यही है कि दोनों सेनाएं युद्ध की कगार पर पहुंच चुकी हैं पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे में कुछ चोटियों पर अपने सैनिक बैठा देने के बाद भारत ने अपने पक्ष में रणनीतिक संतुलन झुका दिया है। वास्तव में भारत ने वहां खेल का पासा पलट दिया है।
देखिए, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का वीडियो-
बढ़ेगा सैन्य टकराव
सवाल यह उठता है कि क्या भारत और चीन के बीच चल रहे मौजूदा सैन्य तनाव के बीच पूर्वी लद्दाख के विभिन्न इलाकों खासकर पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे की चोटियों के इलाके में गोलियां चलने के बाद यदि मशीनगनों और तोपों का भी चलना शुरू हो गया तो क्या वहां होने वाला सैन्य टकराव वहीं तक सीमित रहेगा या फिर कई नये मोर्चे खुल जाएंगे।
क्या भारत और चीन के बीच सैन्य टकराव दक्षिणी पैंगोंग झील तक ही सीमित रहेगा या फिर पूरे पूर्वी लद्दाख और फिर सम्पूर्ण 3488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा के इलाके तक फैल जाएगा।
क्या पूर्वी लद्दाख के इलाके में टकराव की चिंगारी पूरे भारत-चीन सीमांत इलाके में जंगल की आग की तरह फैल जाएगी। और यदि सीमांत इलाके युद्ध की चपेट में आते हैं तो क्या भारत और चीन के भीतरी इलाके इससे बच पाएंगे
कल्पना कीजिये कि यदि पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे की चोटियों से भारतीय सेना को बेदखल करने के लिये चीनी सेना ने मशीनगनों और तोपों को चला कर वहां बैठी भारतीय सेना को निशाना बनाना शुरु किया तो भारतीय सेना भी वैसी ही जवाबी कार्रवाई और हमला करने लगेगी।
अटैक हेलिकॉप्टरों का होगा मुक़ाबला
मशीनगनों, तोपों और टैंकों के आमने-सामने की लड़ाई से पहले ही दोनों पक्षों की सेनाएं उन्हें हवाई सहायता देकर अटैक हेलिकॉप्टरों से बेअसर करने की कोशिश करेंगी। भारतीय सेना के पास सीमित संख्या में अमेरिकी अपाचे हेलीकाप्टर हैं जिन पर तैनात टैंक नाशक मिसाइलें दुश्मन के टैंक बेड़े को मिनटों में खत्म कर सकती हैं। लेकिन जब अटैक हेलिकॉप्टरों की तैनाती दोनों ओर से होगी तो दोनों पक्षों के लड़ाकू विमान इन्हें मार गिराने की कोशिश करेंगे और दोनों सेनाएं अपने-अपने हेलिकॉप्टर बेड़े को हवाई सुरक्षा आवरण देने की कोशिश करेंगी।
इन लड़ाकू विमानों को भी ध्वस्त कर देने के लिये दोनों और से आसमानी श्रेष्ठता स्थापित करने वाले लड़ाकू विमान जैसे राफेल, सुखोई-30 एमकेआई और जे-20 तैनात किये जाएंगे और फिर इन्हें आसमानी स्थिति की सटीक जानकारी देने के लिये अवाक्स जैसे टोही विमान या फिर अन्य टोही सहायता देनी होगी ताकि उन्हें दुश्मन की आसमानी तैनाती का सही अनुमान हो सके और उनसे अपने विमानों को बचाया जा सके।
धकेलने की होगी कोशिश
हालांकि दोनों सेनाओं की शुरुआती कोशिश होगी कि पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों से एक-दूसरे को बेदखल किया जाए या फिर पीछे हटने को मजबूर किया जाए। इस कोशिश में जो भी देश पराजित महसूस करेगा वह दूसरे को कुचलने के लिये और बड़ी सैन्य कार्रवाई करने की कोशिश करेगा ताकि सीमांत इलाकों में अपना प्रभुत्व बहाल किया जा सके।
किसी भी देश का राजनीतिक नेतृत्व यह स्थिति नहीं बर्दाश्त करेगा कि उसकी सेना अपने जमीनी दावे की रक्षा नहीं कर पायी।
समुद्र में भी होगा घमासान
शर्मिंदगी से बचने के लिये सेनाएं और बड़ी सैन्य कार्रवाई करेंगी और इसका नतीजा हम दोनों देशों के बीच खुले युद्ध के रूप में देख सकते हैं। खुला युद्ध हुआ तो लड़ाई जमीनी सैनिकों और लड़ाकू विमानों तक ही सीमित नहीं रहेगी बल्कि यह सागरीय इलाकों में भी फैलेगी ताकि एक-दूसरे के समुद्री संसाधनों को नष्ट किया जा सके।
चीन की नौसेना की कोशिश होगी कि वह दक्षिण चीन सागर में भारतीय व्यापारिक पोतों को निशाना बनाए और उनका मार्ग रोके जबकि भारत की कोशिश होगी कि हिंद महासागर से दक्षिण चीन सागर के प्रवेश मार्ग मलक्का जलडमरू मध्य को अवरुद्ध किया जाए।
परमाणु बम का होगा इस्तेमाल
न केवल यही बल्कि दोनों देशों की शुरुआती कोशिश एक दूसरे के अहम सैन्य ठिकानों को लम्बी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों से नष्ट करने की होगी। इसके बाद दोनों देशों की बैलिस्टिक मिसाइलें एक-दूसरे के आबादी वाले शहरों पर भी गिराई जा सकती हैं। यदि इन हमलों से भी कोई देश झुकता हुआ नजर नहीं आया तो परमाणु बमों से लैस बैलिस्टिक मिसाइलों को चलाने की धमकी दी जा सकती है।
परिपक्व सोच वाले दो सभ्य देश इस स्थिति तक नहीं पहुंचें, यही चिंता अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सता रही है। चीनी पक्ष भी इसकी भयावहता से वाकिफ है। इसलिये माना यही जा रहा है कि दोनों सेनाएं बैलिस्टिक मिसाइलों को छोड़ने की स्थिति तक नहीं पहुंचेंगी लेकिन चीनी सरकारी दैनिक ‘चाइना डेली’ ने जो धमकी दी है कि भारत को 1962 के युद्ध से भी भयंकर शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी, उसके यही मायने हैं कि युद्ध की नौबत परमाणु मिसाइलों के संचालन की धमकी तक पहुंच सकती है।