बांग्लादेशः भाषा बड़ी या मजहब?

11:24 am Dec 19, 2020 | डॉ. वेद प्रताप वैदिक - सत्य हिन्दी

बांग्लादेश की जयंति के 49वें और शेख मुजीबुर्रहमान के शताब्दी समारोह के मौके पर भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों के बीच जो बातचीत हुई, वह दोनों देशों के बीच संबंधों की घनिष्टता का संकेत तो है ही, इस अवसर पर दोनों देशों के बीच जो 7 समझौते हुए हैं, उससे आपसी व्यापार, लेन-देन और आवागमन में काफी बढ़ोतरी होगी। 

 

1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बंद हुआ हल्दीबाड़ी-चिलहाटी रेल-मार्ग भी अब खुल जाएगा। पहले चार रेल-मार्ग तो खुल ही चुके हैं। इस रेल-मार्ग के खुल जाने से बंगाल और असम के बीच आवागमन बहुत सुगम हो जाएगा। 

 

दोनों नेताओं के सहज संवाद से यह आशा भी बंधती है कि जल-बंटवारा, रोहिंग्या संकट, सीमाई हिंसा और कोरोना-संकट जैसे मामलों में भी भारत बांग्लादेश की मदद करेगा।
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बांग्लादेश 1971 युद्ध

वास्तव में बांग्लादेश के साथ भारत का पिता-पुत्र का संबंध है। यदि भारत नहीं चाहता तो बांग्लादेश बन ही नहीं सकता था। 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने विलक्षण साहस का परिचय दिया और पाकिस्तानी फ़ौज के चंगुल से बांग्लादेश को मुक्त करा दिया। 

 

उन दिनों दिल्ली के स्रपू हाउस में जब हम बांग्ला-आंदोलन के समर्थन में सभाएं करते थे तो हम कहा करते थे कि शेख मुजीब ने उस आधार को ही उलट दिया है, जिसके दम पर मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया है।

 

जिन्ना ग़लत साबित

पाकिस्तान का आधार मजहब था, लेकिन मुजीब ने सवाल उठाया किया कि मजहब बड़ा या भाषा 

 

मुजीब ने सिद्ध किया कि मजहब से भी बड़ी है, भाषा और संस्कृति! इसी आधार पर इसलामी होते हुए भी मजहब के आधार पर बने पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग हो गया। इस देश का नाम ही इसकी भाषा पर रखा गया है।
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मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हमारी इसी बात को फिर दोहराया है। इस अवसर पर उन्होंने कहा बांग्लादेश में हम सांप्रदायिक अराजकता को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। ‘हिफाजते-इसलाम’ के कट्टरपंथी लोग शेख मुजीब की मूर्ति लगाने का भी विरोध कर रहे हैं। 

 

भारत-बांग्लादेश रिश्ते आज किस मोड़ पर है, देखें वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के विचार। 

 

 

 

हसीना ने इसलामी कट्टरवादियों को फटकारते हुए कहा है कि यह बांग्लादेश जितना काज़ी नज़रुल इसलाम, लालन शाह, शाह जलाल और ख़ान जहानअली का है, उतना ही रवींद्रनाथ ठाकुर, जीवानंद और शाह पूरन का भी है। इस देश की आजादी के लिए मुसलमानों, हिंदुओं, बौद्धों और ईसाइयों-सबने अपना खून बहाया है।

 

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drva]ridik.in से साभार)